लेखक- कुशलेंद्र श्रीवास्तव
जाहिर है कि यह कानून सब को मंजूर नहीं है. इसे ले कर विपक्ष में तो असंतोष है ही, साथ ही देश के कुछ राज्यों में भी असंतोष फैला हुआ है. जनता के इस विरोध ने यह साबित कर दिया है कि हर समय लच्छेदार भाषणों से जनता को नहीं बरगलाया जा सकता.
नोटबंदी और जीएसटी कानून के बाद आर्थिक मंदी की मार झेल रही केंद्र सरकार जनता को असली मुद्दों से भटका कर हिंदुत्व के अपने एजेंडे पर चल कर पीछे के दरवाजे से वर्ण व्यवस्था को वापस लाना चाहती है.
राम मंदिर जैसे मसलों पर धार्मिक भावनाएं भड़का कर देश के हिंदूमुसलिम समाज के बीच अलगाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि भाजपाई पुजारियों की असली कमाई इन्हीं मंदिरों से ही होती है.
संसद से पास नागरिकता संशोधन कानून अफगानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान से भारत में आए गैरमुसलिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है. इन तीनों देशों को इसलिए रखा गया है, क्योंकि ये तीनों देश धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं. पाकिस्तान और बंगलादेश तो साल 1947 तक भारत का हिस्सा थे और अफगानिस्तान तकरीबन भारत का सांस्कृतिक हिस्सा था. तीनों ही अब इसलामिक देश हैं.
यह कानून साल 1955 में पास नागरिकता कानून को संशोधित कर उन हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई और पारसियों को भारत की नागरिकता के योग्य बना देगा, जो अफगानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान से भारत आए हैं.
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यह अधिकार 31 दिसंबर, 2014 तक उन सभी लोगों पर लागू होगा, जो इस मीआद तक भारत में आ चुके हैं.
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