कोरोना महामारी ने हर इंसान को बहुत कुछ सिखाया. इस महामारी के दौरान बहुतो ने अपने प्रियजन खोए. जबकि कोविड 19 के दौरान तमाम डाक्टर मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए दिन रात काम करते रहे. ऐसे ही डाक्टरो में से एक डॉ. आशिष गोखले भी ‘कोविड 19’’ के दौरान मुंबई के एक निजी अस्पताल में आईसीयू और आई सीसीयू में चैबिसों घंटे कार्यरत रहकर लोगों की जिंदगी बचाने के साथ ही लॉक डाउन के चलते परेशान 250 डेली वेजेस वर्करों को स्वयं हर दिन मुफ्त में खाना भी खिलाते रहे.
‘कोविड 19’ के दौरान डाॅ. आषिष गोखले को कोरोना पीड़ितों का इलाज करते हुए देखकर काफी लोग आशचर्य चकित भी हो रहे थे. क्योंकि डॉ. आशिष गोखले डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस करने के साथ साथ पिछले छह सात वर्षों से अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय हैं. लोग उन्हे हिंदी सीरियल ‘कुमकुम भाग्य’’ व मराठी सीरियल ‘‘ मोगरा फुलेला’ सहित कई सीरियलों व फिल्मों में बतौर अभिनेता देख चुके है. पर अब डॉ. आशिष गोखले एक बार फिर अभिनय के क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गए हैं. फिलहाल वह 17 दिसंबर से ‘जी 5’ पर स्ट्रीम होने वाली फिल्म ‘‘ 420 आई पी सी ’’को लेकर सूर्खियों में हैं, जिसमें उन्होने मुख्य सीबीआई अफसर का किरदार निभाया है.
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प्रस्तुत है डा. आशिष गोखले से हुई
एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…
आप तो डाक्टरी पेशे से जुड़े हुए हैं,फिर यह अभिनय का चस्का कब लग गया?
-डाक्टरी पेशा तो मेरी रगों में बसा हुआ है.मैं महाराष्ट् के कोंकण इलाके के वेलनेष्वर, रत्नागिरी का रहने वाला हॅूं.मेरे परिवार में सभी डाक्टर हैं.मेरे पिता डा. ध्रुव गोखले, मां उषा गोखले व छोटी बहन भी डाक्टर है.मेरे माता पिता का वेलनेष्वर में ही ‘आषिष अस्पताल’ नामक अस्पताल है.मैंने पुणे से डाक्टरी की पढ़ाई पूरी की.फिर मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई आ गया और मुंबई के मल्टीपल स्पेसियालिटी अस्पताल में आईसीयू और्र आइसीसीयू में इमर्जेंसी फिजीशियन डाक्टर के रूप में कार्यरत हॅूं.मगर मुझे बचपन से ही अभिनय का षौक रहा है. मैंने स्कूल के दिनों से ही थिएटर करना शुरू कर दिया था.
जब बचपन से अभिनय का शौक था, तो फिर डाक्टरी की पढ़ाई??
-जैसा कि मैने पहले ही बताया कि मेरे माता पिता डाक्टर हैं और उनका अपना अस्पताल भी है.इसलिए उनका दबाव रहा.माता पिता ने मुझे एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा.मैने पुणे के मेडीकल कालेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की.डाक्टी की डाॅक्टरी की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने डाॅक्टर के रूप में प्रैक्टिस करना षुरू किया था.लेकिन अभिनय का कीड़ा अंदर से हिलोरे मार रहा था.इसलिए मैने अपने पिता से मंुबई जाने की इजाजत मांगी.इस पर मेरे पिता कुछ नाराज हुए.बाद में कहा कि ‘यदि मंुबई जाओगे,तो आर्थिक मदद की उम्मीद मत करना.मैं तुझे एक फूटी कौड़ी नही दॅूंगा.तुझे अपने बलबूते पर संघर्ष करना पड़ेगा.’उस वक्त मैं डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करके प्रैक्टिस शुरू ही की थी.इसलिए मेरे पास आर्थिक बचत नही थी.पर मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए मंुबई आ गया.मैं मंुबई के जुहू स्थित एक निजी अस्पताल में रात में बतौर डाक्टर काम करने लगा.तथा दिन में अभिनय के लिए संघर्ष करना षुरू किया.मेरी मेहनत रंग लायी.2015 -2016 में मुझे ‘प्यार को हो जाने दो’ तथा ‘कुमकुम भाग्य’ सीरियलों में अभिनय करने का अवसर मिला. ‘कुमकुम भाग्य’ में कैमियो किया था.2016 में फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ में छोटा सा किरदार निभाया.इस फिल्म के सेट पर कई लोगों से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी.मुझे फिल्मी दुनिया की कार्यषैली, आॅडीषन देने के बारे में विस्तृत जानकारी मिली.2017 में फिल्म ‘लव यू फैमिली’की, जिसमें मैने मनोज जोषी के बेटे का किरदार निभाया था.इसके बाद मंैने भारत का पहले ड्ामा रियालिटी षो ‘तारा फ्र्राम सितारा’ किया.इसमें मेरा वरुण माने का किरदार काफी लोकप्रिय हुआ.इसके अलावा ‘भौकाल’ व ‘साइड हीरो’ जैसी वेब सीरीज की.‘मोगरा फुलेला’, ‘कंडीषंस अप्लाय’,‘रेडी मिक्स’,बाला’ सहित कुछ मराठी फिल्में की.अब मैने वेब फिल्म ‘‘ 420 आईपीसी’’की है.
