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हालांकि जैसेजैसे रिटायर होने का समय नजदीक आ रहा है, वे परेशान होते जा रहे हैं. उन्हें लगता है, जिंदगी की रेत उन की मुट्ठी से झर कर खत्म होने जा रही है. बस, चंद जर्रे और बचे हैं उन की बंद मुट्ठी में, फिर खाली...रीती...

फिर क्या होगा? यह सवाल अब हर वक्त उन के दिलोदिमाग पर हावी रहता है. वे तय नहीं कर पा रहे. हालांकि लड़का कहता है, ‘पिताजी, बहुत हो गया काम. अब तो आप रिटायर होने के बाद घर पर आराम करिए, सुबहशाम टहलिए. अपनी सेहत का खयाल रखिए.’ लेकिन फिर भी भविष्य को ले कर वे चिंतित हैं.

छोटे बच्चे अचानक गेंद ले कर पार्क के उस हिस्से में आ गए जिस में वह लड़की पढ़ रही थी. लड़की के माथे पर बल पड़ने लगे. वह परेशान हो उठी. उस की परेशानी वे सह न सके. बैंच से उठे और गेंद खेलते बच्चों के कप्तान के पास पहुंचे, ‘‘बेटे, यहां ये दीदी पढ़ती हैं तुम्हारी...इन की परीक्षा नजदीक है. इन्हें पढ़ने दो यहां. तुम्हें अपनी जगह खेलना चाहिए.’’

‘‘कैसे खेलें दादाजी?’’ कप्तान ने परेशान हो कर कहा, ‘‘हमारी जगह पर दूसरे लड़कों ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया है. आप उन्हें रोकिए, हमारी जगह न खेलें.’’

बात जायज थी. पर क्रिकेट खेलने वाले लड़के शक्ल से ही उन्हें उद्दंड लगे. उन से उलझना उन्हें ठीक न लगा. इसलिए उन बच्चों को ले कर वे दूसरे कोने में पहुंचे. वहां ताश खेलने वाला दल बैठा था. वे सचमुच चिंतित हुए कि बच्चे कहां खेलें? आखिरकार उन्होंने फैसला किया, ‘‘तुम लोग उस पानी की टंकी के पास वाले मैदान में खेलो, वहां कोई नहीं आता.’’

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