मीना ने राघव के रुपए ला कर उसे वापस कर दिए. राघव डबडबाई आंखों से मीना को देखता रह गया.बाद में मीना ने सोचा कि पता नहीं क्यों मांबाप पढ़ाई की होड़ में बच्चों को इतनी दूर भेज देते हैं. इस शहर में इतने बच्चे आईआईटी की पढ़ाई के लिए आ कर रह रहे हैं. गरीब मातापिता भी अपना पेट काट कर उन्हें पैसा भेजते हैं. अब राघव पता नहीं पढ़ने में कैसा हो पर गरीब मां खर्च तो कर ही रही है.
महीने भर बाद मीना की मुलाकात गीता से हो गई. गीता उस की बड़ी बेटी शीना की सहेली थी और आजकल जगदीश कोचिंग में पढ़ा रही थी. कभी- कभार शीना का हालचाल जानने घर आ जाती थी.
‘‘तेरी क्लास में राघव नाम का भी कोई लड़का है क्या? कैसा है पढ़ाई में? टेस्ट में क्या रैंक आ रही है?’’ मीना ने पूछ ही लिया.
‘‘कौन? राघव प्रकाश... वह जो बिहार से आया है. हां, आंटी, पढ़ाई में तो तेज लगता है. वैसे तो केमेस्ट्री की कक्षा ले रही हूं पर जगदीशजी उस की तारीफ कर रहे थे कि अंकगणित में बहुत तेज है. गरीब सा बच्चा है...’’
मीना चुप हो गई थी. ठीक है, पढ़ने में अच्छा ही होगा.
कुछ दिनों बाद राघव किराए के रुपए ले कर आया तो मीना ने पूछा, ‘‘तुम्हारे टिफिन का इंतजाम तो है न?’’
‘‘हां, आंटी, पास वाले ढाबे से मंगा लेता हूं.’’
‘‘चलो, सस्ता ही सही. खाना तो ठीक मिल जाता होगा?’’ फिर मीना ने निखिल और सुबोध को बुला कर कहा था, ‘‘यह राघव भी यहां पढ़ने आया है. तुम लोग इस से भी दोस्ती करो. पढ़ाई में भी अच्छा है. शाम को खेलो तो इसे भी अपनी कंपनी दो.’’