कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘अंकल, आप कैसी बातें कर रहे हैं? आप की इज्जत मेरी इज्जत. रमा मेरी पत्नी बने, मेरे लिए गर्व की बात होगी.’’

विजय की बात सुन कर रमा के मन में फिर से एक बार कंपन हुई. इस कंपन में प्यार के साथ सम्मान भी था और आभार भी. विजय ने अपने घर में दोटूक उत्तर दिया, ‘‘मैं रमा से ही शादी करूंगा. यह मेरा पहला और आखिरी फैसला है. आप मना करेंगे तो भी मैं शादी करूंगा, चाहे कोर्ट में ही क्यों न करनी पडे़?’’

विजय के परिवार के लोग भी सहमत हो गए. शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. रमा खुश थी, बहुत खुश. उसे बचपन से जवानी तक देखाभला युवक पति के रूप में मिल रहा था. रही विजय के बेरोजगार होने की बात, तो रमा के पिता ने स्पष्ट कह दिया कि ऐसे नेक लड़के के रोजगार लगने की प्रतीक्षा की जा सकती है. यदि नौकरी नहीं मिली तो अपनी जमा पूंजी से विजय के लिए रोजगार की व्यवस्था मैं करूंगा.

रमा के मोबाइल की रिंगटोन बजी. रमा ने मोबाइल उठा कर पूछा ‘‘हैलो कौन?’’

‘‘आप का शुभचिंतक.’’

‘‘नाम बताइए.’’

‘‘मैं बंगाली बाबा. आप को वशीभूत करने के लिए एक व्यक्ति ने मुझे रुपए दिए थे. यदि आप नाम जानना चाहें तो 10 हजार रुपए मेरे अकाउंट में जमा करवा दीजिए.’’

‘‘मुझे नहीं जानना.’’

‘‘हो सकता है जो तंत्रमंत्र के द्वारा आप का वशीकरण चाहता हो, कल आप को दूसरे तरीके से भी नुकसान पहुंचा दे.’’

‘‘कौन है वह?’’

‘‘पहले अकाउंट में रुपए.’’

‘‘आप सच कह रहे हैं, इस का क्या सुबूत है?’’

‘‘मेरे पास आप का फोटो, घर का पता, मातापिता का नाम, सारी जानकारी है आप की.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...