यह अलग ही तरह का शख्स था. पता नहीं कहां कौन सी साधारण बात इसे खास लगने लगे, किस बात से मोहित हो जाए, कुछ कह नहीं सकते थे. जिन बातों से एक आम आदमी को ऊब होती थी, इस आदमी को उस में मजा आता था. एक अजीब सा आनंद आता था उसे. इस की अभिरुचि बिलकुल अलग ही तरह की थी. वैसे यह मेरा दोस्त है, फिर भी मैं कई बार सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि आखिर यह आदमी किस मिट्टी का बना है. मिट्टी सी चीज में अकसर यह सोना देखता है और अकसर सोने पर इस की नजर ही नहीं जाती.

मैं इस के साथ मुंबई घूमने गया था. हम टैक्सी में दक्षिण मुंबई के इलाके में घूम रहे थे. हमारी टैक्सी बारबार सड़क पर लगे जाम के कारण रुक रही थी. जब टैक्सी ऐसे ही एक बार रुकी तो इस का ध्यान सड़क के किनारे बनी एक 25 मंजिली बिल्ंिडग की 15वीं मंजिल पर चला गया, जहां एक कमरा खुला दिख रहा था. मानसून का समय था. आसमान में बादल छाए थे. कमरे की लाइट जल रही थी, पंखा घूमता दिख रहा था. वह बोल उठा, ‘यार, इस को कहते हैं ऐश. देखो, अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हैं और वो महाशय आराम फरमा रहे हैं, वह भी पंखे की हवा में.’

मैं ने सोचा इस में क्या ऐश की बात है? मैं ने कहा, ‘यार, वह आदमी जो उस कमरे में दिख रहा है, वह क्या कुछ काम नहीं करता होगा? आज कोई कारण होगा कि घर पर है.’

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