मोनिका के बिना यहां इस सर्कस में इतना टिक पाना उस के लिए तकरीबन असंभव ही होता. मालिक भी तो यही देख रहा था कि वह कब तक यहां रहना सहन करता है. कभीकभी उस को यह लगता कि पूरी दुनिया में, बस, यह एक मोनिका ही तो है जो उस के अकेलेपन को पहचानती है, उस के भीतर घुमड़ रहे उन खामोश बादलों को सुन पाती है जिन्हें केवल उस का उदास बिस्तर सुन पाता है या तकिया और यह वह मोनिका से पहले शायद अपने अकेले में सुनता रहा.
पहले जिन महिलाओं के दामन में वह भीग कर तर हुआ था वे सब इतनी मुलायम नहीं थीं, न दिल के स्तर पर और न ही गुफ्तगू के स्तर पर.
यों आज तक उस ने कभी भी अपने लिए एक मनपसंद जीवन की कामना नहीं की थी, वह लगभग 40 वर्ष का हो चला था. मालिक के पास रह कर काम करतेकरते उस को 20 साल हो गए, पर उस के मन में काम को ले कर कभी खीझ पैदा नहीं हुई. वह रांची से भोपाल, ओडिशा से हैदराबाद, गाजियाबाद से लखीमपुर खीरी कहांकहां नहीं रहा. कोई शहर, गांव या इंसान उस को सब मजा ही मजा मिलता रहा. रहनसहन के मामले में तो वह हमेशा एकजैसे ही रहा- टीशर्ट और जींस. फैशनेबल कपड़ों के मामले में उस के मन का मिजाज कभी भी विचलित नहीं होता. शायद, यही उस का खास अंदाज रहा जो सब, खासकर आजकल मोनिका, को भी मोहित कर जाता है.
मोहित करना भी तो भ्रम में रखना ही है और सच पूछा जाए तो हर एक इंसान को जी सकने के लिए सांसों के साथ भरपूर भ्रम भी चाहिए, वरना ज़िंदगी उसे सत्य की पहचान करवा कर किस अवसाद में या किस मुसीबत में डाल दे, पता नहीं.
बहुत कम लोग हैं जो उस की तरह अपना सच जान कर भी उस को सम्पूर्ण रूप से किसी भ्रम के परदे से ढक कर जीवन का फ़ायदा उठा कर आनंद के द्वार पर पहुंचते हैं.
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