लेखक- हेमंत कुमार
ऐसे में एक दिन रघु का एक दोस्त हसन रघु के घर आया. हसन की रघु से अभी कुछ ही दिन पहले दोस्ती हुई थी. मालती ने उसे चायनाश्ता करवाया.
कुछ देर वह रघु की मौत पर मौन साधे बैठा रहा, फिर असली मुद्दे पर आ गया. उस ने मालती को दिलासा दिलाते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, आप चिंता मत कीजिए, मैं चलाऊंगा रघु भाई का यह ईरिकशा और आप को रोज पूरे 300 रुपए किराया भी दूंगा.’’
मालती को भी आज नहीं तो कल यह करना ही था, इसलिए उस ने भी इस सौदे पर हामी भरते हुए सिर हिला दिया.
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हसन अपने वादे मुताबिक रोज समय से मालती के घर उस का किराया देने आ जाया करता था. मालती की जिंदगी भी बस कट ही रही थी.
एक दिन हसन शराब के नशे में चूर हो कर मालती को किराया देने आया. चूल्हे की आग के सामने रोटी सेंकती मालती के माथे का पसीना उस के चेहरे और गालों से होता हुआ सीधा उस के उभारों पर जा कर ठहर रहा था.
यह देख कर हसन मदहोश हो गया. वह विधवा मालती को बिन मांगे ही पति का सुख देने को उतावला हो गया.
मालती ने हसन को बैठने को कहा, तो वह मौकापसंद बिस्तर पर ही पसर गया. मालती जानती थी कि इस समय वह नशे में है, इसलिए मालती अपनी बेटी के साथ वहीं नीचे बिस्तर बिछा कर सो गई.
तकरीबन आधी रात को हसन मौका देख कर मालती के साथ जा लेटा और अभी हसन ने उसे छूना शुरू ही किया था कि अचानक मालती की नींद टूट गई.
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