मोनिका जिस दोपहर को चादरें ले गई थी, उसी दिन की शाम उस को बारबार कहीं भगा कर ले जाती. उस रात उस की रात में भी, बस, रात ही रात थी. फिर भोर हुई, दिन चढ़ा और एक फोन आया. हालांकि वह औपचारिक फोन था मगर जब 2-3 चादरों के गड़बड़ और उन में कुछकुछ घिसे हुए प्रिंट को ले कर मोनिका ने शिकायतभरा फोन किया तो उस ने घर का सब अतापता पूछ कर खुद ही सही, सुंदर, सुघड़ छपाई की नईनई चादरें उस के घर पर जा कर अपने हाथों से मोनिका के हाथों में दी थीं. तब से करीबकरीब वह 4 बार तो वहां जा ही चुका था.
एक दिन जब वह मोनिका के घर पर भोजन और शयन कर के चाय की चुस्कियां ले रहा था तभी मोनिका के दरवाजे पर एक बरतन वाला आ गया. पुराने कपड़े के बदले बरतन बेचने वाला वह धंधेबाज मोनिका को उस की 3 पुरानी चुन्नियों के एवज में एक कटोरी पकड़ा गया. उस के जाने के बाद मोनिका को ऐसा लगा कि वह ठगी गई है.
तब उस ने मोनिका के गालों को सहलाते हुए कहा था कि मोना, जाने दो न, भूल जाओ, दूसरों को मूर्ख बना कर खुश होने वाला अंत में पछताता है. हमारी उदासी और खुशी हमारे सोचने पर और मन की दशा पर निर्भर करती है. अपने कष्ट के लिए औरों को दोषी कहने वाला रोज कष्ट में रहता है. सुखदुख कुछ नहीं है, हमारा चुनाव है मोना. वह मन ही मन हंस रहा था कि गोवा की डेल्मा का कहा उस को हूबहू याद रह गया, वाह.
मोनिका ने उस के चुप होने का इंतजार किया और यह कीमती सलाह सुन कर उस को प्यार से एक मधुर चुंबन दिया. ओह, मोनिका…
वह हौलेहौले मोनिका का कितना आदी होता जा रहा था. मोनिका के साथ उस को जीवन एकदम से ही सरस और मधुमय लगने लगा था. कभी लगता कि इसीलिए हर मधुरता भी एक हद तक ही रहती है, कहीं यह समय गुजर न जाए. फिलहाल भले ही चादरों का ही बहाना होता था मगर उस को लगता कि यह तकदीर का संकेत था. उस के इस तुच्छ से प्रेमिल संसार में भले ही किसी महान हीरो वाला का पुट न हो, भले ही मोनिका को ले कर वह, बस, कोई सपना ही देख रहा हो पर आज तो ये सब अनुभूतियां ही उस के जीवन को रोमांचक बना रही हैं.
एक रात जब चांदनीरात जैसे दूध में नहा कर भीग रही थी और काठगोदाम के कुछ पहाड़ सफेद हो कर दूर से ही चांदी जैसे चमक रहे थे, नीचे रानीबाग की तरफ गौला नदी का शोर संगीत सा लग रहा था. उस ने अपना फोन लिया और मोनिका के नंबर पर लगा दिया. मगर डरकर दोबारा नहीं किया. तो उसी समय मोनिका ने ही फोन कर दिया, पूछने लगी, “ओ बुद्धू सेल्समैन.”
“अ,हां,” उस ने घबरा कर कहा.
“इस समय फ़ोन कैसे किया?”
“बस, यह बताना था कि आज शाम ही चादरों की एक नई गांठ आई है. तुम अपनी किटी की 7-8 सहेलियों के लिए कह रहीं थी न. बिलकुल रोमांटिक छपाई है.”
“कैसी रोमांटिक, यह कैसी छपाई होती है, मैं नहीं समझी?”
“अब यह तो उन को छू कर पता लगेगा.”
“अच्छा, बुद्धू सेल्समैन, जब तुम ने छुआ तो तुम को कैसा लगा, यह तो बताओ?” मोनिका की आवाज में बहुत शरारत थी.
वह दीवाना हुआ जा रहा था. पर अब आगे और कुछ भी बात नहीं करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि मिनटदोमिनट बाद ही सही फोन तो बंद करना ही होगा. उस ने बहाना बना कर अलविदा कहा, फोन बंद कर दिया.
