तेंदुआ बहुत समय से भूखा था. अनुभवी होने के साथसाथ उस ने छोटेमोटे शिकार करने छोड़ दिए थे. अब वह केवल बड़े शिकार करता था और कई दिन मौज मनाता था.

‘‘बड़े बाबू, क्या सोच रहे हो? आज तो फाइलों का ढेर कुछ ज्यादा ही लग रहा है...’’

‘‘हां अजय, फाइलों का ढेर तो लगना ही है. सोच रहा था कि कोई बड़ी मछली हाथ लग जाए तो इन फाइलों को हाथ लगाऊं. अब तो आदत ऐसी हो गई?है कि जब तक हफ्ते 2 हफ्ते में लाख

2 लाख हाथ में न आ जाएं, औफिस का काम करने को मन ही नहीं करता.’’

‘‘सो तो है बड़े बाबू. हम ने भी जब नईनई नौकरी शुरू की थी, तो बड़ी ईमानदारी की हेकड़ी झाड़ा करते थे, लेकिन इस समुद्र में रह कर पता चला कि इस का पानी गटके बिना सांस भी नहीं आती,’’ अजय की इस बात पर बड़े बाबू के साथसाथ औफिस में आसपास बैठे मुलाजिम भी मुसकरा दिए.

‘‘अरे अजय भैया, हम ही क्या करें, जब लोग ही गलत काम करवाने को तुले बैठे हैं. हम कब उन से घूस मांगते हैं, वे ही हमारी जेबों में गलत काम करवाने के लिए पैसे ठूंसने को तैयार बैठे रहते हैं.

‘‘हम उन के गलत काम न करें तो सत्ताधारी नेताओं और मंत्रियों की सिफारिशें लगवाते हैं और हमें डांट भी पिलवा देते हैं. जब गलत काम करना ही है तो कुछ अपना भी फायदा हो जाए तो नुकसान क्या है?’’ बड़े बाबू ने सीख दी.

‘‘लेकिन बड़े बाबू, इस घूसखोरी का कोई तोड़ नहीं क्या?’’

‘‘तोड़ तो है अजय बाबू, बस हम सब ईमानदार हो जाएं. कागजों के पेट भरने वाले फालतू के सरकारी नियम खत्म हो जाएं.

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