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किसी भी नए हीरो या हीरोइन को प्रमोट करने के काम के लिए बाबा को काफी रुपए मिलते थे और मां को ऐसे धन की आदत पड़ गई थी. उन का जीवन ऐशोआराम से भरा था. आएदिन नए शहरों में जाना, पांचसितारा होटलों में रुकना, रंगीन पार्टियों का मजा लेना उन की आदत में शुमार हो गया था. तब उन्होंने भी यह उड़ती सी खबर सुनी थी कि बाबा उस हीरोइन पर ज्यादा ही मेहरबान हैं, पर उस के द्वारा जो धन की वर्षा हो रही थी उस ने मां के दिमाग को बेकार बना दिया था.
मां को तो बस, भरे हुए पर्स से मतलब था. जब मां को तनाव होना चाहिए था तब तो कुछ नहीं हुआ, पर कुछ साल बीत जाने के बाद उन्होंने बाबा को कुरेदना शुरू किया था. वह कहतीं, ‘अच्छा, सचसच बताना नीना को तुम प्यार करने लगे थे क्या?’
बाबा बोलते, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम्हें पता है कि पब्लिसिटी के लिए क्याक्या कहानियां बनानी पड़ती हैं. तुम तो लगातार मेरे साथ थीं फिर अब क्यों पूछ रही हो?’
अब तक बाबा का काम कम हो गया था. बाजार में और भी कई फिल्मी पत्रिकाएं आ चुकी थीं. जवान और चालाक सेके्रटरी हीरोहीरोइनों को संभालने के लिए आ चुके थे. ऐसे भी कभीकभी ही थोड़ा सा काम मिलता था. पैसे की भी काफी तंगी हो गई थी. जवानी में बाबा ने पैसा बचाया नहीं और अब पुरानी आदतें छूट नहीं पा रही थीं इसलिए मां और बाबा में भी आपस में कहासुनी होनी शुरू हो गई थी.
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अब तक माया विवाह योग्य हो चुकी थी और उस ने अपना जीवनसाथी स्वयं ही चुन लिया था. राजा भी काम की तलाश में अमेरिका पहुंच गया था. बुरी आदतें और अनियमित दिनचर्या के कारण बाबा की सेहत भी डगमगाने लगी थी. चारों तरफ से दबाव ही दबाव था. अब मां के गहने बिकने शुरू हो गए थे. ऐसे में जब भी मां का कोई गहना बिकता, अपना गुस्सा इसी प्रकार से बाबा से प्रश्न कर के निकालतीं.
कभी पूछतीं, ‘अच्छा उस साल दीवाली पर तुम ने रात नीना के घर गुजारी थी न? घर में और भी कोई था या तुम दोनों अकेले थे?’
बाबा जो भी उत्तर देते, उस पर उन्हें विश्वास नहीं होता. ढलती उम्र, बालों में फैलती सफेदी और कमजोर होते अंगप्रत्यंग उन्हें अत्यंत शंकालु बनाते जा रहे थे. तब तक केवल मां की जबान ही चलती थी. फिर माया का विवाह हो गया और वह विदेश चली गई. उस के पति की नौकरी अच्छी थी इसलिए वह हर महीने मां और बाबा के लिए भी पैसे भेजती थी. घर उन का अपना था इसलिए आधा घर किराए पर दे दिया था. वहां से भी हर महीने पैसा मिल जाता था. इस प्रकार दोनों का गुजारा भली प्रकार से चल रहा था.
बीचबीच में माया का चक्कर मुंबई का लगता रहता था पर तब उस ने कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया था कि दोनों का आपस में झगड़ा किस बात को ले कर होता है. मां कभीकभी उसे भी जलीकटी सुना देती थीं, बोलतीं, ‘अरे, बाबा ने जवानी में बहुत मस्ती मारी है. अभी वैसा नहीं है इसलिए झुंझलाए रहते हैं. अब इस बूढ़े को कौन मुंह लगाएगा.’
‘मां, चुप हो जाओ. बाबा के लिए ऐसे कैसे बोलती हो? तुम भी तो मस्ती मारती थीं.’
‘नहींनहीं, मैं तो सिर्फ ताश खेलती थी, इन की मस्तियां तो हाड़मांस की होती थीं.’
माया डांट कर मां को चुप करा देती थी. उस ने तो दोनों को जवानी में मौजमस्ती करते ही देखा था. अगर दादी नहीं होतीं तो उन दोनों भाईबहनों का बचपन पता नहीं कैसे बीतता.
कुछ सालों बाद माया भारत लौट आई थी. उस ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चेन्नई को चुना था. माया के पति साल में 2 ही बार छुट्टी पर चेन्नई आते थे. अब साल में एक बार वह भी मांबाबा को बुला लेती थी. एक माह बिताने के बाद वे मुंबई लौट जाते थे. जितने दिन बेटी के पास रहते बहुत सुखसुविधा में रहते पर उन की जड़ें तो मुंबई में थीं इसलिए उन्हें वहां लौटने की भी जल्दी होती थी.
