सरकारी बाबू अपने नीचे काम करने वाले मुलाजिमों से अपने घरेलू काम कराने में शान समझते हैं. सरकारी बाबू जनता का काम बगैर घूस लिए नहीं करते और औफिस के सामान को अपनी निजी जागीर समझते हैं. झांसी के रेलवे वैगन मरम्मत कारखाने में तो यह बीमारी खतरनाक लैवल तक पहुंच चुकी थी. कारखाने के डायरैक्टर, रामसेवक (आरएस) उर्फ पांडेयजी, कहने को एक कर्मकांडी ब्राह्मण थे और जो गीता और उपनिषदों की बातें करते थे, लेकिन गरीब मुलाजिमों का खून पीने में उन का धर्म भ्रष्ट नहीं होता था. वैगन मरम्मत कारखाने में वैगनों को आगेपीछे करने (शंटिंग) के दौरान हुए हादसे में मनिपाल नाम के एक दलित मुलाजिम की मौत हो गई. जिस तरह किसी जानवर की मौत से गिद्धों को भोज मिलता है, वे जश्न मनाते हैं, उसी तरह कारखाने के बाबुओं की खुशी का ठिकाना नहीं था.

बीमा के पैसे और फंड निकलवाने के बदले उन्होंने मनिपाल की विधवा पत्नी राजश्री से तगड़ी रिश्वत वसूल की.  इस घटना के 2 साल बाद, 18 साल का होते ही, मनिपाल के बेटे मोहित को अपने पिताजी की जगह चपरासी की नौकरी मिल गई. पांडेयजी को मानो इसी दिन का इंतजार था.

किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई और उन्होंने मोहित को औफिस में जौइन कराने के साथ ही उसे अपने बंगले पर हमेशा के लिए बंधुआ मजदूर की तरह अपनी पत्नी और बच्चों की खुशामद में लगा दिया. वैसे, पांडेयजी ‘मनुस्मृति’ में विश्वास करते थे, वे दलित को अपने पैर की जूती समझते थे, लेकिन घरेलू काम कराने की मजबूरी में उन्होंने मोहित का उपनयन संस्कार कर, अपने मतलब भर के लिए उसे अछूत से सामान्य बना लिया. पांडेयजी की बड़ी बेटी श्वेता बहुत ही अक्खड़ थी और मोहित से गुलामों की तरह बरताव करने में उसे जातीय मजा आता था.

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