रिदा की जिंदगी दीवार पर टंगे किसी पुराने कलैंडर जैसी थी, जिस में न किसी तारीख का बदलाव होता है और न ही किसी पन्ने का. अपने निकाह से पहले मायके में कितनी खुश थी रिदा. मांबाप का साया भले ही उस के सिर से हट गया था, पर बड़े भाई महमूद ने उस की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दी. महमूद का आटोमोबाइल का छोटामोटा काम था. ऊपर एक कमरे का मकान और नीचे छोटी सी दुकान. दिन में 4-5 मोटरसाइकिल रिपेयरिंग का काम हो गया, तो आमदनी अच्छी हो जाती थी. महमूद भाई शाम को घर आते, तो खुशी उन के चेहरे पर बाकायदा नजर आती.

15 साला रिदा भी गाहेबगाहे दुकान पर पहुंच जाती और वहां खड़ी मोटरसाइकिलों पर चढ़ाउतरा करती. वह उन्हें खुलतेबनते देखती और पता नहीं कब उस ने भाईजान से मजेमजे में ही मोटरसाइकिल चलाना सीख लिया और उन की तकनीकों के बारे में भी जानने लगी. महमूद भाईजान भी खूब भरोसा रखने लगे थे रिदा पर. बिन मांबाप की बेटी की शादी जल्दी ही तय हो गई.

20 साल की होतेहोते रिदा की शादी नावेद से हो गई.पहलेपहल तो सब ठीकठाक रहा, पर फिर एक दिन रिदा को पता चला कि नावेद शराब भी पीता है और न जाने कहां से उसे जुए की लत लग गई है. नामुराद जुए की लत ने पहले तो उस के शौहर की नौकरी ले ली और फिर धीरेधीरे घर का छोटामोटा सामान चोरी होने लगा.उस के बाद नावेद की नजर रिदा के एकाध गहने पर पहुंची.

जब रिदा ने उसे अपने गहने देने से रोका, तो उस ने रिदा के साथ मारपीट की.रिदा ने कई बार महमूद भाईजान से भी इस की शिकायत की, तो उन्होंने नावेद को समझाया. कुछ दिन तो वह खामोश रहता और फिर वही जुए की हार के बाद रिदा से पैसे की मांग करता और न देने पर उसे मारनापीटना शुरू हो जाता.अभी तक रिदा की गोद नहीं भर पाई थी. इलाज भी न मिला. इफरात में पैसे कभी हो ही नहीं पाए, जो अच्छे डाक्टर से रिदा इलाज करवाती.

नावेद ने इसी गम को कम करने के लिए शराब पीने का बहाना बताया.कभीकभी तो देर रात गए नावेद की वापसी होती और आते ही वह बिरयानी की मांग करने लगता. अब अचानक रिदा बेचारी बिरयानी कैसे और कहां से बनाए. पहले से ही रोटी और दाल चलानी मुश्किल थी और बिरयानी की फरमाइश… रिदा तो पूरी तरह से टूट चुकी थी.एक शाम को नावेद का इतनी जल्दी घर वापस आना रिदा को कुछ अजीब लगा. नावेद के साथ सूटकेस लिए हुए एक 30 साल का आदमी भी था.

‘‘इन से मिलो… यह मेरे बचपन का दोस्त अजीमा है. पहले ये लोग हमारे बगल वाले घर में ही रहते थे, फिर ये सब बेच कर दुबई चले गए थे,’’ यह बताते हुए नावेद बहुत खुश दिख रहा था.रिदा ने झिझक के साथ उस आदमी की तरफ देखा, जो सीधा रिदा की आंखों में ही झांक रहा था. हलका सा मुसकराते हुए अजीमा ने सलाम किया, तो रिदा ने भी मुसकरा कर उस का जवाब दे दिया.

बातोंबातों में नावेद ने रिदा को बताया कि अजीमा नया मकान मिलते ही यहां से चला जाएगा. तब तक वह कुछ दिन उन लोगों के साथ ही रहेगा.दोस्तीयारी एक तरफ थी, मगर इस तंगहाली में किसी बाहर के आदमी का घर में आना रिदा को थोड़ा अजीब जरूर लगा, पर संकोच के चलते वह कुछ कह नहीं पाई.अगले दिन से ही रिदा को ऐसा लगा कि अजीमा काफी पैसे वाला है, क्योंकि वह नावेद और उस के लिए बाजार से अच्छे कपड़े और खानेपीने की चीजें ले आया था और कहने लगा कि वह दुबई से कुछ नहीं ला पाया था, इसीलिए लोकल मार्केट से खरीदारी की है. अजीमा आगे भी कुछ न कुछ खर्च करता ही रहता और साथ ही साथ उस ने नावेद को महंगी वाली शराब भी पिलानी शुरू कर दी, जिस का भरपूर मजा नावेद ले रहा था.