थिएटर पर क्या क्या किया?
-थिएटर काफी किया है.मैने मराठी, हिंदी व उर्दू भाषा के नाटकों में अभिनय किया है.मैने बीस वर्ष कह उम्र में‘स्वामी विवेकानंद’ नामक नाटक में स्वामी विवेकानंद का यंग उम्र के स्वामी विवेकानंद का किरदार निभाया.मैने इसमें उनके संन्यासी बनने से पहले का किरदार निभाया.इसके कन्या कुमारी,कानपुर, दिल्ली, अहमदाबाद सहित कई शहरों में इसके षो किए.उस वक्त मैं इस नाटक के षो करते हुए डाक्टरी की पढ़ाई भी कर रहा था. उन दिनों मैं फैशन शो में माॅडलिंग करता था. कई प्रोडक्ट के लिए रैंपवाॅक भी किया.इसके चलते कालेज दिनों में मैं पुणे में काफी मषहूर था.
दो हिंदी,तीन मराठी और एक उर्दू नाटक में अभिनय किया.हर नाटक के काफी षो हुए.मैंने ख्ुाद भी एक नाटक का लेखन व निर्देशन व उसमें अभिनय किया.मैने कुछ एक पात्रीय नाटक भी किए.मराठी नाटक ‘‘नाते जुड़ा दे मणाषी मणाषी’ काफी लोकप्रिय रहा.एक पात्रीय नाटक ‘बैक टू स्कूल’ भी लोकप्रिय हुआ.यह सारे नाटक 2007 से 2011 के बीच ज्यादा किए.
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आपकी मातृभाषा तो मराठी है?
-जी हाॅ!लेकिन मैने पंजाबी,हिंदी व उर्दू भाषाएं लिखना व पढ़ना सीखा. मैने पुणे के कैंट इलाके के गुरूद्वारा में जाकर सरदार जी से पंजाबी भाषा सीखी.इसलिए मेरी हिंदी में आपको मराठी एसेंट नही मिलेगा.मैं षुद्ध हिंदी व
उर्दू में बात कर सकता हॅूं. फिल्म ‘‘ 420 आई पी सी ’’ से जुड़ना कैसे हुआ?
-एक अभिनेता के तौर पर संघर्ष करते हुए मैने कई प्रोडकशन हाउस में अपनी तस्वीरें भेज रखी हैं. फिल्म ‘‘420 आई पी सी’’ के प्रोडकशन हाउस में भी तस्वीरें भेज रखा था.कोविड के वक्त मैं बहुत व्यस्त था.दिन में पांच सौ फोन आते थे.मैने कई मरीजों का मुफ्त में इलाज किया. खैर,सितंबर 2020 में प्रोडक्षन हाउस से मेरे पास आॅडीषन करके वीडियो भेजने का फोन आया.उस वक्त मैं अस्पताल में था.तो मंैने कह दिया कि मैं रात में भेज पाउंगा.देर रात मैने आॅडीषन भेजा और मेरा चयन हो गया.
फिल्म ‘‘ 420 आई पी सी ’’ में आपका किरदार क्या है?
-मैने इसमें मुख्य सीबीआई आफिसर मिस्टर अचलेकर का किरदार निभाया है.जो कि एक बहुत बड़े घोटाले में षामिल मिस्टर केसवानी को गिरफ्तार करता है. केसवानी को सजा देने के बाद रिहा किया जाता हे.उसके बाद कोर्ट केस चलता है. सीबीआई अफसर का किरदार निभाने के लिए किस तरह की तैयारी की?
