बाद तुम्हारी राह देखी थी, तुम्हारा इंतजार किया था, पर तुम्हें आज यों पा कर मैं तुम से नफरत करता हूं. तुम तो वेश्या निकली ज्योति... वेश्या.’’
मेरी बात सुन कर वह कुछ पल खामोश मुझे देखती रही, फिर अचानक खड़े हो कर बिफरते हुए वह बोली, ‘‘ऋषि, मैं वेश्या हूं ठीक कहा, पर तुम यहां एक वेश्या के घर क्या करने आए थे? तुम भी तो उतने ही गिरे हुए हो, जितना मैं, बल्कि मुझ से भी ज्यादा.
‘‘और अब मैं खुद को वेश्या कहने वाले को यहां एक पल भी बरदाश्त नहीं कर सकती, दफा हो जाओ यहां से,’’ इतना कह कर उस ने मुझे धक्का देते हुए वहां से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया. सच तो यह था कि ज्योति ने आज मुझे आईना दिखा दिया था.
ज्योति के दिखाए गए आईने ने मुझे झकझोर कर रख दिया. मैं ने खुद को बड़ी तेजी से बदल लिया. अब मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई और अस्मिता को समर्पित था.
बीटैक कर के मुझे एक नौकरी मिल गई थी और मैं ने अस्मिता के लास्ट सैमेस्टर के एग्जाम होने के बाद शादी का ऐलान कर दिया. हम दोनों के घर वालों ने हमारी होने वाली शादी को मंजूरी दे दी.
पर हमारे परिवार की एक परंपरा के मुताबिक थोड़ी सी अड़चन आ गई. मेरे ताऊजी के बेटे विवेक भैया, जो जन्म से हमेशा गांव से बाहर ही रहे थे, ने अब तक शादी नहीं की थी और परिवार की परंपरा के मुताबिक जब तक किसी बड़े की शादी न हुई हो छोटे की शादी नहीं हो सकती.
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