लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
‘‘तो फिर आगे बढ़ कर हिम्मत दिखा और थाम ले महविश का हाथ… क्योंकि किसी ने कहा है कि हमें शादी उस से नहीं करनी चाहिए, जिस से हम प्यार करते हों, बल्कि उस से करनी चाहिए, जो हम से प्यार करता हो… और यह बात महविश ने बता दी है कि वह मुझ से बहुत प्यार करती है,’’ इसी तरह की उधेड़बुन में सिराज आजकल खोया रहता, अपनेआप से सवाल करता और अपनेआप से ही जवाब दिया करता था.
अगले दिन सिराज काफी परेशान रहा और जब उस के कुंआरे मन से नहीं रहा गया, तो सिराज ने अपनी बात अपने दोस्त और महविश के भाई फैज से कहने की सोची.
हालांकि यह बात सोचते हुए उस के मन में ये भी डर था कि फैज किस तरह से इस बात पर रिएक्ट करेगा, पर फिर भी डरतेडरते सिराज ने अपने और महविश के रिश्ते के बारे में फैज से बात की.
‘‘देखो फैज… बात थोड़ी अजीब सी है पर जरूरी है, इसलिए तुम से कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है…’’ सिराज ने फैज से कहा.
‘‘अरे सिराज, तुम्हें मुझ से कुछ भी कहने के लिए कोई भी संकोच करने की जरूरत नहीं है. साफसाफ कहो.’’
‘‘दरअसल, मैं और महविश एकदूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं,’’ सिर्फ इतना ही कह कर सिराज खामोश हो गया और फैज की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा.
फैज के घर सिराज का आनाजाना तो था ही, इसलिए फैज को ज्यादा कुछ समझने में देर न लगी. कुछ देर तक फैज कुछ सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘अगर महविश भी तुम से निकाह करना चाहती है, तो ये उस की नादानी हो सकती है, पर तुम तो समझदार हो, अपने और महविश के बीच का फर्क अच्छी तरह समझ सकते हो.’’
कुछ देर चुप रहने के बाद फैज आगे बोला, ‘‘देखो, हो सकता है कि तुम्हें मेरी बात बुरी लग जाए, पर यह सच?है कि महविश नाजों से पली हुई एक लड़की है… और भला तुम को मुझ से ये बात कहने से पहले खुद ही सोचना चाहिए था कि कहां महविश और हम लोगों का लाइफस्टाइल और कहां तुम्हारा?
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महविश इतने बड़े घर की लड़की तुम जैसे गरीब लड़के के साथ कैसे निबाह कर सकती है भला…’’ हालांकि जो भी बातें फैज कह रहा था, उन की जानकारी तो सिराज को पहले से ही थी.
फैज ने फिराज को जी भर कर खरीखोटी भी सुनाई और उस के और महविश के जीवन स्तर के बीच का फासला भी अच्छी तरह से समझाया.
सिराज फैज की बातें सुन कर गम के दरिया में गोते लगाने लगा, वह समझ गया था कि एक गरीब के लिए बड़े घर की लड़की के साथ का सपना कभी हकीकत नहीं बन सकता.
कुछ दिन यों ही बीत गए. सिराज घर से न निकला, महविश हर आहट पर दरवाजा देखती, बारबार फैज के कमरे में बहाने से जाती, पर सिराज का कहीं अतापता ही नहीं था.
महविश ने सिराज का हालचाल जानने के लिए उसे फोन किया, तो सिराज ने फोन नहीं उठाया. महविश परेशान हो उठी थी. उस ने सोचा जरूर कुछ गलत हुआ है, नहीं तो सिराज उस के फोन का जवाब जरूर देता. महविश का दिन बेचैनी में कटा. उस ने सोचा कि सुबह होगी तो वह किसी तरह से सिराज से मिल कर असली बात का पता लगाने की कोशिश करेगी.
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रात में भी महविश की आंखों में नींद नहीं आ रही थी. उस के कई मैसेज का जवाब भी सिराज ने नहीं दिया था. अभी महविश मोबाइल को उलटपलट ही रही थी कि मोबाइल की मैसेज की घंटी बज उठी. महविश ने झट से देखा. यह सिराज का ही मैसेज था.
