कुरसी पर पसरे चाय की चुसकियां लेते हुए. उन के सामने हाथ में डायरी लिए उन का पीए खड़ा था. क्या पता वे कब क्या बक डालें. वैसे तो साहबजी अपनी कुरसी से जरा भी नहीं हिलते और यही वजह है कि हर 2 महीने बाद उन की घिसाई कुरसी बदलनी पड़ती है, पर इन दिनों वे पिछले महीने से रैगुलर धूप में अपनी गोरी चमड़ी काली करने इसलिए आ रहे हैं कि डाक्टर के पास अपने को चैक करवाने के बाद उस ने उन्हें सलाह दी है कि उन की पाचन पावर तो ठीक है, पर उन की हड्डियां पलपल कमजोर हो रही हैं. वे इन्हें मजबूत रखना चाहते हैं, तो उन्हें सरकारी के साथसाथ कुदरती तौर पर भी विटामिन डी लेना होगा, हर दिन कम से कम 3 घंटे अपने औफिस से बाहर धूप में बैठ कर.

बस, यही वजह है कि वे सुबह  10 बजे औफिस में आते ही बाहर धूप में कुरसी पर पसर जाते हैं, लेट आने वालों की तरफ से अपनी आधी आंखें मूंदे अपना हर अंग करवट बदलबदल कर सूरज को  दिखाते हुए.  कई बार उन के इस तरह कुरसी पर पसरे देख सूरज को भी शर्म आ जाती है, पर उन्हें नहीं आती. उन्हें पता है कि हड्डियों में दम है तो जिंदगी छमाछम है. उस वक्त धूप में आराम से कुरसी पर अपना अंगअंग सेंकते औफिस को भूल अचानक उन्हें पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने अपने सामने खड़े पीए को आदेश दिया, ‘‘पीए...’’ ‘‘जी, साहबजी...’’ ‘‘जनता के फायदे के लिए एक मीटिंग रखो.’’

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