कार आगे बढ़ गई. एक कपड़े की बड़ी सी दुकान के सामने रुकी. वे उसे ले कर अंदर गई. उसे आईने के सामने बैठा कर उस के बालों को काटा, फिर उसे नहलाया और रेडीमेड कपड़ों को पहनाया गया. 2-3 घंटे में ही वह निखर गया. जब आईने के सामने सुरेश खड़ा हुआ तो खुद को पहचान नहीं पाया. लेकिन आखिर मैडमजी क्यों इतनी मेहरबानी कर रही हैं?
फिर दोनों एक अच्छे से होटल में खाने के लिए गए. सुरेश तो चावल और रसम खाने की उम्मीद कर रहा था लेकिन मैडम ने न जाने क्याक्या खाने को मंगवा लिया जो बहुत लजीज था.
सुरेश ने भरपेट खाना खाया. वह सबकुछ ऐसा ही कर रहा था जैसा मैडम कह रही थीं. हालांकि उस का नालायकपन उभरउभर कर सामने आ रहा था. किस फूहड़ता से वह खापी रहा था. जब वहां से निकले तो एक छोटे से लेकिन महंगे सिनेमाघर में जा कर बैठ गए. कोई हिंदी फिल्म थी. प्रेमकथा थी. वह बरसों बाद फिल्म देख रहा था. थोड़े से पैर लंबे किए तो सीट फैल कर आरामदायक हो गई.
फिल्म में सुरेश कई बार ‘होहो’ कर के हंसा तो मैडमजी ने उस की जांघ पर हाथ रख कर चुप रहने का संकेत किया. हंसने में किस तरह की रोक? जब फिल्म देख कर बाहर निकले तो रात हो चुकी थी. आसमान में काले बादलों ने अपना डेरा जमा लिया था. ठंडीठंडी हवा चल रही थी.
जिंदगी इतनी खूबसूरत भी हो सकती है, सुरेश ने आज जाना था. दोनों कार से शहर का चक्कर लगा कर एक बंगले के सामने ठहरे. दोनों उतर कर अंदर गए. सुरेश का दिल जोरों से धड़क रहा था. ऐसे घर उस ने सपने में भी नहीं देखे थे.