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‘बंद करो अपनी बकवास. मयंक तुम्हारे जैसा अपराधी नहीं, बल्कि वह एक सच्चा इनसान है. इस की मैं तहेदिल से कद्र करती हूं. तुम यहां से जाते हो कि पुलिस को बुलाऊं...’

‘ओह, मैं तेरे लिए इतना बेगाना हो गया हूं नैना कि पुलिस को बुलाने की धमकी दे रही हो? खैर, जाता हूं मैं. अगर मेरे प्रति थोड़ी सी भी ममता और प्यार हो, तो कल ओम सिनेमा घर के पास दोपहर के शो के दौरान मिलना...’ इतना बोल कर रतन वहां से चला गया.

‘‘अरे रतन, किन खयालों में डूबे हो?’’ अचानक नेता सुरेश राय लौकअप में बंद रतन को देखते ही बोल पड़े.

मंत्री सुरेश राय को देखते ही रतन अपने खयालों की दुनिया से वापस लौटा और अपने ऊपर होने वाले जोरजुल्म से बचने के लिए गुजारिश करते हुए बोला, ‘‘सर, मुझे किसी तरह इंस्पैक्टर से बचा लीजिए, नहीं तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा...’’

‘‘अरे रतन, तू बेकुसूर है. मेरे पास तेरी बेगुनाही के पुख्ता सुबूत हैं. एसपी ने इंस्पैक्टर छेत्री को फोन कर तुम्हें छोड़ने के लिए आदेश दे दिया है.’’

ठीक उसी समय इंस्पैक्टर राजन छेत्री आया और लौकअप पर तैनात सिपाही से रतन को छोड़ देने के लिए कहा.

बाहर निकलने के बाद मंत्री ने रतन को अपनी गाड़ी में बिठाया. तब रतन मंत्री के एहसानों के दबाव में बोला, ‘‘सर, मैं आप का यह उपकार जिंदगीभर नहीं भूल पाऊंगा.’’

‘‘अरे, कैसा उपकार? मैं तेरे काम आ गया तो बदले में तू भी तो मेरा काम कर देता है. तेरे जैसे जोशीले नौजवान मुझे बहुत पसंद हैं...’’ गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे हुए मंत्री सुरेश राय ने रतन की पीठ को धीरे से थपथपाया और फिर कहा, ‘‘तुम्हारी मदद से ही तो मैं अपने दुश्मनों के दांत खट्टे करता हूं.’’

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