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रमा की तरफ से उसे कोई जवाब नहीं मिला. विजय समझ गया कि वशीकरण, तंत्रमंत्र जैसा कुछ नहीं, सब बेवकूफ बनाते हैं. लेकिन रमा की तरफ विजय का लगाव निरंतर बढ़ता जा रहा था. फिर वह सोचने लगा कि शायद मुझ से ही कोई चूक हो गई हो. सब तो गलत नहीं हो सकते. क्यों न अब की बार प्रयोग तांत्रिक से ही करवाया जाए.

विजय ने बंगाली बाबा नाम के व्यक्ति को फोन लगाया. बाबा ने कहा, ‘‘मैं सौ टके तुम्हारा काम कर दूंगा. लेकिन तुम्हें श्मशान की राख, उल्लू का जिगर, किसी मुर्दे की हड्डी लानी पड़ेगी. यदि नहीं ला सकते तो हम सामान की अलग से फीस लेंगे. साथ में, हमारी फीस. जिस का वशीकरण करना है उस की पूरी जानकारी नाम, पता, फोटो, मोबाइल सब हमारे मेल पर भेजना होगा. और अपना विवरण भी. फीस हमारे बताए अकाउंट में जमा करनी होगी.’’

विजय जानतेसमझाते हुए भी बेवफूफ बन गया. रमा की फोटो कालेज फंक्शन के गु्रप में उस के पास थी. उस ने उस फोटो की एक और फोटो निकाल कर पोस्टकार्ड साइज में रमा की फोटो स्टूडियो से बनवा ली. सारी सामग्री बाबा को मेल कर दी. फीस अकाउंट में जमा कर दी. लेकिन कई दिन बीतने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ. विजय समझ गया कि तंत्रमंत्र का बाजार झाठ और धोखे पर आधारित है.

रमा के पिता ने विजय को घर बुला कर कहा, ‘‘तुम घर के लड़के हो. रमा के लिए लड़के वाले देखने आए थे. उन्होंने रमा को पसंद कर लिया है. मैं चाहता हूं तुम मेरे साथ चलो. हम भी उन का घरपरिवार देख आएं.’’

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