Story In Hindi: ‘‘बिटिया नीलू, आज काम पर तू ही चली जाना. मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ बूढ़े थपरू ने अपनी बेटी से कहा.
‘‘ठीक है बाबा, मैं ही चली जाऊंगी,’’ नीलू ने खुश हो कर कहा.
थपरू चौधरी सुखराम के खेतों पर काम करता था. अगर किसी वजह से वह काम पर नहीं जा पाता था, तो अपनी बेटी नीलू को काम पर भेज देता था. इस से उस की मजदूरी नहीं कटती थी.
जटपुर के चौधरी दलितों पर अपना हक ऐसे ही सम?ाते थे, जैसे अंगरेज हिंदुस्तानियों पर. चौधरी जमीनों के मालिक थे. उन के पास धनदौलत की कमी न थी. जो दलित अपनी मेहनत, हुनर या फिर सरकार की रिजर्वेशन पौलिसी की मदद से नौकरी पा गए थे, वे शहरों में जा बसे थे. रहेसहे दलित आज भी चौधरियों के खेतों पर मजदूरी करने के लिए मजबूर थे.
चौधरी सुखराम 60 बीघे का अमीर काश्तकार था. किसी चीज की कोई कमी न थी. सबकुछ बढि़या चल रहा था. उस ने अपनी दोनों बेटियों का समय से ब्याह कर उन को ससुराल भेज दिया था. दोनों बेटों खगेंद्र और जोगेंद्र की भी अच्छे घरों में शादी कर दी थी. खगेंद्र की 2 बेटियां थीं, जो स्कूल जाने लायक हो गई थीं.
धनदौलत किसे नहीं रिझती है? खगेंद्र ने नीलू को पटा लिया. वह उस के चंगुल में फंस गई. धीरेधीरे उन के संबंधों की चर्चा पूरे गांव में फैल गई.
बूढ़े थपरू ने नीलू को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन इश्क का भूत जिस पर सवार हो जाए, तो फिर आसानी से नहीं उतरता. उस के जवाब को सुन कर बूढ़ा थपरू भी अवाक रह गया.
नीलू ने भयावह हकीकत उगलते हुए कहा, ‘‘बाबा, मुझे क्यों रोकते हो? गांव में हमारी जात की कितनी ही लोंडियां और औरतें हैं, जो चौधरियों के लड़कों से नैन मटक्का करती हैं और उन के पैसों पर मौज करती हैं. उन से संबंध बना कर नाक ऊंची कर के चलती हैं.’’
‘‘करमजली, धीरे बोल. कमबख्त, वे ऐसा करती हैं तो नाशपिटी तू भी ऐसा ही करेगी. बुढ़ापे में कुलच्छिनी मेरी नाक कटाएगी…’’ थपरू ने कहा.
इस पर नीलू खूब हंसी. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘बाबा, दिखाओ तुम्हारी नाक कहां है? हमारी जात के लोग तो बिना नाक के पैदा होते हैं. नाक तो उन की कटती है जिन के नाक हो. नाक होती है चौधरियों की. उन की लड़की और औरत को हमारी जात का कोई लोंडा छू कर तो दिखाए…’’
‘‘चुप कर बेहया,’’ थपरू बोला.
‘‘मैं कोई तेरी गुलाम न हूं. कमा के लाती हूं और तब तेरा और अपना पेट भरती हूं. तेरे तो दोनों मुस्टंडे बेटे ब्याह कर के तुझ से अलग हो गए और तुझे मेरी छाती पर मरने के लिए छोड़ गए. अब मैं चाहे जो करूं, मुझे रोकने वाला कौन होता है. ले रोटी खा,’’ नीलू ने खाट पर थाली पटकते हुए कहा.
बूढ़ा थपरू नीलू की बात सुन कर सिहर गया. वह चुपचाप दाल के पानी में रोटी भिगो कर खाने लगा. नीलू गाय का दूध निकालने चली गई.
बूढ़ा थपरू सोच रहा था, ‘काश, मैं ने नीलू की शादी बेटों से पहले कर दी होती, तो आज यह दिन न देखना पड़ता.’
उधर नीलू को ले कर खगेंद्र के घर में भी कोहराम मचा हुआ था. खगेंद्र की पत्नी अनीता को यह बरदाश्त नहीं था कि उस का पति नीलू से किसी तरह का कोई संबंध रखे, लेकिन खगेंद्र के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.
शादी के 12 साल बाद भी अनीता खगेंद्र को बेटे का सुख नहीं दे पाई थी. और बच्चे जनने से उस ने मना कर दिया था. वह पढ़ीलिखी सम?ादार औरत थी. उस का कहना था कि बेटाबेटी एकसमान होते हैं. छोटा परिवार, सुखी परिवार.
लेकिन खगेंद्र के अंदर की जमींदारों वाली पुरानी सोच जोर मार रही थी, जहां वंश चलाने के लिए बेटा होना जरूरी था. वह नीलू को रखैल बना कर उस से बेटे का सुख चाहता था.
