मेला वाली बारी में रामलीला का मेला था. वह जगह बहुत साफसुथरी और हरीभरी थी. चारों तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़नुमा भीटे और लंबेलंबे खड़े पेड़ थे. बीच में एक सुंदर तालाब था. एक तरफ रामलीला वाली जगह थी, जहां रामलीला करने वाले लोग राम, लक्ष्मण, सीता और रावण आदि का स्वांग करते थे.

पहले गांव का हिसाब ही अलग था. राम का रोल कोई भी गोराचिट्टा लड़का अदा कर लेता था और सीता का रोल भी कोई कमसिन लड़का, जिसे दाढ़ीमूंछ न आई हो, अदा करता.

इस में हिंदू या मुसलमान होने के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता था. जो भी अच्छी तरह रामलीला का पाठ याद कर उस का सही स्वांग कर लेता, उसे वह रोल दे दिया जाता था. लोग इसे सिर्फ नाटक समझते थे और उसे नाटक की तरह करते थे.

हां, राम का रोल हमेशा अलीशेर अदा करते थे. समय के हिसाब से हर रोल आगेपीछे हो जाते थे या बदल दिए जाते थे, लेकिन अलीशेर को हमेशा रामलीला में राम बनाया जाता था, क्योंकि अलीशेर एक खूबसूरत जवान थे और उन्हें राम का पाठ जबानी याद था. जब सिर पर मुकुट लगाए वह स्टेज पर आते तो लोग मोहित हो जाते थे.

एक बार तो ऐसा भी हुआ कि राम और रावण दोनों का पाठ करने वाले मुसलमान ही थे, क्योंकि जिन लोगों को नौकरी मिल गई, वे शहर चले गए और गांव में एक मेहमान की तरह आने लगे.

लेकिन बाद में गांव का माहौल बदलने लगा. मुसलमानों का एक तबका रामलीला में मुसलिम नौजवानों व बच्चों के शामिल होने का विरोध करने लगा. मुल्लों ने फतवा जारी कर के इसे मजहब के खिलाफ बताया. फतवे में रामलीला में भाग लेना तो दूर इसे देखना भी गलत कहा गया.

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