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उन्होंने खुशी से इजाजत दे दी. अम्मी की तबीयत पहले ही खराब रहती थी, वह कहने लगीं, ‘तुम इतनी दूर चले जाओगे अगर पीछे मुझे कुछ हो गया, तो जनाजे में भी शिरकत न कर सकोगे.’

मैं ने उन्हें तसल्ली दी, ‘आप फिक्र न करें. वहां सब से पहले आप को बुलाऊंगा. एकडेढ़ महीने की बात है फिर आप भी मेरे पास होंगी.’

जिस रोज मुझे घर छोड़ना था. उन की तबियत कुछ ज्यादा बिगड़ गई. डाक्टर को बुलवाया. उस ने आराम का मशविरा दिया कहने लगा कि इन के खून बनने की रफ्तार कुछ सुस्त हो गई है. पूरा चैकअप करवाएं और फिक्रमंद न होने दें.

मैं दिमागी तौर पर 2 हिस्सों में बंट गया. शाहीना से वक्त तय हो चुका था, गाड़ी जाने में अभी कुछ घंटे बाकी थे. अम्मी की हालत ऐसी नहीं थी कि उन्हें छोड़ कर चल देता. सोचा अब्बू से मशविरा ले लूं. उन से पूछा तो वह कहने लगे, मियां इंटरव्यू दे आओ. यहां मैं इन्हें संभालने के लिए हूं, तुम अपना रास्ता खोटा मत करो.

मैं ने बहुत ही बेदिली से अपना सामान समेटा. एकदो जोड़ी कपड़ों और शेव के सामान के अलावा साथ ले जाने के लिए और क्या था. डाक्टर ने अम्मी को नींद की गोली दे दी थी. वह गहरी नींद सो रही थीं. उन्हें इत्मीनान और सुकून की हालत में देख कर मेरे इरादे ने फिर मजबूती पकड़ी.

अब्बू से दुआसलाम कर के घर से निकला. रिक्शा पकड़ कर सीधा स्टेशन पहुंचा. पहले ही देर हो चुकी थी. टिकट बड़ी मुश्किल से मिले. शाहीना अभी तक नहीं आई थी. मैं सीढि़यों के पास ही खड़ा हो गया. मुझे मालूम था कि वह नीला बुरका पहन कर आएगी. हाथ में उसी रंग का पर्स होगा. नकाब नहीं उलटेगी. तय था कि जब तक वह खुद इशारा न करे, मैं उस के करीब न जाऊं.

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