Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
खेलावन मिस्त्री अपनी दोनों पत्नियों और 15 साल की किसनी व 10 साल की झींगुरी को छोड़ कर ज्यादा रुपए कमाने के चक्कर में शहर जा कर ठेकेदारी करने लगा था.
किसनी उस की पहली पत्नी मानकी की औलाद थी और झींगुरी को तो नाजायज तौर पर मानकी की सगी बहन जानकी की कोख में आ जाने के चलते जन्म लेना पड़ा था.
आज से तकरीबन 11 साल पहले 20 साल की जानकी अपनी गंभीर रूप से बीमार उस से 10 साल बड़ी बहन मानकी की सेवा करने आई थी और जाने कब खेलावन ने उस से टांका भिड़ा कर पेट से कर दिया था... वह खेलावन की दूसरी पत्नी बन कर रह गई थी.
दरअसल, खेलावन होशियार, लेकिन रसिकमिजाज था. कई मौकों पर वह गांव की मजदूरिनों से भी टांका भिड़ाते हुए पकड़ा जा चुका था.
बस एक काम उस ने जिंदगी में अच्छा किया था, जब इस गांव से सटे नहर के उस पार वाले गांव में एक सेठ के आलीशान भवन को अपने कुशल हाथों से बनाते हुए बड़ी मनौती के बाद पैदा हुए एकलौते बेटे को डाकुओं के चंगुल से बचाया था.
यह तो सेठ के 4 साल के उस बेटे का भाग्य था, जो उस भवन की स्लैब डालने में बहुत रात हो गई थी और खेलावन अपनी पूरी मजदूर टीम के साथ उस बनती हुई इमारत के नीचे कमरे में रुक कर सोने के लिए लेटा ही था कि सेठ की पास वाली पुरानी हवेली से सेठानी के रोनेचिल्लाने की आवाज आने लगी, ‘अरे, डाकू सारा माल लूट कर ले जा रहे हैं. बच्चे को भी उठा कर ले गए... कोई मेरे बच्चे को बचाओ...’