Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
कल रात झींगुरी की कही बातें उस के दिमाग में गूंजने लगीं कि वह जब तक उस के पिता उस की पसंद के लड़के से विधिवत शादी कर के विदा नहीं कर देते, तब तक वह उन्हें शहर नहीं जाने देगी.
तो क्या झींगुरी भी किसी लड़के के चक्कर में फंसी हुई है? कहीं वह भी किसी के साथ भाग गई तो क्या होगा? ये विचार आते ही जानकी उठ कर पास वाले कमरे में चली गई.
झींगुरी की भी आंखों में नींद नहीं थी. बड़की अम्मां अपनी खाट पर गहरी नींद में सो रही थीं.
मां को अपनी खाट के पास देख कर झींगुरी उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘मां, तू अब तक सोई नहीं?’’
‘‘हां, तेरे बापू के सो जाने के बाद जाने क्यों तेरी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं. सचसच बता, क्या तू भी किसी लड़के के प्यार में फंस...’’
झींगुरी ने अचानक मां के होंठों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘यहां नहीं, चलो बाहर बरामदे में पड़े तख्त पर लेट कर बातें करते हैं. यहां बातें करेंगे तो बड़की अम्मां की नींद खुल सकती है.’’
वे दोनों वहां से हट कर तख्त पर आ कर लेट गईं. झींगुरी ने बताया, ‘‘मां, मैं भी अब 16 साल की होने जा रही हूं. आप तो इस उम्र से गुजर चुकी हो. सच तो यह है कि मेरे चाहने वाले इस गांव में बहुत से लड़के हैं. पर ज्यादातर मेरे शरीर से खेलना चाहते हैं.
‘‘एक गोपाल है, जो मुझे दिल से चाहता है. सुनार काका का एकलौता लड़का है. उस का यही कहना है कि मैं तुम्हीं से शादी करूंगा. मातापिता को भी मना लूंगा, पर भाग कर शादी नहीं करूंगा. वह मुझे अपनी मां से भी मिलवा चुका है.
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