नावेद ने कुछ लोगों से कर्ज ले रखा था. यह बात जैसे ही अजीमा को पता चली, तो उस ने झट से नावेद को पैसे दिए और कहा कि वह जल्दी से अपना कर्जा चुकता कर दे. अजीमा का आना तो नावेद की जिंदगी में मजा ले आया था.

नावेद का जुआ खेलना बदस्तूर जारी ही था. वह अब भी घर से घंटों गायब रहता था. रिदा को महसूस होता था कि उस की गैरहाजिरी में अजीमा की आंखें लगातार रिदा के जिस्म का आगेपीछे से मुआयना करती रहती थीं.एक घूरने वाले गैरमर्द का यों घर में होना रिदा को बिलकुल नहीं अच्छा लग रहा था, फिर भी वह कुछ कह न सकी.‘‘यह क्या भाभीजी, आप ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि नावेद का जुआ खेलना आप को पसंद नहीं है. मैं आज ही उस की यह आदत छुड़वाता हूं,’’

अजीमा ने रिदा से कहा.नावेद के वापस आने पर अजीमा ने उसे बताया कि बाहर जा कर ताश के पत्तों से जुआ खेलना तो बीते जमाने की बात हो गई है और अगर पैसे से पैसे ही बनाने का शौक है, तो इस पर दांव लगा,’’ कहते हुए अजीमा ने नावेद को एक मोबाइल फोन थमाया.

‘‘क्रिकेट का एक टूर्नामैंट होता है पाईपीएल, उस में खेल रहे खिलाडि़यों पर पैसा लगाना होता है, जीते तो काफी पैसे मिलते हैं,’’ अजीमा ने यह भी बताया कि बिना डरे और बिना शरमाए घर बैठे ही इसे खेला जा सकता है.नावेद ने कुछ ही देर में इस खेल को खेलने के सारे तौरतरीके सीखने भी शुरू कर लिए थे. पर मोबाइल पर ही इस खेल को खेलने के लिए पैसे चाहिए थे, पर नावेद तो पहले से ही कर्ज में डूब गया था, इसलिए उस ने अजीमा से पैसे मांगने में कोई शर्म नहीं की.

शायद अजीमा को यह अहसास था, इसलिए उस ने तुरंत नावेद के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए.मोबाइल फोन पर ‘जीतो दुनिया’ नामक एप पर नावेद जल्दी ही पैसे लगाने लगा और हारने भी लगा. इस से फिर घर में तंगी आने लगी. ऊपर से अजीमा का खर्चा भी भारी पड़ ही रहा था और अजीमा था कि काफी बेतकल्लुफी से नावेद और रिदा के घर में खापी कर मजे कर रहा था.रात में रिदा ने शिकायती लहजे में नावेद से कहा कि उसे अब अजीमा का यहां रहना अच्छा नहीं लगता.

अब उन्हें चले जाना चाहिए.रिदा की इस बात को सिरे से खारिज करते हुए नावेद ने कहा कि उन लोगों पर तो उस के बहुत अहसान हैं, इसलिए वह हर तरीके से अजीमा का ध्यान रखे.अपने शौहर की बात सुन कर रिदा खामोश हो गई, पर एक औरत किसी मर्द की नीयत को पहचानने में गलती नहीं करती. रिदा भी एकदम सही थी. अजीमा की नीयत तो खराब थी ही और एक दिन जब नावेद नशे में चूर हो कर पड़ा था, तब अजीमा रिदा के कमरे में आया और रिदा के पीछे जा कर उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बांहों में कस लिया.

रिदा अजीमा का खतरनाक इरादा भांप गई थी. उस ने अजीमा की कैद से आजाद होने की कोशिश की और नावेद को मदद के लिए पुकारा.‘‘कोई फायदा नहीं. जिसे तू मदद के लिए पुकार रही है न, उस के मुंह पर मैं पैसे का ताला लगा चुका हूं और उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है.’’रिदा लगातार हाथपैर पटक रही थी,

‘‘मेरे शौहर को भटका कर तुम मेरे साथ खेलना चाहते हो. मेरी मरजी के बगैर तुम मुझे छू भी नहीं सकते. तुम्हारी नीयत पर मुझे पहले से ही शक था…’’

अचानक से अजीमा ने रिदा के बदन से अपनी पकड़ ढीली कर दी और लापरवाही वाले अंदाज में उसे बताया कि बाजार के लोगों का हजारों रुपए का कर्ज नावेद के ऊपर है. अभी जो उस ने पैसे कर्ज चुकाने के लिए उसे दिए थे, वे भी नावेद पाईपीएल में हार चुका है और उस के एक इशारे पर कर्ज देने वाले लोग नावेद को हथकड़ी लगवाने पर उतारू हैं और उसे इस मुश्किल से सिर्फ वही बचा सकता है.

