तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा कर ही मुझे पता चला कि तुम दफ्तर जा कर कलम घिसने वाले व्यक्ति नहीं, बल्कि फैशन डिजाइनिंग क्षेत्र के बहुत बड़ी हस्ती हो. तुम्हारा आलीशान मकान तो किसी फिल्म के सैट से कम नहीं था. नौकरचाकर, ऐशोआराम की कमी नहीं थी. मैं तो जैसे सातवें आसमान में पहुंच गई थी. फिर भी मेरे दिमाग में वही संदेह. इतने बड़े आदमी हो कर तुम ने मुझे क्यों चुना?
मेरी जिंदगी में कई अविस्मरणीय घटनाएं घटीं. अलौकिक आनंद के पल भी आए. जब भी तुम्हें कोई सफलता मिलती तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेते और सीने से लगा लेते. उस स्पर्श की सुकोमलता तथा तुम्हारी आंखों में लहराता प्यार का सागर और तुम्हारे नम होंठों की नरमी को मैं कैसे भूल सकती हूं? ऐसे मधुर क्षणों में मुझे अपने पर गर्व होता. पर दूसरे ही पल मन में यह शंका शूल सी चुभती कि क्या मैं इस सुख के काबिल हूं? तुम मुझ पर इतने मेहरबान क्यों? जब कभी मैं ने अपने इन विचारों को तुम्हारे सामने प्रकट किया, तुम्हारे होंठों पर वही निश्छल हंसी आ जाती जिस ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था. फिर मैं सब कुछ भूल कर तुम्हारे प्यार में खो जाती.
मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए तुम कहते, ‘‘तुम नहीं जानतीं कि तुम क्या हो. अब रही सुंदरता की बात, तो मुझे रैंप पर कैटवाक करती विश्व सुंदरी नहीं चाहिए. मुझे जो सुंदरता चाहिए वह तुम में है.’’
‘‘एक बात कहूं, तुम ने मुझे अपना कर मुझे वह सम्मान दिया है, जो किसी को विरले ही मिलता है. मगर एक प्रश्न है मेरा…’’
‘‘हां मुझे मालूम है. अब तुम यह पूछोगी न कि तुम तो दावा करते हो कि मैं तुम्हें पहली ही नजर में भा गई. मगर पहली ही नजर में तुम्हें मेरे बारे में सब कुछ कैसे पता चला? यही है न तुम्हारा प्रश्न?’’ तुम ने मेरी आंखों में झांकते हुए शरारत भरी हंसी के साथ कहा तो मुझे मानना ही पड़ा कि तुम सुंदरता ही नहीं लोगों के दिलों के भी पारखी हो.
तुम ने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तो सुनो. तुम ने यह प्रश्न कई बार मुझ से कहे अनकहे शब्दों में पूछा. मगर हर बार मैं हंस कर टाल गया. आज जैसा मैं तुम्हें दिख रहा हूं मूलतया मैं वैसा नहीं हूं. मुझे डर था कि कहीं एक अनाथ जान कर तुम मुझ से दूर न हो जाओ. मैं ने जब से होश संभाला अपनेआप को एक अनाथाश्रम में पाया. सभी अनाथाश्रम फिल्मों या कहानियों जैसे नहीं होते. इस अनाथाश्रम की स्थापना एक ऐसे दंपती ने की थी जिन्हें ढलती उम्र में एक पुत्र पैदा हुआ था और वह बेशुमार दौलत और ऐशोआराम पा कर बुरी संगत में पड़ गया था. वह जिस तरह दोनों हाथों से रुपया लुटाता था और ऐश करता था, उसी तरह उसे दोनों हाथों से ढेरों बीमारियां भी बटोरनी पड़ीं. शादीब्याह कर अपना घर बसाने की उम्र में वह इन का घर उजाड़ कर चल बसा.
‘‘वे कुछ समय तक तो इस झटके को सह नहीं पाए और गहरे अवसाद में चले गए. पर अचानक एक दिन उन के घर के आंगन में मैं उन्हें मिल गया तो मेरी देखभाल करते हुए उन्हें जैसे अचानक यह बोध हुआ कि इस दुनिया में ऐसे कई बच्चे हैं, जो मातापिता के प्यार और सही मार्गदर्शन के अभाव में या तो सड़कों पर भीख मांगते हैं या गलत राह पर चल पड़ते हैं. उन्होंने निश्चय किया कि उन के पास जो अपार धनदौलत है उस का सदुपयोग होना चाहिए.
‘‘फिर उन्होंने एक ऐसे आदर्श अनाथाश्रम की स्थापना की जहां मुझ जैसे अनाथ बच्चों को घर की शीतल छाया ही नहीं, मांबाप का प्यार भी मिलता है.
‘‘मैं ने डै्रस डिजाइनिंग में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की. उस के बाद एक दोस्त के आग्रह पर उस के काम से जुड़ गया. दोस्त पैसा लगाता है और मैं उस के व्यापार को कार्यान्वित करता हूं. तुम तो जानती ही हो कि इस क्षेत्र में कितनी होड़ लगी रहती है. इस के लिए पैसे तो चाहिए ही. पर पैसों से ज्यादा अहमियत है एक क्रिएटिव माइंड की और मेरे मित्र को इस के लिए मुझ पर भरोसा ही नहीं गर्व भी है. और मेरी इस खूबी का खादपानी यानी जान तुम ही हो,’’ तुम ने मेरी नाक को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा तो मुझे अपने आप पर गर्व ही नहीं हुआ मानसिक शांति भी मिली. तुम ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘मगर तुम्हारे अंदर एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो मुझे बहुत खटकता है.’’
‘‘क्या?’’ मेरा गला सूख गया.
‘‘आत्मविश्वास की कमी. तुम जो हो, अपनेआप को उस से कम समझती हो. मैं ने लाख कोशिश की पर तुम मन के इस भाव से उबर नहीं पा रही हो.’’
यह सब सुन कर मैं अपनेआप पर इतराने लगी थी. मुझे लग रहा था कि मैं दुनिया की ऐसी खुशकिस्मत पत्नी हूं जिस का पति उसे बहुत प्यार करता है और मानसम्मान देता है. मैं और भी लगन से तुम्हारे प्रति समर्पित हो गई.
तुम रातरात भर जागते तो मैं भी तुम्हारे रंगीन कल्पनालोक में तुम्हारे साथसाथ विचरण करती. तुम जब अपने सपनों को स्कैचेज के रूप में कागज पर रखते तो मुझे दिखाते और मेरे सुझाव मांगते तो मुझे बहुत खुशी होती और मैं अपनी बुद्धि को पैनी बनाते हुए सुझाव भी देती.