रोहरानंद से रहा नहीं गया दशानन के पास पहुंच हाथ जोड़कर पूछा,- महात्मन क्या इस नाचीज को एक प्रश्न का जवाब मिलेगा ? हे मनीषी! ज्ञान के सागर!! कृपया, मेरी जिज्ञासा को शांत करें .
दशानन ने सर नीचे कर कहा,- अब अंतिम वक्त में, क्या पूछना चाहते हो .अच्छा होता, दो-चार दिन पूर्व आते.
रोहरानंद ने नम्र स्वर में कहा,- हे वीर, दशानन! प्लीज... अगर आप मेरी जिज्ञासा शांत नहीं करेंगे तो मेरा दिल टूट जाएगा...
रावण के मुखड़े पर स्मित हास्य तैरने लगी-
-'अच्छा ! अपनी जिज्ञासा शांत करो । पूछो वत्स...'
दशानन की मधुर वाणी से रोहरानंद को आत्म संबल मिला और उसने खुलकर प्रश्न किया, हे रिपुदमन!कृपया मुझे यह बताएं, कि आपके चेहरे पर इतनी सौम्यता कहां से आई, इस आभा का रहस्य क्या है ? आपको देखने मात्र से हृदय को बड़ी ठंडक महसूस होने लगी है.
दशानन - ( हंसते हुए ) बस.हम तो तुम्हारे प्रश्न पूछने के अंदाज से भयभीत हो गए थे.जाने क्या जानना चाहता है... हम यही सोच रहे थे.
रोहरानंद,- महात्मा रावण! मैं ने जो महसूस किया उसी जिज्ञासा का शमन चाहता हूं.
दशानन- ( सकुचाते हुए ) वत्स! संभवत: इसका कारण मेरे निर्माता आयोजको का मन है. तुम नहीं जानते,रावण दहन कमेटी के पदाधिकारी स्वच्छ, सरल हृदय के लोग हैं उनकी प्रतिछाया में मैं भी सरल और सादगी को अंगीकार किए हुए हूं.
रोहरानंद प्रसन्न हुआ,दशानन ने आत्मीयता से हाथ मिलाया उसे गर्माहट महसूस हुई.
कहा,-दशानन ! क्या मैं आपका सेल्फी प्राप्त कर सकता हूं.
दशानन मुस्कुराए - क्यों नहीं. हमारी मित्रता की यह अविस्मरणीय स्मृति होगी.
रोहरानंद पुरानी बस्ती पहुंचा. एक निरीह रावण खड़ा था, देखते ही दया आने लगी. रोहरानंद ने पास पहुंच विनम्र स्वर में कहा,- मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं ?