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थोड़ी देर के बाद मैं ज्योति का हाथ पकड़ कर नीचे आ गया. मेरा हाथ छुड़ा कर वह जाते हुए बोली, ‘‘ऋषि, एक काम करना.’’

मैं ने पूछा, ‘‘क्या?’’

‘‘छत पर पड़ी खून की बूंदों को पानी से साफ कर देना,’’ इतना कह कर वह चली गई और मैं हाथ में बालटी ले कर छत की ओर चल दिया.

ज्योति उस रात के बाद फिर मुझे दिखाई न दी. उस की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. मैं ने कई दिन की तड़प के बाद अपने दिल को तसल्ली दी कि वह जब अगले साल गरमियों की छुट्टियां बिताने आएगी तो जीभर के उस से बात करूंगा, उसे आगोश में लूंगा, मगर मेरे लाख इंतजार के बाद वह फिर कभी गरमी की छुट्टियां बिताने के लिए हमारे गांव नहीं आई.

मैं अपनी टीनएज में एक लड़की की तरफ आकर्षित हुआ, उस के जिस्म को मैं ने हासिल किया था. मैं जब भी तनहा लेटता, मुझे लगता कि मैं किसी हसीना के जिस्म से लिपटा हुआ हूं. मेरी नसनस कामज्वर से जल उठती. मैं बेचैन हो जाता. मैं कोशिश करता कि रात में अकेला न रहूं, बस इसलिए दोस्तों के साथ देर रात तक घूमा करता.

ऐसे ही एक रात मैं पास के एक गांव की महफिल में पहुंच गया, जहां तवायफें अपने हुस्न से अजब समां बांध रही थीं. लोग उन के थिरकते कदमों की लय पर वाहवाह कर रहे थे.

मेरी नजर भी ऐसे ही लयबद्ध थिरकते एक जोड़ी पांव पर टिक गई थी. वह एक मेरी उम्र की सुंदर नैननक्श वाली तवायफ थी, जिसे लोग गुंजा के नाम से पुकार रहे थे.

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