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सलिल ने बड़ी प्रसन्नता से बांड पर हस्ताक्षर कर के कम से कम 4 वर्ष तो वहीं रुकने का इंतजाम कर लिया था. शिक्षा के क्षेत्र में होने के कारण उन की इच्छा थी कि उन की पत्नी विनीता यानी विनी भी शिक्षा में ही रहे. काम तो करना ही था फिर इधरउधर भटकते हुए स्टोर, मौल अथवा किसी और जगह क्यों…. क्यों नहीं शिक्षा के क्षेत्र में? विनी ने न जाने कैसेकैसे स्कूल में एक साल पूरा किया…हरेक सांस में वह अपने स्वतंत्र होने की बात सोचती पर सलिल उस के निर्णय से बिलकुल खुश नहीं थे. वह कहते, ‘‘सीढ़ी पर चढ़ने के लिए पहला कदम ही मुश्किल होता है. जैसे एक साल गुजरा, 2-4 साल में तो आदी हो जाओगी इस वातावरण की.’’

विनी का दिल धड़क उठा. पति की नाराजगी उस से बहुत कुछ कह गई. वह कमजोर बन गई और चाहते हुए भी त्यागपत्र न दे सकी. छुट्टियों में भारत आ कर जब वह मां के गले मिली तो मानो उस की हिचकियों का बांध टूट कर मां के दिल में समा गया. मां भी क्या कर सकती थीं… इंगलैंड लौटने पर सलिल ने उसे खुशखबरी दी.

‘‘डोरिथी मेरे काम से इतनी खुश है कि उस ने मुझे प्रमोट करने का प्रस्ताव रखा है और अब हम अपना घर खरीदने जा रहे हैं.’’ इतनी जल्दी घर? यह सवाल मन में कौंधा पर वह कुछ बोली नहीं. प्रसन्नता और सफलता में डूबे पति का चेहरा निहारती रही. उस की अपनी क्या कीमत है? उस ने सोचा, सभी फैसले सलिल के ही तो होेते हैं. वह तो बस, कठपुतली या मशीन की भांति वही सब करती है जो सलिल चाहते हैं.

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बेमन से विनी बच्चों और सलिल के साथ घर देखने गई. डोरिथी ने ‘रिकमेंड’ किया था, वह बौस थी सलिल की और उसे अपने पास ही रखना चाहती थी. जल्दी ही वह पूरे परिवार सहित अपने घर में ‘शिफ्ट’ हो गई. घर सुंदर था, पूरे साजोसामान सहित बड़े ही कम ‘इंस्टालमेंट’ पर घर मिल गया था, जो सलिल की तनख्वाह से ही हर माह कटता रहेगा. अब तो उस के लिए अधिक कमाना और भी आवश्यक हो गया था. घर में आने के अगले दिन जैसे ही विनी ने सो कर उठने के बाद बेडरू म की खिड़की का परदा उठाया, उसे चक्कर आ गया. घर के ठीक सामने जेड खड़ी थी, किसी लड़के से चिपट कर. 2 मिनट वह सुन्न सी खड़ी देखती रही फिर लड़के के साथ जब जेड सामने वाले घर के अंदर चली गई तब वह टूटे हुए पैरों से घिसट कर पलंग पर आ पड़ी.

शनिवार छुट्टी का दिन था व अगले दिन रविवार…2 दिन की छुट्टियों में वह आसपास घूमफिर कर देखना चाहती थी. कार्नर शौप, शौपिंग मौल्स, लाइबे्ररी, सब के बारे में पता करना चाहती थी पर उस के तो पैर ही मानो बर्फ के हो गए थे. उस ने एक नजर सलिल पर डाली, जो चैन की नींद, प्रसन्नवदन सो रहे थे. धीरे से उठ कर उस ने स्वयं को संभालने की चेष्टा की. शीघ्र ही विनी को पता चला कि जेड उसी घर में रहती है, अपनी मां व अपनी 2 सौतेली छोटी बहनों के साथ. उस की मां का बौयफें्रड जब भी आता है, दोनों छोटी बहनों और उस की मां को अपने साथ बाहर ले जाता है. एक दिन विनी ने सुना, उस की मां का बौयफ्रेंड जेड को सब के साथ चलने के लिए कह रहा था और वह चिल्ला रही थी :

‘नहीं, तुम मेरे पिता नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती.’ कुछ देर बाद ही गाड़ी जेड के सिवा सब को ले कर फर्राटे से निकल गई और जेड का दोस्त उसे ले कर अपने से चिपटाते हुए घर में घुस गया.

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विनी का धैर्य जवाब देने लगा. अपने बच्चों को कैसे इस वातावरण में रख सकेगी? अब तो जेड ने यहां पर भी बदतमीजी शुरू कर दी थी. वह उस की बेटी को चिल्लाचिल्ला कर ‘बिच’ बोलती, गालियां बकती, ‘गो बैक टू योर इंडिया…’ और न जाने क्याक्या.

विनी व सलिल बच्चों को समझाते रहते थे. भारत से सलिल के मातापिता भी बच्चों की देखभाल के लिए वहीं आ गए थे. 4 बेडरूम वाले इस घर में जगह ठीकठाक ही थी अत: इस जेड नामक अशांति के अलावा सब ठीक ही चल रहा था. अब कभीकभी जेड अपने बौयफें्रड के साथ निकल कर दरवाजे की घंटी दबा जाती, कभी उस के बेटे कुणाल को साइकिल चलाते हुए देख कर जूता मार देती, फिर दोनों खिलखिला कर मजाक करते, गालियां देते निकल जाते. अब तो यह रोज का कार्यक्रम बन गया था और अनमनी सी विनी बच्चों के लिए हर क्षण भयभीत बनी रहती. जेड की बदतमीजी हद से अधिक बढ़ जाने से उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. अब स्कूल में शांति थी परंतु घर में तो वही अशांति बन कर उस के समक्ष रहती थी. वह कपड़ों की तरह लड़के बदलती और उन के साथ घूमती रहती.

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