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यहां पढ़िए पहला भाग- त्रिया चरित्र भाग-1

अब आगे....

आशा के पति रतनलाल ने जब उस में आए इस बदलाव को महसूस किया तो उस का माथा ठनका. रतनलाल को लगा कि हो न हो, आशा ने घर से बाहर अपना कोई यार पाल लिया है.

एक रात को वह आशा से बोला, ‘‘आशा, आजकल तू किस दुनिया में रह रही है?’’

पति रतनलाल के इस सवाल पर आशा चौंकी, पर जल्द ही अपनेआप

को संभालते हुए वह बोली, ‘‘क्या मतलब...?’’

‘‘मैं देख रहा हूं कि आजकल तेरे तो रंगढंग ही बदल गए हैं. तू यह बात बिलकुल भूल गई है कि घर में तेरा एक पति भी है. रात को जब मैं तुझे हाथ लगाता हूं तो तू मेरा हाथ झटक देती है. कहीं तू ने घर के बाहर अपना कोई यार तो नहीं पाल लिया है?’’

मन ही मन डरती आशा तेज आवाज में बोली, ‘‘तुम्हें अपनी पत्नी से ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती? यह सीधासीधा मेरे चरित्र पर लांछन है.’’

‘‘अच्छा होगा, यह लांछन ही हो. मगर हकीकत में बदला तो याद रख. मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा,’’ रतनलाल उसे घूरता हुआ बोला.

पति रतनलाल के शक को देखते हुए आशा कुछ दिनों तक रमेश यादव से मिलने में सावधानी बरतती रही और जब उसे पक्का यकीन हो गया कि रतनलाल उस की ओर से बेपरवाह हो गया है तो फिर से खुल कर उस से मिलने लगी.

पर रतनलाल उस की ओर से लापरवाह नहीं हुआ था, बल्कि चोरीछिपे उस की हरकतों पर नजर रख रहा था.

कुछ ही दिन के बाद रतनलाल को मालूम हो गया कि आशा ने रमेश यादव नामक के एक अपराधी से यारी गांठ ली है और उस के साथ मिल कर रंगरलियां मनाती है.

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