‘‘अब उन्होंने ऐसा क्या कर दिया, जो आप ने अपनी सारी शर्म बेच खाई. मेरे पिताजी हैं वे और आप उन्हें इतना गंदा बोल रहे हैं,’’ हरपाल की बीवी दयावती ने अपना माथा पीटते हुए कहा.

‘‘ज्यादा चपरचपर मत कर. तेरा भाई कौन सा कम है. बहन का… इतने साल हो गए शादी को, मेरी कोई इज्जत ही नहीं है,’’ हरपाल दारू की बोतल नीट ही गटकते हुए बोला और फिर बच्चों के सामने ही गालियां बकने लगा.

हरपाल कुछ साल पहले ही गांव से दिल्ली आया था. ट्रांसपोर्ट का धंधा था, जो चमक गया. पैसा तो आ गया, पर

यह जो गाली देने की लत लगी थी, वह नहीं गई.

दयावती मौके की नजाकत सम?ाते हुए रसोईघर में चली गई थी. वह ऐसा ही करती थी, जब भी हरपाल का दिमाग फिरता था, वह गूंगी गाय बन जाती थी.

कुछ भी हो, दयावती दया का भंडार थी. हरपाल से उस की शादी 20 साल पहले हुई थी. अब वह 3 बच्चों की

मां बन गई थी, पर कोई भी ऐसा दिन नहीं था, जब हरपाल दयावती के घर वालों को गंदीगंदी गालियां नहीं देता था. उन्हें ही क्या, हरपाल, जो कहने को दिल्ली की मालवीय नगर कालोनी में रहता था, अपने पड़ोसियों पर भी बिना कुछ सोचेसम?ो गालियों की बौछार कर देता था.

यही वजह थी कि कोई भी पड़ोसी हरपाल के घर से बच कर ही निकलता था. हैरत की बात तो यह थी कि हरपाल के बच्चे भी उसी की राह पर थे. बड़ी बेटी मोनिका 18 साल की थी और कालेज के पहले साल में पढ़ रही थी. हरपाल का बेटा शेखर 15 साल का था और एक बढि़या प्राइवेट स्कूल में पढ़ता था. उसी के साथ 12 साल की छोटी बहन संगीता भी पढ़ती थी.

हरपाल के बातबात पर गाली देने की वजह से उस के बच्चे भी हाथ से निकल गए थे. शेखर तो हरपाल से ही भिड़ जाता था. पढ़ाई में वह निल बटे सन्नाटा था, पर गाली देने में अपने बाप का भी बाप.

एक दिन तो शेखर ने घर के बाहर खड़े हो कर अपने बाप को ही गाली देदे कर नंगा कर दिया था. दोनों में खूब मांबहन की हुई थी. बीच में कुछ पड़ोसी आ गए थे, बापबेटे को चुप कराने के लिए, पर हरपाल और शेखर ने उन्हीं पर गालियों की बौछार कर दी. पड़ोस में रहने वाले गुप्ताजी तो इतने डर गए थे कि कुछ दिनों के लिए परिवार के साथ पहाड़ों पर कहीं घूमने चले गए थे.

एक दिन तो मोनिका अपनी सोसाइटी के सिक्योरिटी गार्ड से ही भिड़ गई थी. दरअसल, वह डीप कट का सूट पहन कर कालेज जा रही थी. उस के उभार उछल रहे थे.

गार्ड सीने पर हाथ रख कर बोला, ‘‘इतना भी मत उछाल कि बाहर ही न आ जाएं.’’

जब मोनिका ने उस गार्ड की तरफ देखा, तो वह दाएंबाएं देखने लगा. मोनिका मां की गाली देते हुए बोली, ‘‘ज्यादा मर्द बनता है न. इतना कस कर दबाऊंगी कि फिर खड़ा रहने लायक नहीं बचेगा.’’

यह कहानी अकेले हरपाल के घर की नहीं है, बल्कि पूरे भारत में गाली देने वालों की भरमार है. कुछ लोग तो अपने मवेशियों तक को भी मांबहन की गालियां देने से गुरेज नहीं करते हैं.

90 फीसदी से ज्यादा गालियां लड़कियों और औरतों के नाजुक अंगों से जुड़ी होती हैं. गालीगलौज मर्दों में होता है, पर शरीर औरतों का उघाड़ा जाता है. मांबहन, चाचीताई, सालीभौजाई सब के नाम से खूब गालियां बनी हुई हैं.

पर हरपाल जैसे परिवारों की अक्ल पर तो जैसे पत्थर पड़े होते हैं. बदला लेने के लिए होता है. किसी को काबू में रखने के लिए, किसी को डराने के लिए, किसी को सरेआम अपनी ही नजरों में नीचा गिराने के लिए, सिर्फ मजा लेने के लिए वे सब के सामने धड़ल्ले से गालियों का इस्तेमाल करते हैं.

