व्यंग्य- ‘मयंक’ सीतापुर

चांदनीजी से पूरा नगर परिचित था. लोग उन के दोनों बालगोपालों को भी जानते थे. हर कोई जानता था कि उन के एक अदद पति भी हैं. पर वह महाशय कैसे हैं, क्या करते हैं? यह कोई नहीं जानता था. कभी किसी ने जानने का प्रयत्न भी नहीं किया था.

जब पति चुनाव लड़ता है तो उस की पत्नी को उस से अधिक श्रम करना पड़ता है. चुनाव क्षेत्र में जा कर मतदाताओं से मत देने के लिए हाथ जोड़ने पड़ते हैं, घर में कार्यकर्ताओं आदि के भोजन का भी प्रबंध करना पड़ता है. पत्नी के चुनाव लड़ने पर पति महोदय दौड़धूप तो करते हैं, पर उन की ओर कोई ध्यान नहीं देता. लोग यही समझते हैं कि बेचारा कार्यकर्ता है.

अगर वह खादी के कपड़े पहने होता है तो उसे दल का कार्यकर्ता समझा जाता है. अगर आम कपड़ों में होता है तो फिर भाड़े का प्रचारक समझ लिया जाता है. न वह किसी से यह कह पाता है कि वह प्रत्याशी का पति है और न लोग उस से पूछते हैं कि आप हैं कौन. पत्नी तो शान से कह देती है कि वह प्रत्याशी की पत्नी है. यह जान कर लोग उसे भी आदरसम्मान दे देते हैं. जो रिश्ता बता ही नहीं पाता उसे कोई सम्मान दे भी कैसे?

पति महोदय जब किसी पद पर आसीन होते हैं तो पत्नी को भी विशेष सम्मान प्राप्त होता है. लोग उसे भी उतना ही मान देते हैं जितना कि उस के पति को. पत्नी जब कोई पद प्राप्त करती है तो उस के पति को कोई महत्त्व नहीं मिलता. किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष की पत्नी उस देश की प्रथम महिला होती है. अगर नारी उस पद पर आसीन हो जाए तो उस का पति कुछ नहीं होता. उदाहरण के लिए ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ और प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को ही लीजिए.

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