डा. समोंजोय मुखर्जी
वर्ष 2020 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हार्टअटैक से मरने वालों की संख्या 2014 से लगातार बढ़ रही है. परंपरागत रूप से हृदय की बीमारियों को ‘पुरुषों की बीमारी’ का पर्याय माना जाता रहा है. हालांकि, अब नवीनतम रिपोर्ट में बदलाव देखा जा रहा है.
वैसे तो महिलाओं को कार्डियोवैस्कुलर बीमारी पुरुषों के मुकाबले 7-10 साल बाद होती है पर महिलाओं के बीच यह मौत का एक अहम कारण बना हुआ है. इस विश्वास के कारण कि महिलाएं कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीएडी) से ‘सुरक्षित’ हैं, महिलाओं में हृदय की बीमारी के जोखिम को अकसर कम कर के आंका जाता है. महिलाओं में हार्टअटैक के संकेत और लक्षण अस्पष्ट हो सकते हैं और इस का पता उतनी आसानी से नहीं चलता है क्योंकि सीने में तेज दर्द का संबंध अकसर हार्टअटैक से जुड़ा होता है.
कुछ मिनट से ज्यादा देर तक रहने वाला सीने में एक खास किस्म का दर्द, दबाव या असुविधा महिलाओं में हार्टअटैक का आम संकेत है. हालांकि, खासतौर से महिलाओं में सीने का दर्द अमूमन बहुत गंभीर नहीं होता है और यह सब से ज्यादा दिखाई देने वाला लक्षण भी नहीं होता है. महिलाएं इस का वर्णन खासतौर से दबाव या सख्ती के रूप में करती हैं. यह भी संभव है कि सीने में दर्द के बिना मरीज हार्टअटैक का शिकार हो जाए.
महिलाओं में अकसर ये लक्षण तब सामने आते हैं जब वे आराम कर रही हों या सो रही हों और पुरुषों के मुकाबले यह कम होता है. महिलाओं में भावनात्मक तनाव भी हार्टअटैक के लक्षण की शुरूआत में भूमिका अदा कर सकता है.
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हार्टअटैक के ये कुछ संकेत हैं जिन पर सभी को नजर रखनी चाहिए.
बेहद थकान या सीने में भारीपन महसूस करना.
सांस फूलना या अत्यधिक पसीना आना.
गरदन, पीठ, कमर, जबड़ों, बांह या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द.
चक्कर आना या उलटी होने का एहसास
कार्डियैक जोखिम के इन लक्षणों में बहुतों को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन सब को नहीं. सामान्य जीवनशैली में बदलाव ला कर कुछ जोखिम घटकों का प्रबंध किया जा सकता है लेकिन कुछ घटक, जैसे आयु, लिंग, परिवार का इतिहास, नस्ल और जातीयता जैसे कुछ कारणों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. अनुमान है कि जीवनशैली में बदलाव से हार्टअटैक और स्ट्रोक समेत कार्डियैक बीमारियों के 80 फीसदी मामले रोके जा सकते हैं.
कई ऐसे कारण हैं जो महिलाओं में हृदय की बीमारी का जोखिम बढ़ाते हैं-
महिलाओं में ऐसे जोखिम हैं जो पुरुषों में नहीं हैं : उच्च रक्तचाप, बढ़ा हुआ ब्लडशुगर, ज्यादा कोलैस्ट्रौल, धूम्रपान और मोटापा हृदय की बीमारी के लिए खास जोखिम हैं जो महिलाओं में भी पुरुषों की तरह मौजूद होते हैं. हृदय की बीमारी का परिवार का इतिहास भी महिलाओं पर पुरुषों की ही तरह प्रभाव छोड़ सकता है. हालांकि कुछ बीमारियां, जैसे एंडोमेट्रियोसिस, पौलिसिस्टिक ओवरी डिजीज (पीसीओडी), डायबिटीज और उच्च रक्तचाप जो गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है आदि कौरोनरी आर्टरी डिजीज का जोखिम बढ़ा देती हैं. यह हार्टअटैक के प्रमुख कारणों में एक है. 40 साल से कम की महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस से कौरोनरी आर्टरी डिजीज का जोखिम 400 फीसदी तक बढ़ जाता है.