जितने दिन वे दोनों बेटी के पास होते उतने दिन उन में झगड़ा नहीं होता था. पर माया ने देखा था कि मां का व्यवहार थोड़ा अजीब होता जा रहा है. बाबा को दुखी देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगता था. यदि बाबा को कोई चोट लग जाती तो वह तालियां बजाने लगती थीं. उन की इस बचकानी हरकत पर माया को बहुत गुस्सा आता था और वह मां को डांट भी देती थी.
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लेकिन आज के फोन ने माया को हिला कर रख दिया था. इतने बूढ़े पिता को उन की जीवनसंगिनी ही मार रही है और वह किसी से शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. उस ने कुछ सोचा और मुंबई अपने मामा को फोन मिलाया. वह फोन पर बोली, ‘‘मामा, मां और बाबा कैसे हैं? इधर आप का चक्कर उन के घर का लगा था?’’
‘‘नहीं, मैं एक महीने से उन के घर नहीं गया हूं. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं कहीं भी आताजाता नहीं हूं. क्यों, क्या बात है? उन का हालचाल जानने के लिए उन को फोन करो.’’
‘‘सुबह बाबा का फोन आया था. रो रहे थे. मुझे बुला रहे हैं. आप जरा देख कर आइए क्या बात है? इतनी दूर से आना आसान नहीं है.’’
‘‘तुम कहती हो तो आज ही दोपहर को चला जाता हूं. तुम मुझ से वहीं बात कर लेना.’’
‘‘ठीक है, मैं 2 बजे फोन करूंगी,’’ कह कर माया ने फोन रख दिया.
अब किसी भी काम में माया का दिल नहीं लग रहा था. समय बिताने के लिए उस ने पुराना अलबम उठा लिया. उस के बाबा और मां की फोटो हर हीरोहीरोइन के साथ थी. नीना राव के साथ एक फोटो में उस ने मांबाबा को देखा. नीना राव कितनी खूबसूरत थी. माया ने तो उसे पास से भी देखा था. उस की गुलाबी रंगत देखते ही बनती थी. नीना राव की सुंदरता के आगे मां फीकी लग रही थीं. इस फोटो में बाबा ने दोनों औरतों के गले में बांहें डाली हुई थीं.
नीना की सुंदरता देख कर माया ने सोचा तब मां को जरूर हीन भावना होती होगी, पर बाबा का काम ही ऐसा था कि वह उन के काम में बाधा नहीं डाल सकती थीं. जब नीना को प्रमोट किया जा रहा था तब बाबा का अधिक से अधिक समय उस के साथ ही बीतता था. तब मां अपनी किटी पार्टियों में व्यस्त रहती थीं. हर जगह वह बाबा के साथ नहीं जा सकती थीं. तब का मन में दबाया हुआ आक्रोश अब मानसिक विकृति बन कर उजागर हो रहा था. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि मानसिक अवसाद कितना घिनौना रूप ले सकता है.
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2 बजते ही माया ने मुंबई फोन मिलाया. मामा ने फोन उठाया और बोले, ‘‘तुम जल्दी आ जाओ. यहां के हालात ठीक नहीं हैं. मैं तुम्हें फोन पर कुछ भी नहीं बता सकता हूं.’’
फोन रखते ही माया ने शाम की फ्लाइट पकड़ी और रात के 10 बजे तक घर पहुंच गई थी.
उन दोनों की हालत देख कर माया भी रो पड़ी. अकेले वह दोनों को नहीं संभाल सकती थी. उस ने अपने बड़े बेटे को फोन कर के बंगलौर से बुला लिया. उस ने भी दोनों की हालत देखी और दुखी हो गया. दोनों मांबेटे ने बहुत दिमाग लगाया और इस फैसले पर पहुंचे कि मां और बाबा को अलगअलग रखा जाए, माया बाबा को अपने साथ ले गई और मां को एक नर्स और एक नौकरानी के सहारे छोड़ दिया.
मां को बहुत समझाया और साथ ही धमकी भी दे डाली, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो मैंटल हास्पिटल में डाल देंगे. तुम्हारा बुढ़ापा बिगड़ जाएगा.’’
एक छोटे बच्चे की तरह बाबा माया का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकले और तेजी से जा कर कार में बैठ गए. उस अप्रत्याशित मोड़ ने मां को स्तंभित कर दिया था. वह शांत हो कर अपने बिस्तर पर बैठी रहीं और नर्स ने उन्हें नींद की गोली दे कर लिटा दिया. कल से ही उन का इलाज शुरू होगा.