बीए में पढ़ने वाली मोनिका का भी यही सोचना है. वह कहती है, ‘‘हम लड़कियां वे सभी गालियां देती हैं, जो लड़के देते हैं. ओटीटी प्लेटफार्म पर आने वाली फिल्मों और सीरियलों ने गालियों को ‘कूल’ बना दिया है यानी गालियां बातचीत का सहज हिस्सा बन गई हैं. अगर गालियों का इस्तेमाल न हो, तो लगता है कि हम नए जमाने के नहीं हैं.’’

मोनिका भले ही गंदी जबान की थी, पर खूबसूरत बदन की मालकिन थी. साढ़े 5 फुट कद, गोरा रंग, लंबे बाल, बड़ेबड़े उभार, मदमस्त चाल के चलते वह कालेज में हर मनचले की पहली पसंद बन गई थी.

कालेज में 23 साल का चपरासी बृजेश तो दिनरात मोनिका के सपने देखता था. मोनिका की बेलगाम जबान के चलते वह सोचता था कि यह लड़की जल्दी से पके आम की तरह उस की ?ाली में आ जाएगी.

एक दिन बृजेश ने मौका देख कर मोनिका से कहा, ‘‘मैडम, मेरी छोटी बहन 12वीं क्लास में आई है. घर में आप की पुरानी किताबें होंगी. अगर मुझे मिल जातीं तो मेरा खर्चा बच जाता.’’

मोनिका बोली, ‘‘अबे बहन के टके. इतनी सी बात है. कल दिन में घर आ जाना. घर पर कोई नहीं होगा, तो मैं तुझे आराम से किताबें दे दूंगी.’’

अगले दिन सुबह की बात है. हरपाल अखबार पढ़ रहा था. कोलकाता में लेडी डाक्टर के साथ रेप और फिर मर्डर

का कांड हो चुका था. पूरे देश में इस अपराध को ले कर डाक्टरों में गुस्सा था. आरोपी संजय राय की सीबीआई में पेशी चल रही थी.

इस पूरे मामले की बात करें, तो सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक, यह कांड होने से पहले पीडि़ता महिला ट्रेनी डाक्टर और 2 साथियों ने आधी रात के आसपास खाना खाया था, जिस के बाद वे सैमिनार रूम में गए और ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा का भाला फेंक कंपीटिशन टीवी पर देखा.

इस के बाद रात के तकरीबन 2 बजे दोनों साथी सोने चले गए, जहां ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर आराम कर रहे थे, जबकि महिला ट्रेनी डाक्टर सैमिनार रूम में ही रुकी रही. वहीं, इंटर्न का कहना है कि वह रूम में था. दरअसल, ये तीनों कमरे सैमिनार रूम, स्लीप रूम और इंटर्न रूम तीसरी मंजिल पर एकदूसरे के करीब ही बने हुए हैं.

इस के बाद सुबह के तकरीबन साढ़े 9 बजे पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनी डाक्टरों में से एक, जिस के साथ पीड़िता ने पिछली रात खाना खाया था, वार्ड का राउंड शुरू होने से पहले उसे देखने गया. कोलकाता पुलिस की टाइमलाइन के मुताबिक, उस ने दूर से उस का शव अर्धनग्न अवस्था में देखा. फिर उस ने अपने साथियों और सीनियर डाक्टरों को घटना की जानकारी दी.

‘‘बड़ा मादर… निकला,’’ यह खबर पढ़ते ही हरपाल के मुंह से गाली निकल गई.

शेखर और संगीता स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. शेखर बोला, ‘‘अरे पापा, लड़की ने ही उकसाया होगा. जवानी मचल रही होगी. आजकल तो शादी से पहले ही सबकुछ हो जाता है.’’

दयावती ने अपने सपूत को टेढ़ी निगाह से देखा जरूर, पर वह बोली कुछ नहीं. पर मोनिका कहां चुप रहने वाली थी, ‘‘तुझे पता भी है कि आजकल रेप के कितने केस आते हैं… कभी कोलकाता, कभी महाराष्ट्र, कभी दिल्ली… कम उम्र की बच्चियों को भी नहीं छोड़ते हैं… और तू ने कोलकाता के केस वाले आरोपी के बारे में नहीं पढ़ा?’’

‘‘क्या…?’’ शेखर ने सवाल किया, ‘‘पर, वह लड़की भी कम चालू नहीं रही होगी.’’

मोनिका ने शेखर को एक भद्दी सी गाली देते हुए आरोपी संजय राय की खबर के बारे में बताया, ‘‘सीबीआई ने आरोपी संजय राय का साइकोलौजिकल टैस्ट किया है. इस टैस्ट के दौरान संजय से कई सवाल किए गए थे. उस के मोबाइल फोन से मिले पौर्न वीडियो को ले कर भी सवाल हुए थे.

