‘‘इस तरह... इस तरह से ज्योति? मैं उस के कंधे झकझोरते हुए बोला, ‘‘यों गंदगी में गिर कर तुम खड़ा होना चाहती हो? कुछ बनना चाहती हो? क्या बनना चाहती हो तुम?’’
मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए ज्योति बोली, ‘‘ऋषि, यह ठीक है कि यह रास्ता गलत है, मैं मानती हूं कि मेरे जिस्म को कई मर्दों ने हासिल किया है, पर कोई लड़की उस शख्स को नहीं भूलती जिस ने उसे पहली बार पाया हो. ऋषि, तुम्हीं वह हो जिस ने मुझे पहली बार पाया था. ऋषि तुम अब तक मेरी सांसों में बसे हो. मैं वह पल नहीं भूली जब तारों की रोशनी में तुम ने मेरे कुंआरेपन को हासिल किया था,’’ मेरे हाथों को पकड़े वह और न जाने क्याक्या बोले जा रही थी, पर मैं ने वह सब अनसुना कर के उसे वापस अपने से परे धकेल दिया था. वह अपने घुटनों पर सिर रख कर सिसकने लगी थी.
मैं ने कहा, ‘‘ज्योति, मैं भी तुम्हें याद करता था. मैं ने भी उस रात के बाद तुम्हारी राह देखी थी, तुम्हारा इंतजार किया था, पर तुम्हें आज यों पा कर मैं तुम से नफरत करता हूं. तुम तो वेश्या निकली ज्योति वेश्या.’’
मेरी बात सुन कर वह कुछ पल खामोश मुझे देखती रही, फिर अचानक खड़े हो कर बिफरते हुए बोली, ‘‘ऋषि, मैं वेश्या हूं ठीक कहा, पर तुम यहां एक वेश्या के घर क्या करने आए थे? तुम भी तो उतने ही गिरे हुए हो जितना मैं, बल्कि मुझ से भी ज्यादा. और अब मैं खुद को वेश्या कहने वाले को यहां एक पल भी बरदाश्त नहीं कर सकती, दफा हो जाओ यहां से,’’ इतना कह कर उस ने मुझे धक्का देते हुए वहां से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया. सच तो यह था कि ज्योति ने आज मुझे आईना दिखा दिया था.