बाला सिंह का चेहरा गंभीर हो गया. उसे बीती बातें याद आने लगीं. एक समय था, जब सारा इलाका उन का रोब मानता था, जब बिना कीमत का सामान मिल जाता था. हालांकि थोकदारी रिवाज के अनुसार गांव में लड़ाईझगड़ों की पंचायत अब भी वह खुद ही करते हैं, लेकिन अब समाज में बहुत बदलाव आ गया है. यह सोचतेसोचते बाला सिंह ने एक लंबी सांस खींची. उन का सोया मन फिर से सारे गांव को अपने काबू में रखने के लिए मचलने लगा.
बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वे बोले, ‘‘पंडितजी, आप का विचार है कि गांव में ब्राह्मण की इज्जत नहीं रही?’’
‘‘हां, नहीं रही,’’ कह कर भोला पंडित चारों ओर देखने लगा.
‘‘ऐसा कहने की कोई वजह भी है? क्या हमारे बरताव में आप ने कोई बदलाव देखा?’’
‘‘राम… राम… राम… आप भी कैसी बात करते हैं,’’ भोला पंडित ने बात काटते हुए कहा, ‘‘आप भला ऐसा कैसे कर सकते हैं. मैं तो गांव वालों की बात कह रहा था.’’
‘‘मेरे जीतेजी किस ने आप की बेइज्जती करने की हिम्मत की? आप बताइए, मैं उसे कड़ी सजा दूंगा,’’
बाला सिंह भोला पंडित की ओर देख कर बोले.
‘‘कहना ही पड़ता है,’’ भोला पंडित अपनी आवाज में दया उभारते हुए सिर खुजलाने लगा, ‘‘आज सुबह शंकर भगवान को जल चढ़ाने जा रहा था. रास्ते में चमेली मिल गई. भगवान भजन का समय था. मैं ने उस की ओर आंख उठा कर भी न देखा. लेकिन, वह मेरे साथ दिल्लगी करने लगी. अब आप ही
कहें, यह ब्राह्मण का अपमान नहीं तो और क्या है?’’
यह कोई नई बात नहीं थी. आजकल इन जातियों के लड़कों में से कुछ अच्छा कमाने लगे हैं और लड़कियां भी पढ़ने लगी हैं. गांव के पास वाले कसबे में जिम भी है, ब्यूटीपार्लर भी है और ये लोग वहां भी चले जाते हैं. आसपास के गांवों के लड़केलड़कियों के खेलों में नाम कमाने की खबरें भी आने लगी हैं. कुछ तो पुलिस अफसर भी बन गए है. हालांकि उन्हें अभी मनपसंद काम नहीं मिल रहा था.
बाला सिंह को चिंता होने लगी. ब्राह्मण से चमेली का यह बरताव उन्हें अपनी इज्जत के ऊपर चोट लगा. परंपरा ने ‘ठाकुर’ को ‘ब्राह्मण’ की इज्जत का रखवाला माना है. खुद भोला पंडित कई बार इस बात को कह चुका था. इतना सोचतेसोचते बाला सिंह गुस्से में बोल उठे, ‘‘इस गांव में यह अधर्म नहीं
होगा, पंडितजी. मैं चमेली को इस की सजा दूंगा. आप निश्चिंत हो कर पूजापाठ कीजिए.’’
उसी सांझ को दलिया लोहार की पेशी हुई और वह हाथ जोड़ कर बाला सिंह के दरवाजे पर गिड़गिड़ा रहा था, ‘‘मुझे माफ कीजिए, सरकार. मेरी लड़की अभी नादान है. अब की बार उसे माफ कीजिए.’’
‘‘उसे समझा दो,’’ बाला सिंह ने डांटते हुए कहा, ‘‘अगर फिर कभी
ऐसा बरताव किया, तो इस गांव में रह नहीं पाओगे.’’
दलिया लोहार को बाला सिंह के पैर पकड़ने पर माफी मिल गई. लेकिन चमेली की जवानी का बहाव तो इस से रुकने को न था. दिन पर दिन उस के अंगअंग में निखार आता गया और उधर भोला पंडित चमेली द्वारा बेइज्जती किए जाने की घटना को बारबार याद करता रहा. उस का पूजापाठ में मन न लगता. मंदिर में पूजा के लिए ज्यों ही आंख मूंद कर वह मन स्थिर करने की कोशिश करता, त्यों ही चमेली की जवानी उस की आंखों में झूम उठती.
उधर चमेली की सहेलियों ने मोरचा संभाल लिया. उन्होंने ठान लिया कि वे मनमानी नहीं होने देंगी. बस बड़ेबूढ़ों तक पहुंची तो लोहार टोले में नाराजगी हुई. वे जानते थे कि उन के कुछ ज्यादा कहने पर कुछ न होगा. कम से कम अब तक तो नहीं हुआ, पर लड़कियों और लड़कों ने कुछ और अंजाम देने का फैसला किया.
