शेखर और नीता का विवाह हुए 2 साल ही हुए थे. दोनों दांपत्य जीवन से काफी खुश भी थे पर नीता की जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत से शेखर कई बार मन ही मन झुंझला जाता था. नीता को अकेले में समझाने की कई बार कोशिश की, लेकिन नीता ने उस की बात पर ध्यान ही न दिया.

चाहे परिवार का कोई सदस्य हो या शेखर के औफिस के सहयोगी, नीता की जबान को कभी ब्रेक नहीं लगता. एक बार तो हद ही हो गई, एक पारिवारिक समारोह में वह शेखर के साथ शामिल हुई. कई दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ शेखर खुशी से एंजौय कर रहा था. शेखर के कजिंस ने कालेज के दिन याद किए तो नीता अपने स्कूलकालेज के किस्से सुनाने लगी.

वह एक बार जब शुरू हुई तो फिर रुकी ही नहीं. दोस्त, सहेलियों और टीचर्स के किस्से पर किस्से. अचानक उसी के बोलने की आदत पर एक कजिन ने चुटकी ली, ‘‘भाभी, आप बहुत लकी हैं जो शेखर जैसा शांत पति मिला. यह तो ज्यादा बातें करने वाली लड़कियों से बहुत दूर भागता था.’’

नीता के कान खड़े हुए, वह बोली, ‘‘अच्छा, कोई थी क्या?’’

‘‘नहीं, इस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं थी. इतना कम बोलता था, कौन लड़की इस के साथ बोर होती.’’

नीता ने कहा, ‘‘इस का मतलब, मैं ज्यादा बोलती हूं?’’

‘‘नहीं भाभी, हां, यह तो है कि आप के जैसा नहीं है यह, नहीं तो सोचो, आप दोनों ही बोलते रहते तो सुनता कौन?’’ कजिन तो मस्ती कर रहा था, छेड़छाड़ हो रही थी पर नीता को तो जैसे बात का बतंगड़ बनाने का मौका मिल गया था. सब हैरान रह गए, वह फिर चुप ही नहीं हुई, अपने बोलने की आदत को अपना विशेष गुण समझती हुई सब को चुप करवा कर ही मानी, रंग में भंग पड़ता चला गया.

शेखर को यह सब देख कर बहुत दुख हुआ, शर्मिंदगी हुई. घर जा कर नीता को समझाया भी कि हर जगह ज्यादा बोलना ठीक नहीं होता पर वह इसी बात पर बहस करती गई कि किसी ने बोलने पर मुझे टोका कैसे?

बिना सोचेसमझे बोलने की आदत से नीता कई बार अनुचित बातें भी कह जाती, जिन से किसी भी लड़की को बचना चाहिए.

धीरेधीरे दोनों में किसी बात के बढ़ने पर अच्छीखासी बहस होने लगती. झगड़ा बढ़ जाता पर क्या मजाल जो कभी नीता चुप हो जाए. गुस्से में एक दिन शेखर का हाथ उठ ही गया जो वह कभी चाहता नहीं था. पर नीता का लगातार बहस करते जाना शेखर के हाथ उठाने का कारण बनने लगा.

नीता को यह समझने में काफी समय लगा कि उस के कम बोलने या कभी चुप रहने से दोनों का झगड़ा, बहस बंद हो जाती है. जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसे समझ आया कि हर बार झगड़े का कारण उस का लगातार बोलना ही था. अपनी इस कमी को सुधारने के बाद उसे फिर हमेशा शेखर का प्यार मिला. सारे दोस्तों, रिश्तेदारों से उस ने बोलने पर नियंत्रण करते ही अपने सुधरे व्यक्तित्व पर प्रशंसा भी बटोरी.

अमित और अंजलि भी देखने में बेहद स्मार्ट, सुंदर, सुशिक्षित दंपती माने जाते हैं. पर अमित की आदत है बिना सोचेसमझे वह कहीं भी कुछ भी बोल देता है.

अमित के सारे गुण इस एक अवगुण के सामने फीके पड़ जाते हैं. एक बार अमित ने घर में अपने दोस्तों को डिनर पर बुलाया हुआ था.