देर से गर्भधारण करना कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का जोखिम बढ़ा कर महिलाओं और उन के बच्चे को प्रभावित कर सकता है : देर से मां बनने का असर पैदा होने वाले बच्चे पर बाद में पड़ सकता है. इस से देर से गर्भधारण के कारण हो सकने वाली समस्याओं में प्लेसेन्टल एबरप्शन, प्रीमैच्योर रप्चर औफ मेमब्रेन, कोरियोएम्नियोनाइटिस यानी भ्रूण को ढकने वाली झिल्लियों में सूजन, प्रसवाक्षेप और हेलेप सिंड्रोम जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
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महिलाओं में सीएडी का पता लगाना मुश्किल हो सकता है : हृदय की मुख्य धमनियों के संकरा होने या उन में बाधा का पता लगाने का परंपरागत तरीका एक्सरे मूवी (एंजियोग्राम) है जो कार्डियैक कैथेराइजेशन के दौरान लिया जाता है. हालांकि, महिलाओं में सीएडी अकसर छोटी धमनियों को प्रभावित करता है. एंजियोग्राफी में इस का पता लगाना मुश्किल होता है. इसलिए, यह सुझाव दिया जाता है कि अगर महिला को एंजियोग्राफी के बाद ‘औल क्लीयर’ का संकेत मिले पर लक्षण बना रहे तो ऐसे कार्डियोलौजिस्ट के पास जाना चाहिए जो महिलाओं के मामले में सुविज्ञ हों.
महिलाओं पर हार्टअटैक पुरुषों के मुकाबले भारी पड़ता है : हार्टअटैक के बाद महिलाओं का प्रदर्शन पुरुषों के जैसा अच्छा नहीं होता है. उन्हें अकसर लंबे समय तक चिकित्सीय देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती है और अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले ही उन के निधन की आशंका ज्यादा होती है. इस का कारण उन जोखिम घटकों को माना जा सकता है जिन का उपचार नहीं किया गया या किया जाता है. इन में डायबिटीज या उच्च रक्तचाप आदि शामिल हैं. कभीकभी इस का कारण यह भी होता है कि वे परिवार को प्राथमिकता देती हैं और खुद की उपेक्षा करती हैं.
हार्टअटैक के बाद महिलाओं को हमेशा सही दवाइयां नहीं मिलती हैं : हार्टअटैक के बाद महिलाओं में खून का थक्का जमने की आशंका पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है. यह दूसरे अटैक का कारण बन सकता है. अस्पष्ट कारणों से उन्हें खून का थक्का जमने से रोकने वाली दवा दिए जाने की संभावना कम है. यह महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले एक साल के अंदर हार्टअटैक आने की आशंका ज्यादा होने का कारण हो सकता है.
धूम्रपान और खाने वाली गर्भनिरोधक गोलियां स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं : दोनों का मेल घातक हो सकता है. धूम्रपान के बारे में जाना जाता है कि इस से धमनियां संकुचित हो जाती हैं. इस से खून के थक्के बनते हैं और कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं होती हैं. दूसरी ओर, खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियां शरीर के हार्मोन संतुलन को बदल देती हैं. इस से खून सामान्य के मुकाबले ज्यादा गाढ़ा होता है.
कुछ जोखिमों पर नियंत्रण संभव नहीं है लेकिन सही आदतों का पालन करना आप के हृदय के स्वास्थ्य के लिए काफी मददगार हो सकता है. कुछ उपाय जो हृदय की बीमारी और स्ट्रोक को कम करने में मददगार हो सकते हैं, ये हैं-
आरामतलब जीवनशैली से बचना.
नियमित शारीरिक गतिविधि और 25 से कम बीएमआई के साथ शरीर का स्वस्थ वजन रखना.
जीवनशैली में संशोधन कर के जैसे शारीरिक गतिविधियां बढ़ा कर और समय पर जानकारी प्राप्त कर के ब्लडप्रैशर ठीक रखना.
तनाव कम करने की कोशिश करना क्योंकि इस बात के पर्याप्त सुबूत हैं कि तनाव और हृदय पर इस के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.
वसामुक्त, उच्च फाइबर वाला पौष्टिक भोजन करना तथा खराब ढंग से प्रसंस्कृत भोजन से बचना.
धूम्रपान से बचने की कोशिश और शराब का सेवन कम करना.
जीवनशैली में बदलाव के अलावा वार्षिक जांच करवाना हृदय को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है. जो लोग उम्र के 20वें दशक के आखिर में और 30वें दशक में हैं उन्हें नियमित जांच करानी चाहिए.
जैसेजैसे कोरोनरी आर्टरी डिजीज को रोकने से संबंधित ज्यादा सूचनाएं उपलब्ध हो रही हैं, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि महिलाएं भी पुरुषों के बराबर जोखिम में हैं और उन्हें रोकथाम के गंभीर उपाय करने चाहिए. हृदय की बीमारी और स्ट्रोक से बचने के साथसाथ चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए हर महिला को अपने जोखिम घटक से वाकिफ होना चाहिए तथा जितनी जल्दी संभव हो, इलाज करवाना चाहिए. सांस फूलने, सीने में दर्द, अत्यधिक पसीना आना और चक्कर आने जैसे आम लक्षणों को नजरअंदाज न करें. अपने हृदय के लिए अच्छी आदतें अपनाने के लिए कोई भी समय बहुत देर नहीं है.
(लेखक मणिपाल अस्पताल, द्वारका, दिल्ली में कंसल्टैंट व सीनियर इंवैन्शनल कार्डियोलौजिस्ट हैं).