‘चलो, अच्छा हुआ जो उसे पता चल गया. अब वह किसी तरह सुमित से उस का विवाह करवा ही देगी. अपने जीवन की त्रासदी उस के जीवन में नहीं घटित होने देगी.’ तभी घंटी बजी. लगता है सोनल यूनिवर्सिटी से वापस आ गई है. इसी मानसिक ऊहापोह में माधुरी को समय का पता ही नहीं चला. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने सोनल ही खड़ी थी. ‘‘क्या हुआ, मां?’’ मां का उड़ा हुआ चेहरा देख कर सोनल ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं, सिर में दर्द है.’’
सोनल कपड़े बदल कर खाने की मेज पर आ कर बैठ गई. माधुरी उस के लिए खाना निकालने लगी तो सोनल बोली, ‘‘मां, तुम्हारे सिर में दर्द है. तुम आराम करो. मैं खुद निकाल कर खा लूंगी.’’ मगर माधुरी वहीं पास पड़ी दूसरी कुरसी पर बैठ गई. वह सोनल से सुमित के बारे में पूछना चाहती थी मगर समझ नहीं रही थी कि बात कहां से शुरू करे. सोनल न जाने क्याक्या अपनी यूनिवर्सिटी की बातें बता रही थी, लेकिन उस को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. सोनल भांप गई कि मां का ध्यान कहीं और है, बोली, ‘‘क्या है, मां, क्या सोच रही हो, मेरी बातें नहीं सुन रही हो?’’
सोनल द्वारा अचानक पूछे गए सवाल पर माधुरी पहले तो हड़बड़ाई, फिर बोली, ‘‘सोनल, तू अपने विवाह से खुश तो है न?’’ सोनल एकदम भावुक हो गई, ‘‘खुश क्यों होऊंगी मां? क्या किसी लड़की को भला अपने मातापिता को छोड़ने की खुशी होती है?’’ कह कर सोनल रोने लगी. माधुरी की आंखों में भी आंसू आ गए. वह मन ही मन सोचने लगी कि कितनी खूबसूरती से यह लड़की अपनी वेदना प्रकट कर गई. वह स्वयं भी बहुत रोया करती थी. लोग सोचते कि उस को परिवार वालों को छोड़ने का दुख है. कोई भी उस के हृदय के हाहाकार को समझ नहीं पाया था. मगर यह बेवकूफ लड़की यह नहीं जानती कि उस की मां उस के रुदन के पीछे छिपे हाहाकार को बड़ी तीव्रता से महसूस कर रही है. थोड़ी देर बाद सोनल को स्टोररूम से कोयले की अंगीठी लाते हुए देख कर उस ने पूछा, ‘‘सोनल, अंगीठी का क्या करेगी?’’