लेखक- स्निग्धा श्रीवास्तव 

अंतिम भाग

पूर्व कथा

अंधेरे कमरे में बैठे विनय को देख कर इंदु उस के पास आती है तो वह पुरू के बारे में पूछता है और इंदु से पुरू को साथ ले कर पुलिस स्टेशन जाने को कहता है. इंदु के जाने पर विनय अतीत की यादों में खो जाता है कि पुरू और अरविंद की शादी के दिन सभी कितने खुश थे उन की जोड़ी को देख कर. इंदु ने लाख समझाया था कि लड़के वालों के बारे में तहकीकात तो कर लो पर विनय ने किसी की एक न चलने दी थी.

शादी के 4 दिन बाद पुरू के मायके आने पर इंदु उस के चेहरे की उदासी को भांप जाती है परंतु पूछने पर वह पुरू को कुछ नहीं बताती. विनय और इंदु को पुरू के मां बनने की खुशखबरी मिलती है. एक दिन पुरू के अकेले मायके आने पर सभी अरविंद के बारे में पूछते हैं तो वह कहती है कि ससुराल वाले उसे दहेज न लाने के लिए सताते हैं इसीलिए वह ससुराल छोड़ कर आई है. उस की बातें सुन कर सभी परेशान हो जाते हैं और विनय दुविधा में पड़ जाता है. बहन को रोते देख वरुण पुलिस स्टेशन चलने को कहता तो विनय उन्हें समझाने का प्रयास करता है. अब आगे पढि़ए... ‘पापा, दीदी की हालत देखने के बाद भी आप को उन लोगों से बात करने की पड़ी है,’ वरुण उत्तेजित हो उठा, ‘अब तो उन लोगों से सीधे अदालत में ही बात होगी.’ आखिर इंदु और वरुण के आगे विनय को हथियार डाल देने पड़े. केदार भी शहर से बाहर था वरना उस से विचारविमर्श किया जा सकता था. आखिर वही हुआ जो न चाहते हुए भी करने के लिए विनय विवश थे.

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