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यह सुन कर दीपाली शरमा गई, पर कुछ नहीं बोली. फिर ज्यादा जोर देने पर वह साथ खाने बैठ गई.

‘‘दवा पूरी खाना,’’ रमेश ने खाना खाते हुए कहा.

‘‘जी.’’

‘‘कौन सी क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘12वीं क्लास में.’’

‘‘पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

‘‘जी, ठीक चल रही है.’’

‘‘क्या बनने का इरादा है?’’

‘‘साहब, आगे तो अभी कालेज की पढ़ाई है. आगे क्या पता? मां पढ़ा पाएंगी या नहीं... हो सकता है, मां मेरी शादी करा दें.’’

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‘‘हां, यह भी हो सकता है.’’

दीपाली ने रमेश से कहा, ‘‘साहब, मैं आप से कुछ पूछ सकती हूं... बुरा तो नहीं मानेंगे आप?’’

‘‘पूछो, क्या पूछना चाहती हो?’’

‘‘आप ने शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘सब वक्त की बात है. किसी को मैं पसंद नहीं आया, कोई मुझे पसंद नहीं आई. फिर शादी के लिए मैं किसे आगे करता. न मातापिता, न भाईबहन. लोग अकेले लड़के को अपनी लड़की देने में कतराते हैं.’’

‘‘आप बहुत अच्छे हैं साहब.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘कल रात मुझे आप में अपनी मां और पिता दोनों दिखाई दिए.’’

‘‘क्या मेरी उम्र भी है मातापिता की उम्र जैसी?’’

‘‘उम्र नहीं, गुण हैं आप में ऐसे. पहले मैं आप को केवल साहब की नजर से देखती थी...’’

‘‘और अब?’’

‘‘अब मैं आप को आदर की नजर से देखती हूं.’’

रमेश ने दीपाली से कहा तो नहीं, लेकिन मन ही मन सोचा, ‘प्यार की नजर से तो कोई नहीं देखता. प्यार भी कहा होता तो अच्छा लगता. दिल को तसल्ली मिलती.’

अब दीपाली रोज काम करने आती.

एक दिन रमेश ने पूछा, ‘‘तुम्हारी मां अभी तक नहीं आई?’’

‘‘वे तो कब की आ चुकी हैं, लेकिन बीमार हैं.’’

रमेश ने कई बार सोचा कि महरू को देखने जाएं, लेकिन वे कभी भूल जाते, तो कभी कोई और काम आ जाता.

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