महविश ने उसे जल्दीजल्दी पढ़ना शुरू किया, जिस में सिराज ने फैज से हुई पूरी बात लिखी थी और यह भी लिखा था कि उसे पढ़ने के बाद मेरा नंबर ब्लौक कर देना और मुझे भूल जाना.
महविश भी ये जान कर परेशान हो गई कि उस के घर वाले सिर्फ इसलिए उस की शादी सिराज से नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें डर है कि नाजों में पली उन की बेटी सिराज के कम सुविधा वाले घर में गुजारा नहीं कर पाएगी.
‘तो फिर ठीक है… मैं ने अगर सिराज से असली मुहब्बत की है तो मैं उसे पाने के लिए कुछ भी करूंगी,’ मन ही मन कुछ सोच लिया था महविश ने.
अगले दिन महविश ने अपने लिए एक नौकरी ढूंढ़नी शुरू की. उस ने सारे न्यूजपेपर देख डाले, मोबाइल फोन पर भी नौकरी खोजी, पर कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि यह एक छोटा कसबा था और कसबों में अमूमन नौकरियों की कमी रहती है. महविश उदास तो जरूर हुई, पर उस ने हिम्मत नहीं हारी.
‘‘अगर मुझे सिराज के साथ रहना है, तो मुझे अपनेआप को उसी के हिसाब से ढालना होगा,’’ अपनेआप से कह उठी थी महविश और उसी समय से महविश ने अपनी अलमारी से अपने महंगे कपड़े निकाल कर आसपास की जरूरतमंद लड़कियों को दे दिए और बाजार जा कर अपने लिए कम कीमत का सूती कपड़ा ले आई.
सिलाई और कढ़ाई पर तो महविश का हाथ साफ ही था, पायदान वाली मशीन पर बैठ कर अपने लिए 2 सूट सिल डाले और सिले हुए सूटों को पहनने लगी.
‘‘अब यह तुझे फिर से नया शौक क्या चढ़ गया है, जो ये सस्ते से कपड़े पहन रही है,’’ अम्मी ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं अम्मी… बस अपनेआप को ढाल रही हूं,’’ मुसकराते हुए महविश ने कहा.
महविश के इस जवाब का मतलब अम्मी को समझ नहीं आया, तो सिर हिलाते हुए वहां से चली गईं.
उसी दिन महविश ने अपना कमरा भी बदल लिया. उस ने अपने कमरे का सारा महंगा सामान निकाल कर नीचे स्टोररूम के बगल वाले कमरे में कर दिया.
‘‘अरे… कपड़े तक तो ठीक था, पर अब उस सीलन भरे कमरे में तो अपना लैपटौप और एलईडी ले जा रही है. ये सारे सामान तो सीलन से खराब हो जाएंगे,’’ अम्मी ने कहा.
‘‘कुछ नहीं खराब होगा अम्मी… क्योंकि मैं इन में से कोई सामान नीचे नहीं ले गई… मैं तो बस अपनी किताबें और अपनी कढ़ाईबुनाई का सामान ही ले गई हूं,’’ महविश ने जवाब दिया.
‘‘अरे, पर उस कमरे में एसी तो दूर, बल्कि एक अच्छा पंखा भी नहीं है… कैसे सोएगी तू वहां?’’ अम्मी की आवाज में झुंझलाहट साफ नजर आई.
‘‘अपनेआप को ढाल रही हूं अम्मी,’’ महविश ने फिर से मुसकराते हुए जवाब दिया. अम्मी को तो कुछ भी समझ नहीं आया, पर दादी उस की बात पर जरूर मुसकरा रही थीं.
महविश के दिमाग में क्या चल रहा था, वे समझ नहीं पाईं, पर इतना जरूर था, यह महविश अब पहले जैसी महविश नहीं थी. यह महविश जरूर अपनेआप को किसी और ही सांचे में ढालने की कोशिश कर रही थी, पर वे सांचा कौन सा था, यह अभी तक कोई नहीं जान पाया था.