अगर वह अपनी आबरू अजीमा को सौंप दे तो वह न सिर्फ नावेद का सारा कर्ज चुकाने में मदद करेगा, बल्कि नावेद को अच्छी राह पर लाने की कोशिश भी करेगा.किसी के साथ अपनी अस्मत का सौदा करना रिदा को कतई मंजूर नहीं था. वह बाहर की ओर जाने लगी.

अजीमा ने कोई जबरदस्ती नहीं की.घर के अंदर रिदा को इज्जत जाने का खतरा लग रहा था, सो उस ने बाहर ही रात काटी और सुबह होते ही महमूद भाईजान को फोन लगा कर नावेद की बढ़ती हरकतों और अजीमा के बारे में बताया और मायके आ कर वहीं रह जाने की बात की. रिदा को अपने भाई महमूद की तरफ से हमदर्दी तो हासिल हुई,

पर उस की जिम्मेदारी लेने से महमूद ने कतई मना कर दिया, ‘‘देख, अब तेरा निकाह हुए समय हो गया है. जिंदगी की परेशानियां अब तुझे खुद ही झेलनी हैं, क्योंकि मेरा भी परिवार है और महंगाई के इस दौर में उन्हीं का खर्चा चलाना मेरे लिए भारी पड़ रहा है.’’कुछ दिनों बाद जब तेज बारिश हो रही थी, तब नावेद अजीमा के साथ रिदा के कमरे में आया और कहने लगा,

‘‘अरे, अजीमा भाई कुछ मांग रहे हैं तुझ से, तो तू दे क्यों नहीं देती? तेरे तो औलाद होने का भी खतरा नहीं है. इन की अभी शादी नहीं हुई है… इन की भी तो कुछ जरूरतें हैं,’’ नावेद की बेहयाई भरी बातों को सुन कर रिदा सकते में आ गई.अजीमा ने रिदा को आ कर पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों को उसी के शौहर के सामने मसलने लगा और उसे पलंग पर गिरा कर बेतहाशा चूमने लगा.रिदा समझ चुकी थी कि नावेद ने उस की अस्मत का सौदा कर लिया है.

ताकतवर अजीमा कोमल रिदा पर छा गया था. कमरे में जोरजबरदस्ती का तूफान तो था ही, पर एक औरत के मन में उस के शौहर के लिए एक नफरत का तूफान भी पनप रहा था, क्योंकि उस का शौहर उसे लुटते हुए अपनी आंखों से देख रहा था.जिंदगी रिदा को घाव तो दे चुकी थी, पर अब इसे नासूर बनने से बचाना था. लिहाजा, एक दिन रिदा शहर जाने वाली बस में बैठ गई.शहर में रिदा ने कई रिहायशी कालोनियों में काम मांगा, तो लोगों ने साफसफाई का काम करवाने के लिए हामी तो भर दी, पर रिदा की सही पहचान जानने के लिए आधारकार्ड मांगा गया.

अब भला शौहर की बेवफाई की मारी रिदा आधारकार्ड कहां से लाती?रिदा अब हारने लगी थी. शायद अब भीख मांग कर अपना पेट भरना ही उस के लिए आखिरी रास्ता रह गया था. वह एक पार्क में जा कर बैठ गई. शरीर में कमजोरी और थकावट के चलते कब उसे बेहोशी ने आ घेरा, वह नहीं जान सकी थी.कुछ देर बाद एक झटके से जब रिदा की आंख खुली, तो उस ने देखा कि सामने वाली बैंच पर बैठा एक 50-55 साल का आदमी उसे घूर रहा था.रिदा थोड़ा घबराई और वहां से जाने की कोशिश करने लगी, तो वह आदमी बोला,

‘‘अजनबी लगती हो… कुछ परेशान भी हो…’’रिदा ने उस आदमी को बताया कि उसे काम की जरूरत है.वह आदमी एक इंटर कालेज में चौकीदार था. उस ने रिदा से साफसफाई वाला काम दिला देने को कहा, पर साथ ही साथ रिदा से यह भी कहा कि इस दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, इसलिए वह रिदा को काम दिलाने के बदले उस की पहली तनख्वाह में से आधा हिस्सा ले लेगा. रिदा ने तुरंत हां कर दी.‘‘पर, पहले चल कर कुछ खापी लो. शरीर में जान होगी,

तभी तो मेहनत कर पाओगी,’’ वह आदमी बोला.अगले ही दिन से उस आदमी ने रिदा को काम पर लगवा दिया और स्कूल के साइकिल स्टैंड के पास बने पुराने स्टोररूम में उस के रहने का इंतजाम भी करवा दिया.अगले दिन से ही रिदा पूरी मेहनत से सफाई का काम करने लगी. अपनी मेहनत से वह सब की चहेती बनती जा रही थी,

