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Writer- पूनम पाठक

‘‘आरती, प्लीज मेरी बात सुनो. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्लीज, मुझे माफ कर दो,’’ रंजन बहुत देर तक दरवाजा पीटता रहा, मगर आरती ने कोई जवाब नहीं दिया और न ही दरवाजा खोला. थकहार कर रंजन हाल में आ कर दीवान पर अपना सिर पकड़ कर बैठ गया.

कानपुर, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कसबे झींझक से नौकरी की तलाश में आए रंजन को बरलाई शुगर मिल में सिक्योरिटी इंचार्ज की पोस्ट उस की अच्छी बौडी की वजह से मिल गई थी. वहीं फैक्टरी के एरिया में उसे 2 कमरों का क्वार्टर भी मिला था.

अच्छे से सर्विस में जमने के बाद रंजन अपनी पत्नी आरती को भी यहीं ले आया था. शादी हुए तकरीबन 2 साल हो चुके थे, पर अभी तक उन के कोई औलाद नहीं थी.

शुगर फैक्टरी में अक्तूबर से फरवरीमार्च महीने तक का समय सीजन कहलाता है यानी इस समय फैक्टरी में चीनी बनने का प्रोसैस चालू रहता है. यह समय सभी मुलाजिमों के लिए बहुत अहम रहता है. यहां तक कि सभी अफसरों के लिए भी.

उस दिन रंजन की छुट्टी थी. पास ही देवास से उस के कुछ दोस्त फैक्टरी देखने आए हुए थे. चलती फैक्टरी में चीनी बनाने का प्रोसैस देखना बहुत दिलचस्प होता है. सभी बड़े ध्यान से गन्ने को क्रेन द्वारा उठा कर क्रेन कैरियर में डाला जाना देख रहे थे.

जिस ट्रक से गन्ना उठाया जा रहा था, खाली होने के बाद वह वापस मुड़ने लगा कि अचानक ही रंजन की नजर एक नन्हीं सी बच्ची पर पड़ी, जो अपनी ही धुन में हाथ में एक छोटा सा गन्ना लिए उस ट्रक के ठीक पीछे खेल रही थी.

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