उस का बाप सुखराम और उस की मां नंदो भी उस के साथ थी. वे भी चाहते थे कि खगेंद्र अपनी इच्छा पूरी करे, लेकिन उस का भाई जोगेंद्र इस के सख्त खिलाफ था.
जब बखेड़ा बढ़ गया तो इस मामले को ले कर एक दिन गांव में पंचायत हुई. खगेंद्र की पत्नी अनीता ने साफसाफ कह दिया, ‘‘पंचो, कान खोल कर सुन लो… एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती हैं. अगर इन्हें उस नीलू के साथ रहना तो खुशी से रहें, मेरे हिस्से की जमीनजायदाद मुझे दे दी जाए. मैं उसी से अपनी बेटियों और अपना पेट पाल लूंगी.’’
खगेंद्र और सुखराम को इस में कोई एतराज नहीं था. वे इस के लिए राजी हो गए. पंचायत में हुए समझौते के मुताबिक पहले जमीन 3 हिस्सों में बंटी. 25-25 बीघा जमीन खगेंद्र और जोगेंद्र के हिस्से में आई और 10 बीघा जमीन सुखराम को मिली.
खगेंद्र की जमीन के 2 हिस्से हुए. आधी जमीन यानी साढ़े 12 बीघा जमीन अनीता के हिस्से में आई. बाकायदा पंचायत के समझौते के मुताबिक सारी जमीनों के बैनामे लिखे गए, जिस से आने वाले समय में कोई झगड़ा न हो. अनीता और खगेंद्र का तलाक हो गया.
खगेंद्र ने नीलू से कोर्ट मैरिज कर ली और वह उस के साथ शहर में रहने लगा. उस के मांबाप भी उस के साथ आ गए.
गांव में रहने और शहर में रहने में जमीनआसमान का फर्क होता है. शहर में रह कर गांव में जा कर खेती करना खगेंद्र के बस की बात न थी, इसलिए उस ने और सुखराम ने अपनी जमीन बंटाई पर उठा दी.
बंटाईदार सालभर में पैसा पहुंचाता तो कुछ दिन तो मौसम बासंती रहता. खगेंद्र और नीलू खूब मौज उड़ाते. सुखराम भी चौधरी बना घूमता. अंगरेजी शराब की दुकान के चक्कर लगाता.
खगेंद्र भी खाली था. वह दोस्तों के साथ खूब पार्टी करता और फिर पैसा खत्म होते ही कर्जा लेने की शुरुआत होती.
लेकिन ऐसा कब तक चलता और कर्जा पहाड़ सा होता गया. जमीन का एक टुकड़ा बेचने के सिवा कोई रास्ता न था. जमीन बेचने का रोग एक बार लग जाए, तो फिर छूटता नहीं. पहले सुखराम की जमीन बिकी, फिर धीरेधीरे खगेंद्र के खूड़ बिकने लगे.
उधर सब से बड़ी चिंता की बात यह थी कि नीलू के बेटा छोड़ बेटी भी पैदा नहीं हो रही थी. खगेंद्र ने नीलू का बहुत इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बेटे से वंशबेल चलाने की बात तो बहुत दूर जमीन, जायदाद, जमींदारा सब जाता रहा.
सुखराम की चौधराहट की चूल हिल गई. वह एक आरा मशीन पर चौकीदार हुआ. उसे बहुत पछतावा हुआ कि उस के गलत फैसले से सबकुछ बिखर गया. उसे खगेंद्र को रोकना चाहिए था, लेकिन पुरानी जमींदारी सोच उसे ले डूबी.
खगेंद्र कोई छोटा काम करने से हिचकता था. अभी तक वह शान से जमींदारों वाली जिंदगी जीता आ रहा था, अब पेट पालने के लिए क्या करे, सबकुछ तो वह गंवा बैठा था.
तब एक दिन नीलू ने उसे खरीखोटी सुना दी, ‘‘बड़ा शौक पाल रखा था दूसरी औरत रखने का. अब कुछ करने के नाम पर मां मरी जाती है.’’
ऐसा कब तक चलता. एक दिन खगेंद्र की लाश नहर में तैरती मिली. किसी ने इसे खुदकुशी का मामला बताया, तो किसी ने नीलू की करतूत. गरीब आदमी का मुकदमा कौन लड़ता है. जोगेंद्र ने खगेंद्र का अंतिम संस्कार कर पल्ला झाड़ लिया.
सुखराम पहले ही अपने बेटे खगेंद्र से अलग रहने लगा था. नीलू दूसरों के घरों में झाड़ूपोंछा कर गुजरबसर करने लगी. फिर एक बूढ़े सेठ ने उसे अपनी सेवा में रख लिया. उस के बेटे विदेश में रहते थे और उस की कोई परवाह नहीं करते थे.
बूढ़े सेठ ने बेटों से चिढ़ कर और नीलू की सेवा से खुश हो कर अपनी बहुत सी जायदाद उस के नाम कर दी.
एक दिन बूढ़ा चल बसा. नीलू के दिन सुखचैन से कटने लगे. लोग उसे अब ‘सेठानी’ कह कर पुकारते हैं. Story In Hindi