अब यह दिखने लगा था कि भोला पंडित चमेली पर नजर रख रहा है. अब वह चमेली को कहीं अकेले में पाने का मौका ढूंढ़ने लगा. किंतु चमेली भोला पंडित को देख कर कभी देखती तो कभी भाग जाती.
भोला पंडित जितना नजदीकी चाहता, चमेली कुछ आती, पर उतनी ही दूर होती जाती.
भोला पंडित ने सोचा कि एक ही गांव में कब तक ताकतवर द्वारा पीछा किए जाने के मौके को टाला जा सकता है. आखिर एक सांझ को जब चमेली खेतों से काम निबटा कर अकेली घर लौट रही थी, तो उसे रास्ते के साथसाथ उगी हुई झाडि़यों में किसी जंगली जानवर के हिलनेडुलने का शक हुआ. वह ज्यों ही गौर से देखने के लिए खड़ी हुई, भोला पंडित झाड़ी से निकल रास्ता रोक कर खड़ा हो गया.
चमेली को मालूम था कि ऐसा होगा. उस ने अपने पीछे खड़ी लड़कियों को इशारा कर दिया.
चमेली दिखावे के डर से कांप उठी. उस ने चारों ओर निगाह दौड़ाई. उसे कोई दिखाई नहीं पड़ा. फिर भी वह झल्ला कर बोली, ‘‘मेरा रास्ता क्यों रोकते हो?’’
‘‘रास्ता रोकना क्या कोई जुर्म?है, पगली,’’ भोला पंडित ने बड़े भोलेपन से कहा, ‘‘यहां तो मैं दिनरात तुम्हारा नाम जपता हूं और तुम पूछती हो कि रास्ता क्यों रोका? न जाने भगवान कब तुम्हें अक्ल देंगे?’’
चमेली सिसकने का नाटक करने लगी, ‘‘हाय राम, तुम पुजारी हो, भगवान के भक्त हो, मैं अछूत हूं. मुझे छेड़ते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती.’’
भोला पंडित मुसकरा कर बोला, ‘‘शर्म काहे की पगली. ऐसा ही होता है,’’ और चमेली की बांह जबरदस्ती पकड़ते हुए भोला पंडित बोला, ‘‘अछूत तो तुम हो, तुम्हारा रूप तो अछूत
नहीं है.’’
चमेली अपने को भोला पंडित से छुड़ाने के लिए छटपटाती रही, लेकिन उस ने उसे अपनी मजबूत बांहों में कस लिया. पर तभी बहुत सारे लोग खेतों से निकल आए. सब के हाथों में मोबाइल थे. सब ने भोला की ये हरकतें कैद कर ली थीं. सब ने अब फैसला किया कि भोला को अदालत में जाना पड़ेगा. केस तो होगा ही.
भोला पंडित के चेहरे का रंग उड़ गया, पर चमेली ने एकदम केस इसलिए नहीं किया, क्योंकि उसे मालूम था कि पुलिस और प्रशासन उस पर तरहतरह का दबाव डालेंगे और उसी को गिरफ्तार कर लेंगे. वह और उस के साथी चतुराई से खेल खेलना चाहते थे. बात फैल गई. पर रेप किस ने किया था?
किसी ने अंदाजा लगाया,’’ ‘‘मंगल सिंह का होगा, बड़ा हंसहंस कर बातें करता था.’’
‘‘हो नहीं सकता,’’ दूसरे ने बात काट कर कहा, ‘‘ठाकुर के बेटे का काम होगा.’’
‘‘खैर, जिस का भी हो,’’ पहला बोला, ‘‘लेकिन, लड़की की इज्जत को बिगाड़ दिया.’’
तीसरे ने सुना तो बोला, ‘‘यह तो अधर्म है, इसीलिए तो अकाल पड़ते हैं. पंचायत होनी चाहिए और चमेली को सजा मिलनी चाहिए.’’
दूसरा बोला, ‘‘पुलिस तो हमारी मुट्ठी में है. केस दर्ज ही नहीं होने देंगे.’’
रहरह कर लोग पंचायत किए जाने के लिए कहने लगे, ताकि मामला अखबारों और अदालतों में जाने से बच जाए.
पंचायत बुलाई गई. लोग एकएक कर के चौपाल में इकट्ठे हो गए.
चमेली भी आ गई. गांव के रिवाज के अनुसार बाला सिंह फैसला करने वाले आसन पर बैठे. चमेली को बीच में खड़ा कर वे बोले, ‘‘ईश्वर को गवाह मान कर बताया, ‘क्या तुम्हारे साथ रेप की कोशिश की गई? या तुम ने खुद पैसों के लिए बदन बेचना चाहा था?’ अगर झूठ बोलोगी, तो पाप लगेगा,’’
सब की नजरें चमेली पर जम गईं. चमेली की आंखों में गुस्सा भरा था.
‘‘बताती क्यों नहीं?’’ बाला सिंह गरज उठे. उन के गुस्से भरे चेहरे को देख कर लोगों में सन्नाटा छा गया.