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लेखक- अरशद हाशमी

‘‘अरे यार, यह उपकार तो बड़ा छिपारुस्तम निकला, पूरी यूनिवर्सिटी में टौप मार दिया,’’ इकबाल ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहा.

‘‘हमें तो लग रहा था वंदना या रुचि ही क्लास में टौप करेंगी. इस ने तो क्लास ही नहीं, पूरी यूनिवर्सिटी को पछाड़ दिया,’’ विनोद ने अपनी राय दी.

‘‘तुम्हारा तो वह सब से अच्छा दोस्त है, वह टौप और तुम मुश्किल से बस, पास हुए हो,’’ अजहर ने मेरी तरफ देखते हुए यह कहा तो सब हंसने लगे और मैं खिसिया कर रह गया.

दोस्त अगर फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन अगर दोस्त टौप कर जाए, तो ज्यादा दुख होता है. यह डायलौग भले ही अभिनेता व निर्माता आमिर खान की फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ में आया हो लेकिन अपना हाल भी कुछ ऐसा ही था.

उपकार बहुत कम बोलने वाला लड़का था और क्लास में उस की बातचीत ज्यादातर मु?ा से ही होती थी.  अपनी क्लास में वंदना, रुचि, नेहा, जेबा और निधि जैसी एक से बढ़ कर एक इंटैलिजैंट लड़कियां थीं तो शंकर और अतीक भी किसी से कम नहीं थे. फिर भी उपकार इन सब को पीछे छोड़ कर न सिर्फ क्लास, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी में टौप आया था.

‘‘बधाई हो भाई, अब चुपचाप पार्टी दे दो,’’ अगले दिन मैं ने उपकार को देखा तो उस को गले लगा लिया और आगे कहा, ‘‘तुम ने मेरा नाम रोशन कर दिया.’’ मैं ने बनावट के साथ कहा तो सब हंसने लगे.

उपकार से मेरी दोस्ती कालेज के पहले ही दिन हो गई थी. मेरी तरह वह भी कम बोलने वाला था. इस के अलावा उस का घर मेरे घर के पास ही था. हम दोनों रोजाना कालेज साथ ही जाते थे. उपकार की माताजी का देहांत कई बरस पहले हो गया था. उस के पिताजी सरकारी औफिसर थे, सेवानिवृत्ति के बाद वे गांव में रह रहे थे. शहर में उन का एक घर था जहां उपकार अकेला रहता था.

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