हम ने घर के दरवाजे पर खड़े तीनों पुलिस वालों की ओर एक नजर बारीबारी से देखा.

‘‘यों उल्लू की तरह आंखें न घुमा... हमारे साथ थाने चल,’’ नुकीली मूंछों वाले एक कांस्टेबल ने कहा.

‘‘थाने में...’’ हम ने हैरानी से पूछा.

‘‘थाने नहीं तो क्या

हम तुझे होटल ले कर चलेंगे,’’ बड़ी दबंग आवाज में सबइंस्पैक्टर गुर्राया.

‘‘मगर, मेरा कुसूर क्या है?’’ हम ने सवाल किया.

‘‘बताऊं तेरा कुसूर...’’ सबइंस्पैक्टर फिर से गुर्राया.

हमारा कुसूर केवल इतना था कि महेशजी की बात मान कर ‘किराए के लिए खाली’ का बोर्ड लिखवाने के साथसाथ अपने नए मकान के कोने वाली दीवार पर पेंटर से ‘यहां पेशाब करना मना है’ भी लिखवा दिया था. फिर तो मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया था.

दूसरे दिन जब हम किसी किराएदार की राह ताकने को अपने मकान पर पहुंचे तो देखा कि कोने वाली दीवार के पास की धरती बगैर बारिश के गीली थी. जगहजगह लंबीलंबी धारें बनी हुई थीं.

हम अभी दीवार पर लिखी मनाही वाली चेतावनी पढ़ ही रहे थे कि एक महाशय जल्दी से आए और हम से थोड़ा हट कर पीठ फेर कर बैठ गए.

‘‘अरेअरे रुको... यह क्या कर रहे हो?’’ हम चिल्लाए.

उन्होंने खुद रुकने के बजाय हमें हाथ से रुकने का इशारा किया और कुछ देर बाद काम निबटा कर मुसकराते हुए हमारे सामने खड़े हो गए.

‘‘आप ने पढ़ा नहीं, यह क्या लिखा है?’’ हम ने दीवार की ओर उंगली उठा कर इशारा किया.

‘‘भाई साहब, आप के इस नोटिस बोर्ड को पढ़ कर ही मुझे एहसास हुआ कि मैं ने काफी देर से यह ‘नेक’ काम नहीं किया. इस नोटिस को पढ़ने के बाद मुझे अपनेआप पर काबू रखना मुश्किल हो गया,’’ उन्होंने दांत निकालते हुए बेशर्मी से कहा.

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