सभी खाने की तारीफ कर रहे थे. सुंदर, सुघड़ अंजलि बड़े उत्साह से मेहमानों की आवभगत कर रही थी. अमित के दोस्तों की पत्नियां अंजलि के स्वभाव, व्यवहार से तो अवगत थी हीं, घर में एक जगह पेंटिंग का सामान रखा देख एक दोस्त की पत्नी ने पूछा, ‘‘अंजलि, तुम पेंटिंग भी बनाती हो?’’

‘‘हां, कभीकभी. घर में ये सब पेंटिंग्स मेरी ही बनाई हुई हैं.’’ अमित के कानों में जब यह बात पड़ी तो वह फौरन बताने लगा, ‘‘और भी बहुत सी पेंटिंग्स रखी हैं ऊपर अलमारियों में, इसे लगा था कि बड़े पैमाने पर इस काम को करेगी और पेंटिंग्स बिकेंगी पर सब टांयटांय फिस, कोई नहीं बिकी. पूरा प्लान ही चौपट हो गया. अब तो पेंटिंग्स लोगों को उपहार में दे कर इस को खुश होना पड़ता है. इस के साथ ऐसा कई बार हुआ है. कई स्कूलों में इस ने ड्राइंगटीचर के लिए अप्लाई कर भागदौड़ भी की, पर कहीं बात नहीं बनी.’’

इन कटाक्षभरी बातों पर मेहमानों के सामने अंजलि की आंखों में नमी सी आ गई पर उस ने कुशलतापूर्वक उस समय स्वयं पर नियंत्रण रखा और बात उपहास में टाल दी. लेकिन अकेले में बाद में वह फूटफूट कर रोई. हालांकि, ऐसा अमित ने पहली बार नहीं किया था.

ज्यादा बोलना देखनेसुनने में कोई बहुत बड़ा अवगुण नहीं लगता पर ऐसे लोगों के साथ जीवन बिताना किसी यातना से कम नहीं होता. ज्यादा बोलने वाला पति या पत्नी कब किस के सामने क्या बोल दे, इस आदत को झेलने वाला इस शंका में कैसे जीता है, यह वही जानता है.

कहा जाता है कि जिस ने अपने मुंह और जबान पर नियंत्रण रख लिया, उस ने खुद को कई कष्टों से बचा लिया. जहां जरूरत हो, वहीं बोलना चाहिए, इसी में बुद्धिमानी है. यदि एक मूर्ख भी चुप बैठा रहे तो उसे समझदार ही समझ लिया जाता है, पर जैसे ही वह मुंह खोलता है, हकीकत सामने आ जाती है.

ज्यादा बोलने वाले इंसान इधरउधर की बातें कर के अकसर झूठी खबरों को बढ़ावा देते हैं. ऐसे लोग अच्छे श्रोता हो ही नहीं सकते. सामने वाले की बात खत्म होने से पहले ही अपनी बात शुरू कर देना मूर्खता की निशानी है. जिस व्यक्ति को यह धैर्य नहीं, वह मूर्ख है.

हर इंसान को सामने वाले की बात सुनने में तेज होना चाहिए और बोलने में धीमे. बिना सोचेसमझे बोलने वाले लोग अकसर अपनी शेखी बघारने वाले होते हैं. कहा जाता है, दूसरों को ही अपनी प्रशंसा करने दो, अपने होंठों को नहीं.

भले ही जबान छोटी सी होती है पर वह बड़ेबड़े नुकसान कर जाती है. जैसे एक जंगल को एक छोटी सी आग नष्ट कर सकती है ऐसे ही ज्यादा बोलना पतिपत्नी के मधुर रिश्ते में कड़वाहट भर कर नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए कम बोलें, अच्छा बोलें. सोचसमझ कर बात करें. जहां जरूरत न हो वहां चुप ही रहें. अनावश्यक बातों से रिश्ते में कटुता न आए, इस का ध्यान रखें.

यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो इस का मतलब है कि उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है. इसीलिए वह हृदय के तराजू में तोल कर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.

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