नई टैक्नोलौजी युवाओं पर भारी पड़ेगी. जो युवा गुणगान करते रहते हैं कि आज उन की मुट्ठी में दुनियाभर की नौलज है, वे यह भूल रहे है कि यह नौलज एकतरफा व प्लांटेड है. यह उन के विवेक व उन की सोच को बरबाद करने वाली है. मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीम पर बंद जानकारी, गपें मारने के प्लेटफौर्म, नाचगाना दिखाने वाली ऐप, बहुत ही उलझे हुए कंप्यूटर असल में एक तरह से साजिश हैं जो आज के युवा का मन चाहे बहलाएं लेकिन इस चक्कर में उन्हें मानसिक व शारीरिक गुलाम भी बना रहे हैं.

पहली नजर में यह गलत लगता है पर जरा सी परतें उधेड़ें, तो साफ पता चल जाएगा. आज मोबाइल की जंजीर में बंधे युवा का ध्यान म्यूजिक ऐप, डांस ऐप या कंप्यूटर गेम पर होता है, सो उसे, दूसरों की जरूरतें तो छोडि़ए, किसी को देखने तक की फुरसत तक नहीं होती. मांबाप, भाईबहन, दोस्त क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं, कैसे भाव उन के चेहरों पर हैं, उन्हें मालूम ही नहीं रहता. वे तो सिर्फ स्क्रीन पर आंख और दिमाग गड़ाए रहते हैं.

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इन ऐप्स और गेम्स को जम कर पैसा मिल रहा है. कुछ एड्स से तो कुछ ऐप को खरीदने से. बिटकौइनों ने खरीदारी आसान कर दी है पर खरीद करने पर हाथ में क्या रहता है? जीरो. इन युवाओं को बिना कुछ बदले में पाए पैसे खर्चने की आदत इतनी बढ़ गई है कि उन को काम करने की आदत नहीं रह गई है. उन्हें अपने में मगन रहने और मोबाइल में डूबे रहने की इतनी लत हो गई है कि वे बाहर जो हो रहा है, उस के अच्छेबुरे पर सोच भी नहीं सकते.

आज का युवा अगर जरा सी हवा में उड़ रहा है, जरा सी लहर में बह रहा है तो इसलिए कि उस के पैर जमीन पर हैं ही नहीं. उस के पास किसी लक्ष्य तक पहुंचने की इच्छा ही नहीं है. वह तो अपने डांस के लाइक्स, अपने नेता के विरोधियों को दी गई गालियों वाले मैसेजों को फौरवर्ड करने में लगा है. वह न तो कुछ नया सोच रहा है, न कुछ नया कर रहा है.

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हां, टैक्नोलौजी बहुत उन्नति कर रही है. नईनई चीजें बन रही है. नए ऊंचे भवन बन रहे हैं. आसमान और सितारों को छुआ जा रहा है पर यह सब काम जनता का छोटा सा वर्ग कर रहा है जिस के हाथ में सारी डोरे हैं. वे पूरी मेहनत कर रहे हैं. मोटी किताबें पढ़ रहे है, मोटी किताबें लिख रहे हैं, लैब्स में खोज कर रहे हैं, कंस्ट्रक्शन साइटों पर घंटों और कईकई दिनों जमे रहते हैं पर उन की गिनती कम होती जा रही है. वे कम हैं, इसलिए उन को मिलने वाले पैसे बढ़ रहे हैं. पहले सब से कम और सब से ज्यादा वेतन पाने वालों का अंतर 20-30 गुना होना था, अब हजारों गुना हो रहा है. अडानी, अंबानी हर घंटे में सैंकड़ों करोड़ कमा रहे हैं. लैब्स में काम कर रहे साइंटिस्ट महंगे और महंगे होते जा रहे है. एमबीए, एमबीबीएस, लौ, इंजीनियरिंग कोर्सों में जगह नहीं मिल रही. थोड़े से भी कमजोरों की किसी को जरूरत नहीं. वे तो अब एमेजौन के डिलीवरी बौय बन रहे हैं, मैक्डोनल्ड में कैरियर या स्टोर में सैल्समैन. उन के पास है, तो मोबाइल, जो असल में जंजीर है, मोटी, दिमाग को बांधने वाली.

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