वह इतनी जोर से चीखा कि सड़क पर चलते सभी लोग एक पल को सहम गए. उस ने नारियल काटने वाला बड़ा सा छुरा निकाला और हरे नारियल को हाथ में ले कर एक झटके में ऐसा काटा मानो किसी का सिर काट रहा हो. नारियल फट गया, उस में भरा पानी हाथों से होता हुआ नीचे तक फैल गया. वह कटे नारियल को हाथ में लिए बैठ गया और जोरों से चीखते हुए रो पड़ा.
बात ही कुछ ऐसी थी कि बदहाली और गरीबी से परेशान हो कर सुरेश गांव छोड़ कर वेल्लोर आ गया था. बीआईटी यूनिवर्सिटी के सामने उस ने नारियल पानी बेचने की एक दुकान लगा ली थी. दुकान क्या… एक डब्बा रखा, एक फट्टे पर 10-20 नारियल रखे और हाथ में बड़ा सा छुरा.
हालांकि सुरेश को नारियल काटने की आदत थी. गांव में वह मिनटों में नारियल के पेड़ पर चढ़ जाता था और तेज धार के छुरे से नारियलों को पेड़ से काट कर नीचे गिरा देता था.
पिछले 2 सालों से बरसात नहीं हुई थी. धान की फसल सूख गई थी. गांव में मजदूरी नहीं थी. मांबाप ने गांव छोड़ने की बात कही तब सुरेश ने उन्हें पुश्तैनी जगह छोड़ कर जाने से मना कर दिया और खुद जाने का फैसला लिया. वहां से वेल्लोर पास था. सीएमसी बहुत बड़ा मैडिकल कालेज था लेकिन सड़क पर बहुत से लोग दुकानें सजाए बैठे थे. उस के लिए कोई जगह नहीं थी. गांव के एक मुंहबोले अन्ना के झोंपड़े में उस ने पनाह ली थी. उसी ने नारियल पानी बेचने की सलाह दी थी. एक नारियल पर 5 से 10 रुपए बच जाते थे. दिनभर में 50-100 रुपए की आमदनी हो जाएगी. नारियल का कचरा सूख जाने पर ईंधन के लिए काम में आ जाएगा, लेकिन जगह की दिक्कत थी.
सुरेश आवारा की तरह जगह खोज रहा था. वेल्लोर के बीआईटी कैंपस के सामने जगह खाली थी और बहुत से लड़केलड़कियां वहां से गुजरते थे. वे जरूर नारियल पानी पीना पसंद करेंगे. उस ने अन्ना से कह कर अपने लिए 20 नारियल उधार ले लिए. छुरा भी मिल गया. एक बोरे में नारियल ले कर वह एक फट्टे को बिछा कर सड़क किनारे बैठ गया.
पहले दिन 5-7 नारियल ही बिके. स्ट्रा का एक डब्बा भी रख लिया था. शाम को बाकी बचे नारियलों को कंधे पर रख कर वह अन्ना के झोंपड़े में लौटा. चावल और रसम खा कर वह अपने गांव की याद में खो गया. यह गांव कभी यादों में से जाता क्यों नहीं है? क्यों बारबार बुलाता है?
सुरेश 6 फुट का एकदम काले रंग का लेकिन मेहनती लड़का था. एक पुरानी रंगीन लुंगी और गंदी सी शर्ट, बाल उलझे हुए और ग्राहक को तलाशती आंखें.
अगली सुबह सुरेश फिर फट्टा ले कर वहां बैठ गया. 2 तरह के नारियल रखे. बड़ा पानी वाला 20 रुपए का, छोटा 15 रुपए का था. अंदर मलाई वाला भी था. पानी पीने के बाद वह नारियल को फाड़ कर अंदर की मलाई खरोंच कर दे देता था. 1-2 बार उस की भी बड़ी इच्छा हुई कि पानी पी कर देखे, मलाई खा कर देखे, लेकिन एक नारियल पर 10 रुपए का नुकसान हो जाएगा. अभी उसे रुपयों की जरूरत है, वह बिलकुल भी नारियल का पानी नहीं पी सकता.
यूनिवर्सिटी कैंपस से लड़कों का हुजूम निकलता था. कुछ पास आते, मोलभाव करते और आगे बढ़ जाते. लड़कालड़की आते तो एक नारियल में 2 स्ट्रा डाल कर एकसाथ पीते. वह देखता, उसे सबकुछ बहुत अजीब लगता. वह अपनी नजरें फेर लेता था.
कभीकभी लड़कालड़की इतना चिपक कर नारियल पानी पीते कि उसे लगता, उस के शरीर में कुछ गड़बड़ी हो रही है. वह नजरें घुमा लेता तो उन के हंसने की आवाज कानों में आती. वह नजरें नीची कर लेता.
वैसे भी सुरेश की उम्र अभी 20-22 साल की रही होगी. प्यार जैसे रिश्तों से उस का कोई नाता नहीं पड़ा था, फिर जिस गांव में वह रहता था वहां प्यार नहीं होता था, सीधे शादी और बच्चा पैदा होता था. लेकिन यहां जोकुछ हो रहा था, वह सब हैरानी की बात थी.
एक हफ्ता होतेहोते सुरेश की बिक्री बढ़ गई. वह तकरीबन 40-50 नारियल काटने लगा था. कचरा भी उठा कर अपने झोंपड़े में अन्ना के लिए ले आता था. उस ने अन्ना को 100-200 रुपए देने भी शुरू कर दिए थे. उन्हीं की जमानत पर तो वह नारियल उठा पा रहा था. थोड़े से रुपए उस ने गांव में भी भेज दिए थे और प्लास्टिक की एक पुरानी मेज ले ली थी जिस पर नारियल का ढेर रख लेता था. वह जानता था कि कालेज से कब लड़केलड़की बाहर आएंगे. इसलिए वह 3-4 नारियल पहले ही छील कर रख लेता था.
एक दिन एक ग्राहक आया. उस ने नारियल मांगा. सुरेश ने काट कर उसे दिया. उस ने पीया और 10 रुपए का नोट देने लगा. सुरेश ने कहा, ‘‘भाई, यह 20 रुपए का नारियल है.’’
‘‘मैं 20 रुपए ही देता, लेकिन नारियल में पानी नहीं था,’’ वह बोला.
‘‘भाई, अभी नारियल का मौसम नहीं है. पानी कम हो जाता?है. मलाई बन जाती?है,’’ सुरेश ने कहा.
‘‘नहीं… ये 10 रुपए रख,’’ कह कर वह चला गया. सुरेश को बहुत गुस्सा आया. सोचा कि अब ग्राहक से रुपए पहले लेगा, फिर नारियल काटेगा, लेकिन ऐसा करने पर दुकानदारी पर बुरा असर पड़ेगा. वह ग्राहक को देखसमझ कर रुपए मांगेगा.
धूप में खड़े रहने और दिनभर मेहनत करने से सुरेश का शरीर और काला मजबूत हो गया था. गरमी का मौसम जा चुका था, बरसात लग गई थी. कभी भी बरसात होने लगती थी. सामने की एक बड़ी दुकान के छज्जे के नीचे जा कर वह खड़ा हो जाता था. इस से ग्राहकी पर बुरा असर पड़ रहा था. दिन में 20-30 नारियल ही बिक रहे थे.
एक दोपहर बारिश हो कर रुकी ही थी कि सुरेश छज्जे की ओट से निकल कर अपनी दुकान के पास जा कर खड़ा हुआ. इतने में एक चमचमाती कार सड़क के उस ओर खड़ी हुई, उस में से एक मैडम उतर कर उस की दुकान पर आईं.