‘‘अभी आई,’’ कह कर वह बच्चे को पालने में लिटा फिर वहां आ गई. परंतु अब राहुल बाहर जाने को उद्यत था. उसे बाहर फाटक तक छोड़ने गई तो उस ने पलट कर रमा को हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और हौले से मुसकरा कर हिचकते हुए कहा, ‘‘यह तो अशिष्टता ही होगी कि पहली मुलाकात में ही मैं आप से इतनी छूट ले लूं, लेकिन कहना भी जरूरी है...’’
रमा एकाएक घबरा गई, ‘बाप रे, यह क्या हो गया. क्या कहने जा रहा है राहुल, कहीं मेरे मन की कमजोरी इस ने भांप तो नहीं ली?’
रमा अपने भीतर की कंपकंपी दबाने के लिए चुप ही रही. राहुल ही बोला, ‘‘असल में मैं अपने एक दोस्त के साथ रहता हूं. अब उस की पत्नी उस के पास आ कर रहना चाहती है और वह परेशान है. अगर आप की सिफारिश से मुझे कोई बरसाती या कमरा कहीं आसपास मिल जाए तो बहुत एहसान मानूंगा. आप तो जानती हैं, एक छड़े व्यक्ति को कोई आसानी से...’’ वह हंसने लगा तो रमा की जान में जान आई. वह तो डर ही गई थी कि पता नहीं राहुल एकदम क्या छूट उस से ले बैठे.
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‘‘शाम को अपने पति से इस सिलसिले में भी बात करूंगी. इसी इमारत में ऊपर एक छोटा सा कमरा है. मकान मालिक इन्हें बहुत मानता है. हो सकता है, वह देने को राजी हो जाए. परंतु खाना वगैरह...?’’
‘‘वह बाद की समस्या है. उसे बाद में हल कर लेंगे,’’ कह कर वह बाहर निकल गया. गहरे ऊहापोह और असमंजस के बाद आखिर रमा ने अपने पति विनोद से फिर नौकरी करने की बात कही. विनोद देर तक सोचता रहा. असल परेशानी बच्चे को ले कर थी.