‘‘संजय राय ने इस टैस्ट के दौरान यह भी बताया था कि वह रैडलाइट एरिया जाता रहता था. उस ने कबूल किया कि वारदात के दिन पौर्न वीडियो देखे थे.

‘‘ऐसे लोगों में हाइपरसैक्सुअलिटी डिसऔर्डर होता है और इस बीमारी से पीडि़त कुछ इनसान हर दिन अपनी सैक्स इच्छा किसी न किसी तरह पूरी करना चाहता है. ऐसे आदमी शरीर की जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी तरह का अपराध कर सकता है और उस के मन में अफसोस तक नहीं होता है.’’

‘‘तू कुछ भी कह, लड़की की भी गलती रही होगी. कोई भी बेवजह ही सरकारी सांड़ नहीं बनता है,’’ शेखर ने अपनी बात रखी और संगीता के साथ स्कूल चला गया.

आज मोनिका के कालेज में छुट्टी थी. पापा के अपने काम पर और मम्मी के मौसी के घर जाने के बाद वह घर पर अकेली थी. चूंकि घर पर थी तो उस ने ढीली सी टीशर्ट और टाइट शौट्स पहनी हुई थी. टीशर्ट के नीचे ब्रा भी नहीं थी. उस के उभार ?ालक रहे थे.

इधर, बृजेश मोनिका के घर के लिए निकल चुका था. उसे लगता था कि मोनिका बिंदास है, लड़कों की तरह गालियां देती है, तो वह आसानी से मान जाएगी और वह आज अपनी हसरत पूरी कर लेगा.

दरवाजे की घंटी बजी, तो मोनिका को लगा कि मां जल्दी आ गई हैं. वह उन्हीं कपड़ों में दरवाजा खोलने चली गई. पर सामने बृजेश को देख कर ठिठक गई. उधर, जब बृजेश ने मोनिका को ऊपर से नीचे तक देखा, तो उस की लार टपकने लगी.

मोनिका ने पूछा, ‘‘क्या काम है?’’

बृजेश ने किताबों की याद दिलाई, तो मोनिका ने उसे भीतर बुला लिया. वह अपने कमरे में किताबें लेने चली गई, तो पीछेपीछे ब्रजेश भी चला आया. उसे पसीना आ रहा था. अब उसे मोनिका बस देह लग रही थी. उस का जिस्म

तनाव से भर गया. वह हरी झंडी समझ रहा था, तो उस ने कमरे में जाते ही कुंडी लगा दी.

मोनिका यह देखते ही सावधान हो गई, पर बृजेश पर हवस सवार हो चुकी थी. वह जा कर मोनिका से लिपट गया और उसे यहांवहां दबाने लगा.

मोनिका ने उसे धक्का दिया पर अब बृजेश हवस का पुजारी बन चुका था. उस ने मोनिका को कब्जे में कर लिया. मोनिका ने चिल्लाते हुए उसे कई गालियां दीं और मदद के लिए चिल्लाने लगी, पर आसपास के लोगों ने सोचा कि यह तो इस घर का रोज का काम है.

बृजेश ने तब तक मोनिका पर काबू पा लिया था और उसे पटक कर उस पर हावी हो गया था. मोनिका थी तो 18 साल की ही. वह बृजेश की पकड़ से छूट नहीं पाई और उस की दरिंदगी का शिकार हो गई.

इतने में मोनिका की मां दयावती आ गई. उस के पास घर की चाबी थी. जब काफी खटखटाने पर मोनिका ने दरवाजा नहीं खोला, तो मां ने चाबी से खोल लिया. पर भीतर जाते ही दयावती समझ गई कि दाल में कुछ काला है.

दयावती ने बिना देर किए घर के बाहर जा कर ‘चोरचोर’ चिल्लाना शुरू कर दिया. इस शोर से पड़ोसियों के कान खड़े हो गए और भीतर कमरे में बृजेश के होश उड़ गए. वह भागने की फिराक में था कि दरवाजे पर ही धर लिया गया.

आसपास के लोगों ने समझ कि कोई चोरउचच्का है, पर जब भीतर से मोनिका रोती हुई बाहर निकली, तो सब समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

‘इसी ने मुझे आज बुलाया था. यह कालेज में मझ पर डोरे डालती थी. लड़कों की तरह गंदे चुटकुले सुनाती थी, तो मुझे लगा कि बहती गंगा में हाथ धो लूं,’ बृजेश ने अपनी जान बचानी चाही, पर भीड़ तो भीड़ होती है. एक आदमी ने ‘मारो इसे’ कहा ही था कि सब लोग पिल पड़े उस पर. कुछ ही देर में बृजेश लाश बन चुका था. इस रेप की सजा उसे तुरंत मिल गई थी.

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