चाहे किसी को पानी पिलाना हो या किसी की कोई खोई फाइल ढूंढ़नी हो. सभी की जबान पर रिदा का ही नाम रहता था.आज कालेज के सभी बच्चे तो जा चुके थे, फिर भी मोटरसाइकिल स्टैंड पर 12वीं क्लास का एक लड़का आरव अपनी पुरानी सी बाइक स्टार्ट करने में लगा हुआ था, पर उस की बाइक स्टार्ट ही नहीं हो रही थी.रिदा ने ठिठक कर उसे परेशान हालत में देखा और पूछा, ‘‘क्या हुआ भैया? आप कहो, तो मैं स्टार्ट कर के देखूं?’’आरव को रिदा का ऐसा कहना बड़ा अजीब लगा,

पर उस के जवाब का इंतजार किए बिना ही रिदा ने आरव के हाथ से बाइक ले ली और चंद मिनट तक इधरउधर चैक करने के बाद ऐसी किक मारी कि बाइक स्टार्ट हो गई.आरव हैरान था. रिदा ने मुसकराते हुए उसे बताया कि उस की बाइक का प्लग साफ करते ही वह स्टार्ट हो गई है, पर फिर भी उसे आगे जा कर इस में नया प्लग डलवा ही लेना चाहिए.आरव थैंक्स बोल कर चला गया.आरव की मां नीमा एक समाजसेविका थीं और एक संस्था भी चलाती थीं.

उन की संस्था मजदूरों और गरीबों को आगे बढ़ाने का काम करती थी. एक दिन आरव की मां कालेज के आसपास काम करने वाले मजदूरों से मिलने और उन्हें उपहार देने आई थीं.आरव ने अपनी मां नीमा को रिदा के बारे में पहले से ही बता दिया था.‘‘उस दिन तुम ने बाइक कैसे स्टार्ट कर ली थी?’’ नीमा ने रिदा से पूछा.रिदा ने बताया कि कैसे वह अपने भाईजान की दुकान पर बाइक चलाना और थोड़ीबहुत मरम्मत करना सीख गई थी. उस ने यह भी बताया कि वह ड्राइवर बनना चाहती है, क्योंकि उन्हें ज्यादा पैसा मिलता है.‘‘पर इतना भरोसा एक औरत पर कोई नहीं करेगा,’’

नीमा ने कहा.रिदा ने नीमा को एक आइडिया  बताया कि यहां सैलानियों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए टैक्सीरिकशा की डिमांड रहती है. उस ने कुछ लोगों को बाइक पर लिफ्ट लेते भी देखा है. अगर उसे एक बाइक मिल जाती तो वह उसे ‘बाइक टैक्सी’ के रूप में चलाती.रिदा का आइडिया नीमा को पसंद आया और उन्होंने रिदा को अपना पता देते हुए 2 दिन बाद अपने घर बुलाया.

घर पर नीमा ने रिदा को बताया कि ‘बाइक टैक्सी’ वाला आइडिया तो अच्छा है, पर उस के लिए तो सब से पहले रिदा को ड्राइविंग लाइसैंस चाहिए होगा और उस के बाद कुछ रकम लगा कर एक बाइक खरीदनी होगी.रिदा परेशान हो गई थी. इतना सब वह कैसे करेगी? बाइक कैसे खरीदेगी वह?नीमा ने कहा कि वे अपनी जानपहचान से उस का ड्राइविंग लाइसैंस बनवा देंगी, पर ध्यान रहे कि आरटीओ औफिस में पूछे गए सभी सवालों का वह सही जवाब दे.

नीमा ने रिदा से आरव की पुरानी बाइक लेने को कहा, पर मुफ्त में नहीं, क्योंकि मुफ्त में देने से लोगों को उस की कदर नहीं रहती है, इसलिए रिदा को 1,000 रुपए प्रति माह लगातार 30 महीने तक देने होंगे. रिदा ने तुरंत हां कर दी.रिदा इस बीच स्कूल में सफाई का काम करती रही और जब उस का ड्राइविंग लाइसैंस आ गया, तब वह मानो आसमान में उड़ने लगी.इस बीच रिदा ने आरव की मदद से उस की पुरानी बाइक में जरूरी मरम्मत करा ली और आरटीओ औफिस से एक बाइक को ‘टैक्सी बाइक’ के रूप में चलाने की इजाजत भी ले ली थी.जब सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं, तो हैलमैट लगा कर नीमा बाइक पर निकली. बाइक के आगे ही एक छोटी सी प्लेट पर लिखा हुआ था, ‘पिंक टैक्सी’.

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