-निर्देषक मनीष गुप्ता ने मुझसे कहा कि मुझे सीबीआई आफिसर के लिए अपनी बाॅडी लैंगवेज को बदलना पड़ेगा.मुझे उनका उठना, बैठना,चलना फिरना वगैरह सब कुछ सीखना पड़ेगा.अब यह मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी.क्योकि सीबीआई आफिसर आसानी से मिलते नही है.यह लोग तो बताते भी नही है कि वह सीबीआई आफिसर हैं.पुलिस अफसर तो हमारे आसपास नजर आते हैं.इसलिए हम इनके बारे में सब कुछ आसानी से जान सकते हैं.सीबीआई आफिसर मीडिया में भी नही आते.तो यह जानना बहुत मुष्किल था कि उनकी बाॅडी लैंगवेज कैसी होती है?वह किसी भी परिस्थिति में किस तरह से रिएक्ट करते हैं.इस वेब सीरीज के सीबीआई आफिसर के किरदार में एक्षन व रिएक्षन काफी है.कोविड का वक्त था,इसलिए किसी सीबीआई आफिसर से मिलने भी नही जा पाया.मगर मैं कुछ पुलिस अफसरों को जानता हॅू,तो उनकी मदद से एक दो सीबीआई आफिसर का फोन नंबर लेकर उनसे फोन पर बात कर सारी चीजें समझी.बाॅडी लैंगवेज बदलने के लिए मुझे काफी मषक्कत करनी पड़ी.मैं अस्पताल में भी उसी तरह से रहने का प्रयास करता.तो मेरे सहकर्मी डाक्टरांे ने सवाल भी किया कि डाॅ.अषीष आपके अंदर कुछ बदलाव आ गया है.मेरे चलने का ढंग बदल चुका था.अब मैं गंभीर रहने लगा था.पहले मैं बहुत हंस हंस कर बात करता था,पर अब चुप रहने लगा था.वास्तव में मैं हमेशा चाहता हॅंू कि मैं जिस किरदार को निभाउं,उसमें पूरी तरह घुसकर उसे न्यायसंगत तरीके से परदे पर साकार करुं.इसलिए मैं अपने हर निर्देशक से किरदार के संबंध में कई सवाल करता हॅूं.मैं हमेषा हर किरदार को कैमरे के सामने पूरी षिद्दत के साथ जीता हॅूं. डाक्टर भी अनुषासित होते हैं.
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सीबीआई आफिसर भी अनुषासित होते हैं.इस बात ने आपको सीबीआई आफिर का किरदार निभाने में कितनी मदद की?
-देखिए,दोनो अनुषासन के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं.मगर दोनो मंे सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि एक सीबीआई आफिसर अपराधी के आत्म विष्वास को डिगाकर उससे सच उगलवाता है.जबकि एक डाक्टर अपने मरीज के आत्मविष्वास को बढ़ाने के लिए आवष्यक बातें करता है.जब मरीज का आत्मविष्वास बढ़ता है,तभी वह जल्दी ठीक होता है.सीबीआई आफिसर की तरह डाक्टर गंभीर नही रहता.वह मरीज की बीमारी की रिपोर्ट देखकर भी चेहरे पर भाव नहीं आने देता.बल्कि यही कहता है कि कोई गंभीर बात नही है.डाक्टर अपने मरीज को हंसाता है.उसका आत्मविष्वास बढ़ाता है.बीमारी की गंभीरता को अहसास करते हुए डाक्टर इस बात को अपने चेहरे के हाव भाव से जाहिर नहीं होने देता.
इसके अलावा कुछ नया कर रहे हैं?
-जी हाॅ! दो तीन प्रोजेक्ट है.अभी एक फिल्म की षूटिंग हैदराबाद में कर रहा हॅूं.जबकि अमेजाॅन के लिए वेब सीरीज की है.पर इनके संबंध में अभी ज्यादा नहीं बता सकता.
शौक क्या है?
-संगीत सुनना,लिखना.कविताएं,चुटकुले व कहानियंा लिखता हॅूं.सामज सेवा के कार्य करता हॅूं.
सोशल वर्क?
-पहले लाॅक डाउन के वक्त मैं हर दिन 250 लोगों को मुफ्त में भोजनकराता था.कई मरीजों का मुफ्त में इलाज किया.उन दिनों मैने सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर लोगों को हर डेलीवेजेस की मदद करने के लिए प्रेरित करने का काम किया.होम क्वारंटाइन करने का काम किया.