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Writer- ब्रजेंद्र सिंह

निर्मल ड्रैसिंग रूम में अपने कपड़े बदल कर खेल के मैदान में आया. प्रदेश के खेलकूद के दलों के लिए परीक्षाएं चल रही थीं, और निर्मल को पूरा विश्वास था कि वह लौंग जंप (लंबाई की कूद) में सफलता पाएगा. कालेज के खेलों में वह हमेशा लौंग जंप में प्रथम स्थान पाता आया था और डिग्री हासिल करने के बाद वह पिछले 2 सालों से लगातार अभ्यास कर रहा था.

निर्मल ने नीचे ?ांक कर अपनी पोशाक को जांचा. गंजी, निकर, मोजे, जूते, सब नए, सब बड़ी नामी कंपनियों के बने हुए, सब बेहद कीमती थे. उस के पिता ने उसे जबरदस्ती यह पोशाक पहनाई थी. आखिर वह एक बड़े आदमी का बेटा था, वह साधारण कपड़े कैसे पहन सकता था. ‘चुनने वाले तुम्हारी एक ?ालक देखते ही तुम्हें चुन लेंगे,’ उन्होंने कहा था.

निर्मल ने बहुत कोशिश की कि वह अपने पिता को सम?ाए कि चुनने वाले यह नहीं देखेंगे कि उस ने कैसी पोशाक पहनी है. वे यह देखेंगे कि उस ने कितनी लंबी छलांग लगाई है. पर उस के पिता उस की बात सुनने को तैयार ही नहीं थे. निर्मल मन में प्रार्थना कर रहा था कि उस के नए जूते उस के पैरों को कोई दिक्कत न दें.

निर्मल लौंग जंप अखाड़े की ओर जा रहा था कि उस ने देखा, बाईं तरफ महिलाओं की 400 मीटर दौड़ की परीक्षा चल रही थी. उस के देखतेदेखते दौड़ने वाली लड़कियां भागती हुई आईं और जो उन सब से आगे थी उस ने फीता तोड़ा. उस ने तीनचार कदम और लिए और फिर जमीन पर गिर गई. तुरंत उस के चारों ओर लोग इकट्ठा हो गए. निर्मल भी उन में शामिल हो गया. लड़की बेहोश सी पड़ी थी.

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