पत्नी को तरहतरह से संबोधन दिया जाता है. कोई जीवनसंगिनी कहता है, कोई जीवनसहचरी, कोई हमसफर तो कोई अर्धांगिनी. कई तो उसे स्वीटहार्ट कहते हैं, ऐसे लोगों को धोखा हो जाता होगा, वे पत्नी की जगह प्रेयसी को देख रहे होते होंगे. आखिर जिस के साथ समय सुहाना लगता है वही तो खयालों के आकाश में ज्यादा आच्छादित रहती है.
कुछ सयाने पतिजन कहते हैं कि उन की पत्नी, पत्नी नहीं बल्कि पथप्रदर्शक है. गोया कि वे जीवनपथ के भटके हुए राहगीर हैं और पत्नी यातायात के सिपाही की तरह उन की मार्गप्रदर्शक.
चमचागीरी केवल राजनीतिक या प्रशासनिक क्षेत्र में नहीं होती है. दांपत्य में भी इस का काफी महत्त्व व आधिपत्य है. पति नामक जीव भी पत्नी की चमचागीरी में स्वार्थवश या भयवश अव्वल बना रहता है.
और भी पति हैं जो कहते हैं कि उन का यदि सब से बड़ा मित्र कोई दुनिया में है तो वह उन की पत्नी है. वाह भाई वाह, विवाह होने तक न जाने कितने मित्र बनाए, उन के साथ जीनेमरने की कसमें खाईं, कितनी खट्टीमीठी यादें साथ बिताए पलों की उन के साथ जुड़ी हैं, लेकिन, एक अनजान सी लड़की से शादी क्या हो गई कि सारे मित्रों को जोर का झटका धीरे से दे यादों की भूलभुलैया में छोड़ दिया. और ताल ठोक कर कह रहे हैं कि यदि कोई मित्र है तो वह पत्नी है. अच्छा हुआ कि ऐसा कहते समय कोई पुराना जिगरी दोस्त सामने नहीं था, वरना दोस्ती की इतनी किरकिरी होते देख उसी समय वह किसी चट्टान से कूदने के लिए रवानगी डाल देता.
कुल मिला कर जितने तरह के पति हैं उतनी तरह की बातें व उपमाएं वे पत्नियों की शोभा में पेश करते हैं. पत्नी के सामने वैसे भी एक पति की औकात शोभा की सुपारी से अधिक होती नहीं है. ऐसे नमूने भी हैं जो पत्नी को अपना गुरु तक कहते हैं. हो सकता है कि रोज सुबह उठ कर उस के पैर छू आशीर्वाद भी लेते हों. वैसे, इस मामले में गंगू का कहना है कि आज के पाखंडी बाबाओं, गुरुओं की तुलना में तो पत्नी को ही किसी ने यदि गुरु मान लिया है तो यह एक अच्छा दौर शुरू हुआ मान सकते हैं.
और भी पति हैं जोकि एक कदम आगे बढ़ कर कहते हैं कि उन की पत्नी उन के पिता व मां से भी बढ़ कर है.
गंगू ने उपरोक्त सारी उपमाओं पर गंभीरता से विचारमंथन किया और यह पाया कि अलगअलग पति अपनेअपने अनुभवों के आधार पर अलगअलग तरह से पत्नी का अलंकरण कर्म करते रहते हैं. कुछ विशेष स्वार्थवश पत्नी का यश बढ़ाने वाली बात तात्कालिक रूप से अपने मुखश्री से उगल दते हैं. लेकिन सही व खरी बात यह है कि पत्नी, पति की जीवनरूपी फिल्म की निर्देशक है, जैसे कि किसी मूवी को बनाने में निर्देशक का अहम योगदान होता है. वह कलाकारों को छोटीछोटी बारीकियों के बारे में समझाइश व निर्देश देता रहता है और वे कलाकार उस की बात को मगन हो कर एक निष्ठावान व समर्पित शिष्य की तरह गगन की ओर देखते हुए सुनते हैं.
निर्देशक के निर्देश के बिना कलाकार एक कदम आगे नहीं बढ़ सकते हैं. और यदि मूवी को बौक्सऔफिस पर करोड़ों का व्यापार करने लायक दमदार व सफल बनाना है तो उसे इग्नोर तो कर ही नहीं सकते. उसी तरह पति की जिंदगीरूपी मूवी सफल हो, वह निरंतर तरक्की के पथ पर अग्रसर रहे, वह दाएंबाएं जाने की जुर्रत भी न करे, इस के लिए पत्नीरूपी एक निर्देशक के निरंतर निर्देश उस के दिनप्रतिदिन के कार्यकलापरूपी अभिनय के लिए आवश्यक हैं. वह सुबह से रात तक, देररात तक पति को निर्देश देती रहती है और पति मुंडी नीची कर के सुनता रहता है. सिर ऊपर करने की सुविधा यहां नहीं है.
पत्नी यदि बोलेगी बैठ जाओ, तो उसे बैठना है. वह बोलेगी कि खड़े हो जाओ तो उसे तुरंत खड़े हो जाना है. बिना कारण पूछे यदि वह कहे कि उठकबैठक करो, तो वह करनी है. सवालजवाब की कोई गुंजाइश यहां नहीं होती.
आप किसी पार्टी में जा रहे हैं. आप ने पतलूनशर्टटाई सब गांठ ली है. अचानक पत्नी का सीन में प्रवेश होता है. वह कहती है कि यह क्या विदूषक जैसा वेश बना डाला है, और उस के निर्देश पर आप तुरंत पहने कपड़े बदलने को मजबूर हो जाते हो. आप को कुछ पसंद आ रहा है, उसे वह नापसंद है. जो आप को नापसंद है, वह उसे पसंद है. बात वही है कि निर्देशक के निर्देशों को आप नजरअंदाज कर ही नहीं सकते.
पत्नी के पापाजी व मम्मीजी आ रहे हैं और बौस ने एक जरूरी मीटिंग में आप को शिरकत करने को निर्देशित किया है, लेकिन घर की बौस ने आप को रेलवे स्टेशन ड्यूटी के लिए निर्देशित कर दिया है. ट्रेन का समय आप की बैठक के समय से क्लेश हो रहा है. ऐसी स्थिति में भी आप निर्देशक से क्लेश नहीं कर सकते हैं. यहां की डांट खाने व अपनी खाट खड़ी करने से अच्छा है कि बौस की डांट खा लो.
तो, आप सहमत हैं कि नहीं कि पत्नी के लिए बाकी की सारी उपमाएं अपनी जगह सही हो सकती हैं, लेकिन सब से सही उपमा जो गंगू ने निर्देशक की कही है, वही है और केवल वही है.