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आज 11वें दिन फिर डाक्टर के पास जाना था.‘‘आज पता है ईशा क्या हुआ?’’ डाक्टर रमन जैन ने कहा.‘‘क्या हुआ...’’ ईशा ने पूछा.‘‘जब मैं क्लिनिक आ रहा था, तब एक डौगी मेरी गाड़ी के नीचे आतेआते बचा...’’ डाक्टर रमन जैन बोले.‘‘ओह...’’ ईशा के मुंह से निकला.

‘‘वह भूखा और कमजोर लग रहा था. मैं ने गाड़ी रोक कर उसे चाय की गुमटी से दूधब्रैड खिलाया...’’‘‘बेचारा...’’ ईशा बोली.‘‘उस को कहीं चोट भी लगी थी... पैर के पास ऊपर,’’ डाक्टर रमन जैन बोले, ‘‘लेकिन, उस का मुंह घाव तक जा सकता था, इसलिए वह चाटचाट कर उसे ठीक कर लेगा.’’‘‘कितने परेशान हो जाते हैं डौगी बेचारे...’’

ईशा के मुंह से निकला.‘‘बिलकुल. लेकिन, वे सुसाइड नहीं करते,’’ डाक्टर रमन जैन ने बात बदली.‘‘मतलब...?’’ ईशा चौंक गई.‘‘मतलब यह कि बहुत से जानवर गाड़ी के नीचे आ कर हाईवे पर कुचले जाते हैं, पर क्या कभी खुद जानवर किसी गाड़ी के नीचे जाते हैं मरने के लिए?’’ डाक्टर रमन जैन ने पूछा.‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ ईशा बोली.भैया और मां चुपचाप देख रहे थे.‘‘तो क्या हम जानवरों से भी गएगुजरे हैं, जो संघर्ष को छोड़ कर मौत को गले लगा लें?’’

डाक्टर रमन जैन ने पूछा.‘‘पर, वह आशु...’’ ईशा की आंखों में आंसू भरने लगे.‘‘वह संघर्ष नहीं कर पाई अपने विचारों से और गलत राह पर चलने लगी. अगर किसी टैंशन में रहने लगी थी तो मातापिता से शेयर करती. समाधान जरूर मिलता,’’ डाक्टर रमन जैन ने कहा.‘‘लेकिन, सुखसुविधाओं की उम्मीद करना क्या बुरी बात है?’’ ईशा ने पूछा.‘‘कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन आशु का तरीका गलत था. जितने भी महान लोग हुए हैं, उन सब ने संघर्ष किया है. अच्छा यह बताओ कि जब से तुम बीमार हुई हो, परिवार ने कोई कमी की देखभाल करने में? मां के प्यार में कमी लगी? भैया ने कमी की?’’ डाक्टर रमन जैन ने पूछा.

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