शैलेंद्र सिंह

गांवदेहात की एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘कहता तो कहता, सुनता ब्याउर’. इस का मतलब है कि कहने वाला तो जैसा है वैसा है ही, सुनने वाला भी अपना दिमाग नहीं इस्तेमाल करता. वह भी झूठ को सच मान लेता है.

कुछ इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश की ‘इत्र नगरी’ कन्नौज में इत्र और गुटके का कारोबार करने वाले पीयूष जैन के यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा. पीयूष जैन पर टैक्स न अदा करने और काला धन रखने का आरोप लगा. उन के यहां से बहुत सारा पैसा नकदी के रूप में मिला.

इस को ले कर राजनीति होने लगी. भारतीय जनता पार्टी के नेता पीयूष जैन को समाजवादी पार्टी का नेता बताते हुए कहते हैं कि ‘समाजवादी इत्र बनाने वाले कारोबारी के घर से काला धन निकला है’.

इस के बाद केवल छोटेमोटे लोकल नेता ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक इस का जिक्र करने लगते हैं. एक तरह से ‘इत्र’ की खुशबू को काले धन की ‘बदबू’ में बदल दिया जाता है. झूठ बोलने में न तो कहने वाला कुछ संकोच कर रहा है और न समझने वाला अपना दिमाग लगाना चाह रहा है.

क्या भारतीय जनता पार्टी का यह ‘मिथ्या प्रचार’ कामयाब हो गया? वैसे, किसी ने यह जानने और समझने की कोशिश नहीं की कि पीयूष जैन कौन हैं? उन का समाजवादी पार्टी के साथ किसी भी तरह का संबंध है भी या नहीं? समाजवादी इत्र किस ने बनाया था?

पीयूष जैन के जरीए समझा जा सकता है कि सोशल मीडिया के जमाने में राजनीतिक दलों के लिए काम करने वाली आईटी सैल किस तरह से सच को झूठ में बदल सकती है. ऐसा अकेले पीयूष जैन के ही साथ नहीं हुआ है, बल्कि बहुत सारे ऐसे नेताओं के साथ हुआ है, जो भाजपा और उस की विचारधारा के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत दिखाते हैं.

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