पहली बार हवलदार ने उस की तरफ नरमी से देखा. वह घायल मरीज का बयान ले कर पंचनामा करने लगा.

‘‘देखो साहब, अब हमें बहुत देरी हो गई है. ट्रक में केला भरा है, अब हमें जाने दो,’’ नईम ने दूसरे हवलदार से अपनी बात कही.

‘‘ऐसे कैसे जाने दूं? बड़े साहब आएंगे, उन से पूछ कर फिर जाना.’’

‘‘हवलदार साहब, अब काहे को लफड़े में डाल रहे हो. कहो तो आप के चायपानी का इंतजाम कर दूं.’’

‘‘पूरी रात जागता रहा तो किसी ने हमें चायपानी के लिए नहीं पूछा,’’ हवलदार ने नरमी से मेरी ओर देखा.

नईम ने जेब से 50 रुपए का नोट निकाल उस के हाथ में पकड़ाया.

‘‘तू क्या हम को भीख दे रहा है?’’ हवलदार ने गुस्से का नाटक किया.

‘‘नईम दादा, जाने दो. हिसाब से दे दो. हम यहां कब तक पड़े रहेेंगे?’’

मेरी बात पर हवलदार मुसकराया. नईम ने जेब में हाथ डाल कर 50 रुपए का एक और नोट हवलदार की हथेली पर रखा.

हवलदार ने जरा नाराज हो कर सिर हिला दिया और नोट जेब में ठूंस लिए. मैं ट्रक की ओर बढ़ने लगा. नईम ने उस्मान को आवाज दे कर अपने पास बुलाया तो वह दीवार के पीछे से निकल कर वापस आ गया.

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‘‘चल, बैठ गाड़ी में.’’

जब हम सभी ट्रक पर सवार हो कर चलने लगे तब सुबह के 5 बज चुके थे. सड़क पर आवाजाही शुरू हो गई थी. ‘‘साहब, 2 मिनट रुको, मैं अपने बाबू सेठ को फोन कर के आता हूं,’’ कह कर वह फोन बूथ पर गया और जल्दी में नंबर घुमाया.  फोन पर सेठ बिना रुके उसे डांटे जा रहा था. नईम अपने सेठ की बात बड़ी शांति से सुनता रहा. उस की बात खत्म होने के बाद शुरू हुई हमारी बाकी बची यात्रा.

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