पर वह साफसाफ कल्पना कर पा रहा था कि खुले हुए बाल कभी मोनिका के गालों से तो कभी उस की गरदन पर खेल रहे होंगे. वह वहां होता तो अभी वह गरमागरम… वह फिर अपना ध्यान हटा कर कहीं कुछ और ही सोचने लगा.
सर्कस की अपनी भोजन व्यवस्था थी. वहां सुबह चायपोहा, दोपहर में दालरोटीखिचड़ी, शाम को चायपकौड़े और रात को रस वाले आलू-तेल के परांठे मिलते थे. साथ ही, मालिक उस को एक प्लेट राजमाचावल खाने के पैसे अलग से रोज नकद दिया करता था. पर यहां मोनिका के हाथों के भरवां करेले, आलूशिमलामिर्च, आलूमटरगोभी का स्वाद ही निराला था.
कुल मिला कर जिंदगी का हर पल यहां चादर की दुकान और टैंट में मोनिका के बगैर एक बहुत बरबाद चीज़ ही साबित हो रही थी. बहुत बोर. रोज़ चादरों की तह करो और उसी तह में तहमद बनते रहो. कहीं कोई रंग नहीं, कोई रस नहीं. मशीनी हाट और मशीनी काम. यह जीना भी कोई जीना था. हां, अब दुनिया में हर कोई अपना एक जीवन तो चुन ही लेता है और बाकी बारहखडी़ भी उसी हिसाब से तय होती जाती है.
एक दिन उस के लिए कितना भावुक करने वाला पल आया था कि जब मोनिका उस से खुद को कुछ सैकंड के लिए अलग कर के शायद कहीं शून्य में खो गई और एक गीत ‘रोजरोज आंखों तले एक ही सपना चले’ बस, इतना सा टूटाफूटा गुनगुना कर वह कुछ देर चुप रही और पलंग के नीचे कच्चे फर्श को ताकने लगी. वहां अपनी आंखों की कलम से ज़मीन पर कुछ चित्र बनाती रही, फिर अचानक बोली, “हां, जो भी हो, उम्मीद तो बना कर रखनी चाहिए. सब खत्म होने तक भी अच्छे होने की उम्मीद करते रहना, कुदरत का फरमान है. देह भले ही कितनी उम्र पार कर चुकी हो, तो भी उम्मीद को जवानी का एहसास छू कर रखना चाहिए, अगर कहीं यह कमजोर देह डगमगा गई और हमारा आत्मबल मुंह के बल गिर पड़े. तो चट संभल जाए. इस तरह जीवन के कंधे पर निराशा का बोझ नहीं पड़ता.”
मोनिका से यह सब सुन कर उस को अचंभा हुआ और फिर वह भी मोनिका के सुर मे सुर मिला कर बोल पड़ा, “हां मोनिका, हरेक पल को स्वीकार करना जरूरी है. स्वीकृति ही तो हर चीज से मुक्त कर देती है. यही रास्ता है. स्वीकृति सहनशीलता से कहीं ज्यादा बेहतर है. लेकिन अगर हम जागरूक नहीं हैं, अगर स्वीकार करना आप के लिए संभव नहीं है और आप हर छोटीछोटी चीज के लिए भी चिड़चिड़ा जाते हैं तो उस से बचने के लिए कम-से-कम कुछ सहनशीलता तो विकसित कर ही लेनी चाहिए. मैं ने आज तक यही माना कि यह जीवन, बस, एक सहनशीलता पर ही टिका है. मैं खुद कितनी छोटी उम्र से कैसे शहरशहर किसी का नौकर बन कर जूझ रहा हूं. मगर मैं हमेशा यही देख पाता हूं कि कोई चीज सुविधाजनक नहीं है, तो उस के बारे में शिकायत करने का क्या लाभ. सब स्वीकार कर लो, यही सब से अच्छा और आरामदायक रास्ता है.”
यह सुन कर मोनिका उस से कैसे लता सी लिपटती गई थी. तब से मोनिका के हर स्पर्श में उस को एक कोमलता लगती. उसे बारबार महसूस होता कि वह एक पोखर है और उस के समूचे उदास पानी में वह एक लहर पैदा कर देती है. वह अब एक ऐसी महत्त्वपूर्ण चीज थी जो परिभाषित तो नहीं हो पा रही थी पर वह कुछ ऐसी तो थी जो उस के मर्म पर और आंतरिक इच्छा पर राज करने लगी थी.