Writer- ब्रजेंद्र सिंह
निर्मल अपने कमरे में गया और वहां अपनी भूख उन सैंडविच से मिटाई, जिन्हें वह घर आते समय बाजार से खरीद कर लाया था.
अगले दिन सुबह का नाश्ता खाते समय उस ने अपने चेहरे को बुरा सा बना रखा था और बातचीत सिर्फ हां या न तक सीमित रखी. उस के मातापिता भी कुछ खास नहीं बोले. उस रात को वह काफी देर से घर आया.
खाने की टेबल पर बैठते ही उस ने दुखभरी आवाज में कहा, ‘‘मैं ने मारिया को सम?ा दिया कि हम दोनों भविष्य में फिर कभी न मिल सकेंगे, मेरे मातापिता उसे पसंद नहीं करते हैं. नापसंदी का कारण उस का विदेशी होना है. उस ने मु?ा से काफी बहस की, पर अंत में मान गई कि आज से हमारे रास्ते अलग होंगे. मु?ो आशा है कि अपने बेटे का दिल तोड़ कर आप लोग अब संतुष्ट हैं.’’
‘‘शाबाश बेटे,’’ उस के पिता ने कहा. ‘‘मैं जानता था कि तुम एक आज्ञाकारी पुत्र हो.’’
निर्मल की मां ने कुछ नहीं कहा पर उस के चेहरे से लग रहा था कि उन के दिमाग से काफी बो?ा उठ गया है.
दो दिनों बाद निर्मल ने अपनी अगली चाल चली. ‘‘पिताजी,’‘ उस ने कहा, ‘‘एक सुमन नाम की लड़की है. वह दौड़ लगाती है और वह प्रदेश के खेलकूद दल की सदस्य है. वह मेरी दोस्त है और कई दफे घर से लाया हुआ नमकीन या मीठा स्नैक मु?ो भी खिलाती है. मैं उसे घर पर चाय के लिए बुलाना चाहता हूं.’’
जैसे निर्मल ने सोचा था वैसा ही हुआ. उस के पिता की आंखों में चमक आ गई, ‘‘क्या वह भारतीय नागरिक है?’’ उन्होंने पूछा, ‘‘क्या वह हिंदू है?’’
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